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अलिफ लैला – नाई के छठे भाई कबक की कहानी

पांचवे भाई की कहानी पूरी करने के बाद नाई कहता है कि अब मैं आपको अपने छठे भाई कबक की कहानी सुनाऊंगा। कहानी पूरी करने के बाद मैं यहां से चला जाऊंगा। नाई कहता है, मेरे छठे भाई का नाम कबक था और वो बिल्कुल खरगोश के जैसे चलता था। उसके होंठ भी खरगोश के जैसे ही थे। जब मेरे पिता का देहांत हुआ, तो बंटवारे में कबक को उसके हिस्से के पैसे मिल गए, जिन्हें लेकर उसने व्यापार किया और मुनाफा भी कमाया। लेकिन, बुरी किस्मत के कारण कुछ ही समय में उसे बहुत नुकसान हुआ और वह भिखारी बन गया।

भिखारी बनने के बाद उसने अपना दिमाग लगाया और वह पैसे वालों के यहां जाने लगा, जहां वह उनके नौकरों को कुछ पैसा देकर उन्हें अपनी तरफ कर लेता। नौकर उसे अपने मालिक से मिलवाते और उसे लाचार और गरीब बताकर भीख में पैसे दिलवाले थे।

एक दिन की बात है, ऐसे ही एक शहर से दूसरे शहर घूमते हुए मेरा भाई एक दिन बगदाद के एक विशाल भवन के सामने पहुंच गया। वहां जाकर उसने काम कर रहे एक नौकर से पूछा कि भाई यह भव्य भवन किसका है? नौकर ने कहा कि लगता है कि तुम बाहरी व्यक्ति हो, जिसे हमारे मालिक के बारे में नहीं पता। मेरे मालिक बरमकी बहुत महान इंसान हैं और जो भी उनके पास जाता है, वह माला-माल हो जाता है। नौकर की बात सुनकर कबक की आंखों में चमक आ जाती है और वह नौकर से मालिक के पास ले जाने का निवेदन करता है।

नौकर कबक को भवन के अंदर ले जाता है। अंदर जाते ही भवन की सुंदरता देख मेरे भाई की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। उसने वहां संगमरमर का फर्श, रेशमी परदे और कई खूबसूरत नजारे देखें। वो दोनों एक बरामदे में पहुंचे, जहां से मेरे भाई को सोने की गद्दी पर बैठा एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। मेरा भाई समझ गया कि यह बरमकी है। मेरे भाई ने बरमकी को सलाम किया।

मेरे भाई को सलाम करता देखकर बरमकी ने कहा कि कहो अजनबी, तुम यहां किस लिए आए हो? क्या तुम्हें कोई तकलीफ है? मेरे भाई ने कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और आप जैसे दयालु इंसान से कुछ मांगना चाहता हूं। बरमकी ने कहा कि मुझे तो पता ही नहीं था कि मेरे बगदाद में कोई निर्धन भी है। बरमकी ने कहा कि मैं तुम्हें खाली हाथ नहीं जाने दूंगा। मैं तुम्हें ऐसा दान दूंगा कि तुम जीवन भर याद रखोगे। इसके बाद कबक ने कहा कि मालिक मैंने बहुत दिनों से कुछ खाया भी नहीं है। आपकी कृपा हो, तो मुझे कुछ खाने के लिए दे दीजिए। बरमकी ने कहा कि मैं अभी अपने नौकरों को बुलाकर तुम्हारे लिए खाना मंगवाता हूं। आज तुम मेरे साथ ही खाना खा लेना।

बरमकी ने नौकर को आवाज लगाई, लेकिन कोई नहीं आया। फिर भी बरमकी ऐसा करने लगा कि जैसे कोई आ गया है और उसके हाथ धुला रहा है। बरमकी ने कबक से कहा कि तुम भी हाथ धो लो। लेकिन, कबक को कोई दिखाई नहीं दिया। मेरे भाई ने भी बरमकी की तरह झूठ-मूठ हाथ धो लिए।

इसके बाद बरमकी ने कहा कि लो भाेजन भी आ गया, लेकिन कबक को कुछ दिखाई नहीं दिया। इसके बाद बरमकी ठीक से बैठा और अपना हाथ अपने मुंह तक ऐसे ले गया जैसे वह कोई निवाला खा रहा हो और वह चबाने का नाटक करने लगा। उसने मेरे भाई की ओर देखा और कहा कि मित्र क्या देख रहे हो, तुम भी खाओ। कबक जो सच में भूखा था, वह इस दावत को देखकर हैरान रह गया, लेकिन कुछ नहीं बोला।

तभी बरमकी ने कहा कि क्या हुआ भाई, तुम खा क्यों नहीं रहे हो? क्या तुम्हें शीरमाल और कबाब अच्छे नहीं लगते? मेरे भाई ने बरमकी की बात सुनी और उसने भी झूठ-मूठ खाने का नाटक शुरू कर दिया। अपने झूठ-मूठ के खाने की तारीफ करते हुए उसने कबक से पूछा कि मेरे भाई सच बताना, क्या तुमने कभी इतना स्वादिष्ट खाना खाया है? ये लो बत्तख और मुर्गे का स्वादिष्ट मांस चखो और हां यह बकरी का भुना गोस्त खाना मत भूलना। बरमकी ने एक-एक करके सब कुछ झूठ-मूठ खाया और  कबक को अपने हाथ से भी खिलाया।

कुछ देर के बाद कबक भी झूठ-मूठ खाने की तारीफ करने लगा और कहने लगा कि मालिक मैंने आज तक इतना स्वादिष्ट खाना नहीं खाया। मेरा तो आज पेट और मन दाेनों भर गए। इसके बाद बरमकी ने अपने झूठ-मूठ के नौकर को बुलाया और कहा कि यह सब बर्तन यहां से ले जाओ और शराब लेकर आओ। कुछ देर बाद बरमकी ने कबक से कहा कि लो भाई यह शराब तो चखो और बताओ कि क्या स्वाद है इसका। इस बात पर कबक ने कहा कि मालिक मेरे यहां ना तो शराब पीते हैं और न ही पिलाते हैं। लेकिन, बरमकी ने बहुत जोर देकर कहा और झूठ-मूठ की शराब कबक को पिला दी। इसके बाद कबक ने कहा कि मैंने ताे सुना था कि शराब में नशा होता है, लेकिन इसे पीने के बाद मुझे कोई नशा नहीं हुआ। तब बरमकी ने कहा कि रुको मैं तुम्हें तेज नशे वाली शराब देता हूं, उसे पीकर बताना। इसके बाद बरमकी ने झूठ-मूठ का गिलास कबक की ओर बढ़ाया और कहा कि इसे पिओ। कबक ने झूठ-मूठ की शराब पी ली और ऐसा नाटक करने लगा जैसे उसे सच में नशा चढ़ गया हो। उसने उठकर बरमकी को पीटना शुरू कर दिया। बरमकी ने कहा कि क्या तुम पागल हो गए हो? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे मारने की। तब कबक ने कहा कि मालिक मुझे माफ कर दो, मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे यहां कोई भी शराब नहीं पीता है, यह उसके नशे का ही असर है।

बरमकी ने जैसे ही कबक के मुंह से ऐसा सुना, वह हंसने लगा और कहने लगा कि मुझे तुम्हारे जैसे ही इंसान की तलाश थी। मैं तुम्हें एक शर्त पर मांफ कर सकता हूं, अगर तुम हमेशा के लिए यहां पर रहो तो। अभी तक तो हमने झूठ-मूठ का खाना खाया है, पर अब मैं तुम्हें सच की दावत दूंगा। इतना बोलकर उसने अपने नौकरों को आदेश दिया। इस बार सच में नौकर आए और साथ में स्वादिष्ट भोजन भी लेकर आए।  इसके बाद बरमकी और कबक दोनों ने मिलकर स्वादिष्ट भोजन खाया और बाद में शराब का स्वाद भी चखा। इसके साथ ही कुछ नाचने वाले और गाना बजाने वाले भी आए, जिन्होंने दोनों का मरोरंजन किया। इस बार मेरा भाई बहुत खुश हुआ। बरमकी ने उसे हर प्रकार से बुद्धिमान और कुशल पाया। उसने कबक को बेशकीमती कपड़े पहनने के लिए दिए और उसे अपने भवन का प्रबंधक बना लिया। कबक वहीं रहने लगा। लेकिन, बुरी किस्तम ने यहां भी उसका साथ नहीं छोड़ा और बरमकी की मौत हो गई। बरमकी के मरने के बाद खलीफा ने उसकी पूरी दौलत पर कब्जा कर लिया और कबक बची हुई संपत्ति को लेकर वहां से विदेश के लिए रवाना हो गया। उसने सोचा था कि वह इस धन से व्यापार करेगा और खूब धन कमाएगा, लेकिन रास्ते में ही उसे लुटेरों ने लूट लिया और कबक को गुलाम बना लिया। लुटेरों ने कबक को एक जंगली आदमी के हाथों बेच दिया। वह जंगली आदमी कबक को बहुत मारता-पीटता था। उसने कबक को घर में ही मेहनत के कामों में लगा दिया। जब भी वह जंगली आदमी कुछ लूटने के लिए जाता था, तो वह अपने घर की हिफाजत के लिए कबक को छोड़ जाता था। कबक घर के साथ ही उसकी खूबसूरत पत्नी की भी हिफाजत करता था। जंगली आदमी के जाने के बाद उसकी पत्नी मेरे भाई कबक से

मीठी-मीठी बातें करती थी। कबक को पता चल गया था कि जंगली आदमी की पत्नी उससे प्रेम करने लगी है, लेकिन अपने जंगली मालिक के डर के कारण वह उससे कुछ बोल नहीं पाता था।

एक दिन जंगली आदमी की पत्नी ने कबक के साथ छेड़खानी कर दी। जंगली आदमी को लगा कि यह कबक की हरकत है। तब उसने गुस्से में आकर कबक को ऊंट से बांध दिया और उसे पहाड़ के ऊपर मरने के लिए छोड़ आया। दो दिन बाद पहाड़ से कुछ लोग बगदाद की ओर आते हुए दिखे, जिन्होंने कबक को देखा और उसकी हालत के बारे में मुझे बताया। तब मैं वहां जाकर अपने भाई को अपने साथ लेकर आ गया।

नाई ने कहा, मेरे भाइयों की कहानी सुनकर खलीफा को बहुत हंसी आई। खलीफा ने मुझे बहुत सा इनाम देकर बगदाद से निकल जाने को कहा। मैं बगदाद छोड़कर चला गया। लेकिन, एक दिन मैंने खलीफा की मौत की खबर सुनी। इसके बाद मैं वापस बगदाद आ गया, लेकिन तब तक मेरे सभी भाई भी मर गए थे। इसके बाद नाई ने कहा कि भाइयों के मरने के बाद मैंने लंगड़े और उसके पिता की सेवा की। इनकी सेवा करने के बाद भी ये मुझसे घृणा करते रहे, इस बात का मुझे बहुत दुख है। इसके बाद भी इनको खोजता हुआ मैं काशगर आ गया।

नाई की कहानी सुनाने के बाद दर्जी ने काशगर के राजा से कहा कि नाई की कहानी के बाद हम लोगों ने भाेजन किया और मैं अपनी दुकान आ गया। शाम को जब मैं अपने घर वापस जाने लगा, तो देखा कि यह कुबड़ा नशे की हालत में दुकान के सामने बैठा है और कुछ गा बजा रहा है। उस पर दया करके मैं उसे अपने घर लेकर आ गया। मेरी पत्नी ने भोजन में मछली परोसी। हम सभी भोजन करने लगे। जब कुबड़े ने मछली खाना शुरू किया, तो बिना कांटे निकाले ही खाने लगा। मछली का एक बड़ा कांटा कुबड़े के गले में फंस गया। मैंने कांटा निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन तब तक कुबड़े की मौत हो चुकी थी। इसके बाद मैं चुपचाप उसकी लाश हकीम के दरवाजे से टिकाकर भाग गया।

इतना कह कर दर्जी ने कहा कि महाराज इसके बाद की सारी बात आपको मालूम ही है कि हकीम ने उसे मरा समझा और व्यापारी के गोदाम में फेंक दिया। जहां पर व्यापारी से उसे चोर समझा और उसकी पिटाई कर दी। उसने समझा कि शायद मेरे मारने की वजह से इसकी मौत हो गई है, तो उसने कुबड़े को एक दुकान से टिकाकर खड़ा कर दिया। महाराज मैंने आपको सारी सच्चाई बता दी है, इसके बाद जैसा आपका हुक्म हो मैं मानने के लिए तैयार हूं।

बादशाह ने दर्जी की बात सुन कर अपना आदेश दिया कि तीनों लोग बेकसूर हैं, लेकिन उन्हें तब छोड़ा जाए, जब नाई यहां आएगा। इसके बाद बादशाह ने आज्ञा दी कि नाई जो कि इसी शहर में है, उसे दरबार में लाया जाए और उसके आने के बाद कुबड़े की लाश का अंतिम संस्कार कर तीनों को छाेड़ दिया जाए।

आदेश पाते ही नौकर कुछ देर में नाई को दरबार में लेकर आ गए, जो कि लगभग नब्बे साल का था। इसकी बर्फ जैसी सफेद बड़ी दाढ़ी-मूछें और लटके हुए कान को देखकर राजा को हंसी आ गई। राजा ने कहा कि मैंने तुम्हारी कहानियों की बहुत तारीफ सुनी है, मेरी इच्छा है कि कुछ कहानियां मैं भी तुम्हारे मुंह से सुनूं।

राजा की बात सुनकर नाई ने हाथ जोड़ लिए और कहा कि राजा मैं आपकी सेवा करने के लिए तैयार हूं। लेकिन, उसके पहले अगर आपका आदेश हो, तो क्या मैं एक सवाल पूछ सकता हूं? राजा ने हां में सिर हिलाया। तब नाई ने कहा कि महाराज यहां पर यह दर्जी, हकीम और इतने सारे लोग क्यों जमा हुए हैं और यह कुबड़ा ऐसे क्यों सो रहा है? राजा ने कहा कि तुम्हें इन बातों से क्या लेना देना। नाई ने कहा कि महाराज, मैं कुछ सुनाऊंगा, तो कुछ सुनना भी चाहता हूं।

राजा एक फिर नाई की बात सुनकर हंसने लगे और उसने दर्जी, हकीम और कुबड़े के बारे में सारी बात बता दी। इसके बाद नाई ने कहा कि महाराज अगर आपकी आज्ञा हो, तो मैं इस कुबड़े को देखना चाहता हूं। राजा ने नाई को आज्ञा दे दी। आज्ञा मिलने पर नाई कुबड़े के पास जाता है और उसके शरीर को एक हकीम के जैसे जांचने लगता है। जांच करते हुए अचानक से वह जोर-जोर से हंसने लगता है और यह भूल जाता है कि उसके सामने राजा बैठे हुए हैं। सभी को लगता है कि बुढ़ापे के कारण शायद यह पागल हो गया है, जो राजा के सामने हंसे ही जा रहा है। तभी राजा ने नाई से पूछा कि आखिर आपके इस प्रकार हंसने का कारण क्या है? नाई हाथ जोड़कर राजा से कहता है कि महाराज यह कुबड़ा मरा नहीं है। आप कहें, तो मैं यह साबित कर सकता हूं। तब राजा ने एक फिर नाई को आज्ञा दे दी।

नाई ने अपने झोले में से एक तेल की बोतल निकाली और कुबड़े के हाथ पर और गले पर लगाकर मलने लगा। फिर एक छोटा सा चिमटा कुबड़े के मुंह में डालकर मछली के कांटे को निकाल देता है। थोड़ी देर बाद कुबड़े ने अपने हाथ पैर हिलाए और जोर से सांस लेते हुए उठकर बैठ गया। दरबार में बैठा हुआ हर कोई चौंक गया। राजा ने खुश होकर आदेश दिया कि सभी कहानियों को लिख कर शाही पुस्तकालय में संभालकर रखा जाए। साथ ही दर्जी, हकीम और व्यापारी को इनाम देकर विदा किया जाए। साथ ही यह भी आज्ञा दी कि नाई को मासिक वेतन पर दरबार में कहानियां सुनाने के लिए रख लिया जाए।

इस प्रकार से शहरजाद जो मंत्री की बेटी थी, उसने पूरी कहानी कही और चुप हो गई। कहानी को सुनकर दुनियाजाद बेहद खुश हुई और उसने कहा कि यह कहानी तो बहुत ही रोचक थी। मुझे लगा कि कुबड़ा मर गया होगा, लेकिन नाई की बुद्धिमानी ने उसे बचा लिया।

इसके साथ ही हिंदुस्तान के राजा शहरयार ने कहा कि मैं भी इस कहानी से बहुत प्रभावित हुआ, खासकर लंगड़े और नाई की कहानी को सुनकर। शहरजाद ने कहा कि यदि महाराज की आज्ञा हो और मुझे मृत्युदंड ना दें, तो मैं भी बका के बेटे अबुल हसन की और खलीफा हारूं रशीद की प्रेमिका शमसुन्निहार की कहानी सुनाना चाहूंगी, जो इस कहानी से भी ज्यादा मनोरंजक है।

उस कहानी को सुनने की इच्छा की वजह से महाराज ने उस दिन भी शहरजाद काे नहीं मरवाया। वह पूरे दिन दरबार में बैठा राज्य के काम में लगा रहा और जैसे ही रात हुई, वह आकर शहरजाद के साथ ही सो गया। अगली सुबह दुनियाजाद ने शहरजाद को जगाया और कहा कि जिस कहानी के बारे में तुमने कल कहा था, अब वह कहानी सुनाओ। इसके साथ ही शहरयार की नींद भी खुल गई और वह भी कहानी सुनने के लिए उत्सुक हो गया। इसके बाद शहरजाद ने अपनी कहानी शुरू की।

 

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