1. जिमिकंद (सूरण कन्द) : ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, पेटदर्द, पेचिश, मच्छरों के माध्यम से होने वाले श्लीपद (एलिफ़ेंटाइटिस) व मलेरिया के उपचार में सहायक। एड्स के उपचार में उपयोगी क्योंकि यह एचआईवी द्वारा उत्पन्न प्रोटियेज़ की क्रिया को घटाता है। जिमिकंद पीड़ाहर के रूप में भी उपयोगी पाया गया है।
2. ग्वार फली : रक्त के कोलेस्टॅराल-स्तर को घटाती है। पाचन शक्ति बढ़ाती है। पेट साफ रखती है। रक्त के शर्करा-स्तर को संतुलित रखने में सहायक।
3. अमृतफल (चचिंडा/चिचैंड़ा) : पत्तियों का रस पूरे शरीर में घिसने पर बारम्बार आने वाले बुखार को रोकने में उपयोगी। बीज व सूखी पत्तियाँ पेट में मरोड़ आने से राहत प्रदान करती हैं। बीज व गूदा पेट के कीड़े मारने वाला व दस्त दूर करने वाला है। बीज जीवाणुरोधी होते हैं। निर्जलीकरण (डिहायड्रेशन) दूर करने में सहायक। मूत्रवर्द्धक होने के कारण मूत्राशय, वृक्कों व यकृत की सफाई में सहायक। पत्तियों का रस उस समय पीया जा सकता है जब कुछ विषैला खा लिया हो व उल्टी करानी हो।
4. ककोरा/ककोड़ा : कैल्सियम, लौह व जस्ता की पर्याप्त मात्रा इसमें होती है। सोडियम से चार से आठ गुना पोटेशियम। कुछ मात्रा में केरोटिन, थियामिन, राइबोफ़्लेविन व नियासिन नामक विटामिन्स भी पाये जाते हैं। कैल्सियम अस्थियों, लौह हीमोग्लोबिन एवं जस्ता प्रतिरक्षा-तन्त्र के लिये आवश्यक है ही।
ककोरे एण्टिआक्सिडेण्ट्सयुक्त होते हैं जो शरीर में मुक्तमूलकों (फ्ऱी रेडिकल्स) को घटाने का प्रयास करते हैं ताकि कोशिकाओं व ऊतकों को पहुँच रही क्षति की गति धीमी की जा सके। ककोरे पीड़ाहर (दर्दनिवारक) होते हैं। सूक्ष्मजीवरोधी गुणधर्म भी इनमें विद्यमान है। ये वमनरोधी (उल्टी से बचाने में उपयोगी) भी होते हैं।
5. परवल : यह हाईडेन्सिटी लिपिड (एचडीएल) अर्थात् लाभप्रद कोलेस्ट्राल को बढ़ाता है तथा लाडेन्सिटी लिपिड (LDL) अर्थात् हानिप्रद कोलेस्ट्राल को घटाता है। यदि प्रदूषित खेत की फसल खाने से अथवा किसी अन्य कारणवष शरीर में आर्सेनिक नामक भारी धातु पहुँच चुकी हो तो परवल का सेवन आर्सेनिक-विषाक्तता के प्रभाव को कम करता है। परवल के बीजों में कवकरोधी (फफूँदनाशी) लक्षण भी पाया गया है, अर्थात् यह फ़ंगल इन्फेक्शन से लड़ने में भी सहायक है।
6. टिण्डा : पेट, यकृत व त्वचा के रोगों से राहत पाने में इसकी पत्तियाँ व बीज भी उपयोगी; बुखार व पीलिया दूर करने में एवं मधुमेह के नियन्त्रण में सहायक। एण्टिआक्सिडेण्ट्सयुक्त, सूजनरोधी। प्रोटीन्स व रेशो में भरपूर। प्रचुर विटामिन्स (ऐ, बी6, सी व ई) एवं खनिज लवण (कैल्सियम, मैग्नीशियम, फ़ास्फ़ोरस, जस्ता, लौह, मैंग्नीज़, आयोडीन)।
सोडियम की अपेक्षा पोटेशियम दसगुना अधिक। कोलेस्ट्रालरहित होने से हृद्वाहिकातन्त्र (कार्डियोवेस्क्युलर सिस्टम) के लिये उपयोगी। सम्भावित रूप से ट्यूमर व कैन्सर-रोधी। एक साथ इतने अधिक विटामिन्स व खनिज लवण होने से टिण्डों को नैसर्गिक मल्टिविटॅमिन एवं मल्टिमिनरल कॅप्स्यूल कहें तो कोई अतिषयोक्ति न होगी। संक्रमणों से जूझने में ये खनिज लवण व विटामिन्स शरीर की बड़ी सहायता करते हैं।
7. बथुआ : बथुआ का साग जीवाणुनाशी (एण्टिबॅक्टेरियल) एवं एण्टिआक्सिडेण्टयुक्त होता है। इसलिये बथुआ की भाजी खायें, बैक्टरिया को भगायें।
8. कुन्दरू की पत्तियों व फलों की उपयोगिता : मधुमेह-नियन्त्रण में सहायक। सूजनरोधी। पीड़ाहर । ज्वरान्तक (बुखारनाशी)। कृमिनाशक होने से कुन्दरू का फल पेट के कीड़ों को समाप्त करता है। सूक्ष्मजीवनाशी। एण्टिआक्सिडेण्ट गुणधर्मयुक्त भी है।
कैसे पकायें ? हो सकता है कि उपरोक्त सब्जियाँ कुछ लोगों को शुरु में स्वादिष्ट न लगें, फिर भी निराश न होयें, लोगों से पूछताछ करके किसी ऐसे व्यक्ति को घर बुलायें अथवा उसके घर जायें अथवा दूरभाष करें जो उस सब्जी को स्वादिष्ट तरीके से बनाता हो, उससे यह कौशल सीख लें, सभी सब्जियों को एक ही तरीके से बनाने का प्रयास न करें।
ऐसा भी कर सकते हैं कि शुरुवात में उस सब्जी को mix veg अथवा दालों में कुछ मात्रा में मिलाकर पकायें, फिर धीरे-धीरे मात्रा बढ़ायें तथा बाद में उस सब्जी को स्वतन्त्र रूप से बनायें। यदि आपके घर में कोई सदस्य उस सब्जी से बहुत दूर-दूर रहता हो तो किसी अन्य sabji में यह नयी सब्जी पीसकर कुछ मात्रा में मिला दें ताकि उसे पता न चले, इस प्रकार धीरे-धीरे मात्रा बढ़ायें ताकि कोई न करे नखरे, न कोई स्थिति अखरे।
सब्जी खाने पर रखे सावधानियाँ
वैसे तो कुछ सब्जियाँ स्वभाव से ही कड़वी होती हैं, जैसे करेला परन्तु सब ऐसी सामान्यतः नहीं होतीं, अन्य सब्जियों में कड़वापन उनमें विषाक्तता अथवा रसायनों की अतिरेक उपस्थिति का सूचक हो सकता है, विशेष रूप से लौकी व गिल्की आदि को काटते समय बीच-बीच में कुछ टुकड़ों को चखते चलें, यदि कोई भाग कड़वा निकले तो उसे अलग कर दें। ठीक ऐसा ही आलू के प्रकरण में भी होता है.
कुछ आलू कहीं-कहीं से हरे दिखते हैं, आलू का यह हरा भाग मनुष्यों क्या पशुओं के भी लिये खाने योग्य नहीं होता तथा यदि ग़लती से सब्जी में उसे डाल दिया गया हो तो सामान्य आलुओं की अपेक्षा हरे आलू अलग ही कच्चे अथवा ठोस अनुभव होते हैं।
इसी प्रकार लौकी यथासम्भव छोटे आकार में ख़रीदें एवं घर लाकर 12-24 घण्टे अवलोकन करें कि उसका आकार तो नहीं बढ़ रहा, यदि आकार बढ़ा हुआ दिखे तो समझ लें कि उसका आकार बढ़ाने के लिये उसमें इंजेक्शन लगाया गया था (सब्जी वाले ने भूल से अथवा जल्दबाज़ी अथवा अज्ञानता में वह आपको बेच दी, चलो इस बहाने यह अच्छा हुआ कि आपको पता चल गया कि उसमें injection लगाया गया है एवं उसे नहीं खाना है)। बड़ी लौकी लाने से आशंका है कि उसे छोटी अवस्था में तोड़कर Injection से रातोंरात बढ़ाया गया होगा तो !