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हल्दी के फायदे और नुकसान Turmeric Benefits & Disadvantage

हल्दी (Haldi) के प्रकन्द (र्हाइज़ोम) में कक्र्यूमिन नामक एक पीला रसायन होता है जिसके कारण यह औषधीय रूप से इतनी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। दर्द व सूजन दूर करने के अतिरिक्त भी कई प्रकारों में हल्दी उपयोगी है। हल्दी में फ़ीवर, अवसाद, बढ़े कोलेस्ट्रोल, यकृतरोग व खुजली दूर करने में भी प्रयोग की जाती है।

वैसे कुछ लोगों द्वारा सीने में जलन, विचार व स्मृति क्षमता, इन्फ़्लेमेटरी बावेल डिसीस, तनाव इत्यादि में हल्दी का प्रयोग किये जाने की सफलता के वैज्ञानिक साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं। ध्यान रखें कि जॅवॅनीज़ टर्मरिक रूटः कुरकुमा ज़ेडोआरिया हमारी हल्दी नहीं है।

हल्दी के उपयोग ( फायदे ) –

सूजनरोधी- हल्दी के कक्र्यूमिन व अन्य रसायनों से सूजन कम होने की प्रसिद्धि है। चोट-मोच लग जाने पर हल्दी-दूध पीने की आदत सम्भवतया लगभग हर भारतीय परिवार में देखी जा सकती है।

हे फ़ीवर- इसमें छींक, खुजली, नाक बहना व कन्जेष्षन को कम करने में कक्र्यूमिन की भूमिका मानी जाती है। वैसे समग्रता में सर्दी-खाँसी-ज़ुकाम आदि में हल्दी का सेवन गुड़ अथवा एवं अदरख के साथ सदियों से भारत में प्रभावी रूप से किया जाता रहा है।

अवसाद- कक्र्यूमिन में अवसाद घटाने वाले प्रभाव देखे गये हैं यदि पहले से अवसाद-रोधी औषधोंः एण्टिडिप्रेसेण्ट्स का सेवन किया जा रहा हो तो रुधिर में कोलेस्टॅराल अथवा अन्य वसाओं (Lipids) के उच्चस्तरों (हाइपरलिपिडेमिया) को ठीक करने में- ट्राइग्लिसराइड्स नामक रक्त-वसा के स्तर को घटाने में हल्दी की भूमिका होने का अनुमान है। हल्दी से कोलेस्ट्रोल, स्तर घटना संषयास्पद है।

नॉन- एल्कोहालिक फ़ैटी लीवर डिसीस (Alcoholic fatty liver disease) वाले लोगों में यकृत में वसा के जमाव को रोकना- जिन लोगों में यकृत-समस्या का कारण मद्य नहीं कुछ और है उनमें हल्दी से यकृत में वसा के अनावश्यक जमाव घटते हुए देखा गया है।

आस्टियोआथ्र्राइटिस- हल्दी सत् को अकेले अथवा अन्य शाकीय (हर्बल) अवयवों के साथ सेवन करने से घुटनों के आस्टियोआथ्र्राइटिस से ग्रसित लोगों में दर्द घटाने व कार्य सुधारने में सहायता हो सकती है।

खुजली- दीर्घकालिक वृक्करोग से ग्रसित लोगों को आठ सप्ताहों तक मुख से तीन बार प्रतिदिन हल्दी सेवन कराने से खुजली में कमी आती देखी गयी। एक अन्य अनुसंधान में ऐसा पाया गया कि मस्टर्ड गैस से हुई दीर्घावधिक खुजली से ग्रसित लोगों की जीवन-गुणवत्ता सुधारने व खुजली की गम्भीरता घटाने में हल्दी सहित कालीमिर्च अथवा पिप्पली का सेवन चार सप्ताहों तक प्रतिदिन कराया जा सकता है।

उबटन में- हल्दी में नैसर्गिक एण्टिसेप्टिक गुण सहित जीवाणुरोधी गुणधर्म पाये जाते हैं जिससे दूध में अथवा Besan के साथ मिलाकर इसे Face पर लगाने से त्वचा साफ़ व उजली हो जाती है क्योंकि मृत कोशिकाओ के हटने व पोषण मिलने में त्वचा का नैसर्गिक निखार सामने आने लगता है।

घाव पर- छोटे-मोटे घाव, खुरचन इत्यादि में हल्दी चूर्ण बुरक देने से वह शीघ्र सूखता है एवं उसमें संक्रमण की आशंका कम हो जाती है क्योंकि हल्दी सूक्ष्मजीवरोधी होती है। घाव की जलन व सूजन भी हल्दी के कारण कम हो जाती है इस कारण विभिन्न मल्हमों में हल्दी एक आवश्यक संघटक के रूप में देखी जा सकती है।

इनमें सम्भवतया अप्रभावी- अलजायमर रोग, पेट का अल्सर, विकिरण चिकित्सा से हुई त्वचा-क्षति (रेडियेषन डर्मेटाइटिस) में हल्दी की उपयोगिता अधिक स्पष्ट नहीं है।

अपर्याप्त साक्ष्य- सोचने व स्मृतिसम्बन्धी कौशल,अस्थमा, बीटा-थैलीसीमिया (इस रक्त-विकार में हीमोग्लोबिन में प्रोटीन का स्तर कम हो जाता है, ऐसे व्यक्तियों को बारम्बार रक्ताधान कराना पड़ता है जिससे रक्त में लौह की मात्रा अत्यधिक हो सकती है) जैसी स्थितियों के उपचार में हल्दी की प्रासंगिकता के साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं।

हल्दी के प्रयोग की मात्राएँ –

मुख से सेवन करते समयः कुछ अवधि के लिये मुख से सेवन करना हो तो 8 ग्रॅम्स तक कक्र्युमिन का सेवन हल्दी-उत्पादों में दैनिक रूप से दो सप्ताह तक के लिये किया जा सकता है तथा 3 ग्रॅम्स हल्दी का सेवन तीन माह तक किया जा सकता है।

हल्दी से प्रायः कोई गम्भीर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, फिर भी पेट में ख़राबी, मितली, सिर चकराने अथवा दस्त जैसे कुछ लक्षण हो सकते हैं।त्वचा पर लगाते समयः माउथवाष के रूप में मुख के भीतर की त्वचा पर उपयोग के सन्दर्भ में हल्दी सुरक्षित मानी गयी है।

मलाशय मेंः एनिमा के रूप में भी हल्दी को सुरक्षित समझा जाता है।

 हल्दी के उपयोग में सावधानियाँ ( नुकसान ) –

गर्भावस्था एवं स्तनपानः सामान्य मात्रा में ठीक किन्तु अधिक मात्रा में नहीं।

पित्ताषय-समस्याओं मेंः हल्दी से ये और बढ़ सकती हैं। पित्ताष्मरी अथवा पित्तवाहिनी-अवरोध जैसी स्थिति में हल्दी का अधिक प्रयोग न करना।

रक्तस्रावसम्बन्धी समस्याएँः हल्दीसेवन से रक्त-स्कन्दन धीमा पड़ सकता है। इसी कारण शल्यक्रिया के दौरान व बाद में अधिक रक्तस्राव की आशंका उपज सकती है। शल्यक्रिया के कम से कम दो सप्ताह पहले से हल्दी का सेवन कम कर दें।

ब्लड: क्लौटिंग फ़ैक्टर 7 की कमी के कारण हुए थैलीसीमिया में भी चोट लगने पर ख़ून बहना सरलता व शीघ्रता से नहीं रुकता, ऐसे में हल्दी उपचारक के बजाय समस्या को बढ़ावा देने वाली सिद्ध हो सकती है।

हार्मोन: संवेदी स्थितियाँः ब्रेस्ट-कैन्सर, गर्भाषय-कैन्सर, अण्डाषय-कैन्सर, एण्डोमेट्रियोसिस अथवा गर्भाषयी फ़ाइब्रियाइड्स जैसी हार्मोन-संवेदी स्थितियों में हल्दी के प्रयोग में सतर्कता आवश्यक है।

लौह अल्पताः अधिक मात्रा में हल्दी ग्रहण करने से आशंका है कि लौह का अवशोषण बाधित हो जाये।

यकृत रोगः यकृत-समस्याओं से ग्रसित व्यक्तियों को हल्दी की सीमित प्रयोग करना चाहिए, अन्यथा यकृत को क्षति होने की सम्भावना रहती है।

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