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विटामिन-ऐ I Vitamin A

विटामिन-ऐ क्या है ?

विटामिन – ऐ वास्तव में एक पोषक कहलाता है परन्तु वास्तव में यह वसा में विलयशील (घुलनशील) यौगिकों का एक समूह है जिसमें रेटिनाल, रेटिनल एवं रिटाइनिल ईस्टर्स सम्मिलित हैं। आहार में दो रूपों में विटामिन-ऐ मिलता है. पहला – प्रिफ़ाम्र्ड विटामिन-ऐ अर्थात् रेटिनाल एवं रिटाइनिल ईस्टर्स जो दूध में पाया जाता है .

जबकि दूसरा प्रोविटामिन-ऐ कॅरोटिनायड्स फलों-सब्जियों व तैलों में पाया जाता है।रक्त में विटामिन-ऐ का सक्रिय रूप रेटिनाल है एवं विटामिन का भण्डारित रूप रिटाइनिल पाल्मिटेट है। बीटा-केरोटिन विटामिन-ऐ का प्रिकर्ज़र अथवा प्रोविटामिन है जो मुख्यतः गहरे रंग के फलों, सब्जियों व तैलीय फलों में पाया जाता है।

विटामिन-ऐ का मानव-शरीर में रूपान्तरण

इन रूपों का प्रयोग ज्यों का त्यों नहीं होता बल्कि विटामिन-ऐ के दोनों रूपों को शरीर में रॅटिनल व रेटिनाइक अम्ल में बदल लिया जाता है जो कि विटामिन के सक्रिय रूप हैं। चूँकि विटामिन-ऐ वसा में विलयशील है अतः यह शरीर के वसीय ऊतकों में संचित हो जाता है एवं भविष्य में उपयोग कर लिया जाता है। भीतर अधिकांश विटामिन-ऐ रिटाइनिल ईस्टर्स के रूप में यकृत में संचित रखा जाता है।

ये ईस्टर्स अब आल-ट्रान्स-रेटिनाल में खण्डित कर लिये जाते हैं जो रेटिनाल बाइंडिंग प्रोटीन से जुड़ जाते हैं। अब ये रुधिर-धारा में उतरते हैं जहाँ से शरीर इनका उपयोग कर सकता है। ध्यान रहे कि अन्य पोषक तत्त्वों के ही समान विटामिन-ऐ के सप्लिमेण्ट्स भी लाभ से अधिक हानि पहुँचाते हैं, अत: विटामिन-ऐ की पूर्ति नैसर्गिक रूप से करते रहें।

विटामिन – ऐ की उपयोगिताएँ –

1. विटामिन-ऐ नेत्रों में सामान्य दृष्टि के लिये आवश्यक है. विटामिन-ऐ का सक्रिय रूप रेटिनल आप्सिन नामक एक प्रोटीन से जुड़कर र्होडोप्सिन का निर्माण कर लेता है जो कि वर्ण-दृष्टि में एवं कम प्रकाश में देखने के लिये एक आवश्यक अणु है।

यह विटामिन कार्निया की सुरक्षा व उसकी स्थिति बनाये रखने में सहायता भी करता है जो कि नेत्र की सबसे बाहरी पर्त है, यह कन्जक्टिवा नामक एक पतली झिल्ली को भी बचाये रखता है जो कि पलकों के भीतर नेत्रों की सतह को ढाँके रखती है। विटामिन-ऐ आयु सम्बन्धी मॅक्युलर डिजनरेशन से बचाव में सहायक है।

2. प्रतिरक्षा-तन्त्र को स्वस्थ रखने में – विटामिन-ऐ टी-कोशिकाओं की बढ़त व वितरण द्वारा रोग-प्रतिरोधक प्रणाली में सहायता करता है, ये श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार हैं जो शरीर को संक्रमण से बचाती हैं।

3. शक्तिशाली एण्टिआक्सिडेण्ट – प्रोविटामिन-ऐ केरोटिनायड्स (जैसे कि बीटा-केरोटिन, अल्फ़ा-केरोटिन व बीटा-क्रिप्टोज़ेन्थिन) विटामिन-ऐ के प्रिकर्सर्स होते हैं एवं इनमें एण्टिआक्सिडेण्ट गुणधर्म होते हैं.

अर्थात् ये उन मुक्तमूलकों से निपटते हैं जो वास्तव में ऐसे अत्यधिक क्रियाशील अणु होते हैं जो आक्सिडेटिव स्ट्रेस बनाते हुए शरीर को हानि पहुँचा रहे होते हैं। इस आक्सिडेटिव स्ट्रेस का सम्बन्ध विभिन्न दीर्घावधिक रुग्णताओं से है, जैसे कि मधुमेह, कैन्सर, हृदयरोग इत्यादि से।

4. अन्य: विटामिन-ऐ विशेषतया त्वचा, पेट, आँतों, फेफड़ों, मूत्राशय (ब्लेडर) व अन्तःकर्ण की सतह की सुरक्षा भी करता है। कोशिकाओं की बढ़त में विटामिन-ऐ महत्त्वपूर्ण है। नर व मादा प्रजनन सहित भ्रौणिक परिवर्द्धन में भी विटामिन-ऐ की भूमिका पायी गयी है।

विटामिन-ऐ का कैसे-कैसे प्रयोग –

शरीर की किसी सतह पर बाहर से लगाने एवं मौखिक रूप से सेवन करने के लिये रॅटिनायड्स का प्रयोग कई स्थितियों में राहत, बचाव अथवा उपचार के लिये किया जाता रहा है.
*. एक्ने व झुर्रियों सहित अन्य त्वचा-स्थितियों में.
*. मौखिक विटामिन-ऐ मीज़ल्स व सूखी आँख स्थिति में जब विटामिन-ऐ की कमी हो सकती हो.
*. विटामिन-ऐ का प्रयोग विषिष्ट प्रकार के एनीमिया के भी लिये किया जाता है।
*. कैन्सर्स
*. कॅटॅरेक्ट्स
*. एचआईवी

उपरोक्त अन्तिम तीन बिन्दुओं में विटामिन-ऐ का प्रयोग उल्लेखनीय स्तर पर प्रामाणिक नहीं रहा है।

विटामिन-ऐ की कमी कब ?

1. पाचन सम्बन्धी विकारों में

2. आहार में पोषकों की भारी कमी में

3. समयपूर्व जन्मे नवजातों, सिस्टिक फ़ायब्रोसिस से ग्रसित लोगों, गर्भवतियों एवं नवजातों को स्तन पान करा रही माताओं में विटामिन-ऐ की कमी की आशंका अधिक होती है।

विटामिन-ऐ की कमी –

प्रिफ़ाम्र्ड विटामिन-ऐ व प्रोविटामिन-ऐ केरोटिनायड्स के खाद्य-स्रोतों की उपलब्धता सिमटने से विटामिन-ऐ की कमी शरीरों में पायी जाती है। विटामिन-ऐ की कमी के कारण निम्नांकित विकृतियाँ पायी गयी हैं.

*. रतौंधी ( कम प्रकाश में ठीक से न देख पाना )
*. विटामिन-ऐ की कमी होने पर डायरिया व मीज़ल्स जैसे संक्रमणों से मृत्यु के जोख़िम व अन्य गम्भीरताओं में वृद्धि होती देखी गयी है।
*. विटामिन-ऐ की कमी से गर्भवतियों में एनीमिया व मरण का जोख़िम बढ़ता है तथा भ्रूण-स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं एवं परिवर्द्धन अवमंदित (धीमा/रिटार्डेड) हो जाता है।
*. विटामिन-ऐ की कमी से हायपरकीटोसिस (त्वचा की बाहरी पर्त कठोर होने लगना) व एक्ने जैसी कुछ त्वचा-असहजताएँ भी पायी गयी हैं।

विटामिन-ऐ के खाद्य-स्रोत –

प्रिफ़ाम्र्ड विटामिन-ऐ एवं प्रोविटामिन-ऐ केरोटिनायड्स दोनों की उपस्थिति कई आहारीय स्रोतों में मिल जाती है.
1. दूध व दुग्धोत्पाद (मक्खन आदि)
2. शकरकंद
3. कद्दू
4. गाजर
5. पालक
6. गोभी
7. अजमोदा

विटामिन-ऐ की अधिकता से होने वाली हानियाँ –

1. दृष्टि में व्यवधान
2. संधियों व अस्थियों में दर्द
3. भूख में कमी
4. उल्टी व जी मिचलाना
5. धूप के प्रति संवेदनशील हो जाना
6. बाल झड़ना
7. सिरदर्द
8. खुजलीयुक्त अथवा सूखती त्वचा
9. यकृत को क्षति
10. पीलिया
11. मतिभ्रम

उपरोक्त कई लक्षण संयुक्त रूप में हायपरविटामिनोसिस-ऐ से जुड़े हो सकते हैं जिसमें शरीर में विटामिन-ऐ की विषाक्तता हो जाती है। यदि ऐसी स्थिति अचानक आयी हो तो लक्षणों की गम्भीरता घातक हो सकती है।

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