अनुच्छेद-19: यह केवल नागरिकों को प्राप्त है| मूल संविधान में अनुच्छेद-19 के तहत नागरिकों को 7 स्वतंत्रताएं प्राप्त थी परंतु 44वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 19(f)में वर्णित संपत्ति के अर्जन, धारण एवं व्यय करने की स्वतंत्रता को हटा दिया गया| इस कारण वर्तमान में इसकी संख्या 6 रह गई है|
->अनुच्छेद-19(a)के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई| प्रेस की स्वतंत्रता भी इसी अनुच्छेद के तहत दिया दी गई है|
->12 अक्टूबर 2005 को इसी अनुच्छेद के तहत ‘सूचना का अधिकार’ कानून लागू किया गया|
->अनुच्छेद-19(b) के तहत शांतिपूर्ण बिना हथियार के एकत्रित होने और सम्मेलन करने की स्वतंत्रता दी गई है|
->अनुच्छेद-19(c) के तहत संगठन बनाने की स्वतंत्रता दी गई है|
->अनुच्छेद-19(d) के तहत देश के किसी भी क्षेत्र में भ्रमण करने की स्वतंत्रता दी गई है|
->अनुच्छेद-19(e) के तहत भारत में कहीं भी बसने की स्वतंत्रता दी गई है, सिर्फ जम्मू कश्मीर को छोड़कर |
->अनुच्छेद-19(g) के तहत व्यापार एवं कारोबार करने की स्वतंत्रता दी गई है|
->अनुच्छेद-20: अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संदर्भ में संरक्षण प्रदान करता है तथा इसके अंतर्गत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है|-
(1) किसी भी व्यक्ति को तब तक अपराधी घोषित नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसने अपराध के समय लागू किसी विधि का उल्लंघन नहीं किया हो|
(2)एक अपराध के लिए एक ही बार सजा का प्रावधान है|
(3)व्यक्ति को अपने विरुद्ध प्रमाण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है| सुप्रीम कोर्ट ने इसी अनुच्छेद के आधार पर नार्को टेस्ट पर रोक लगा दी थी|
->अनुच्छेद-21 में प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान किया गया है| अर्थात किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा अन्य किसी भी तरीके से प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है|
->अनुच्छेद-21(A)शिक्षा का अधिकार: इसे 86वें संविधान संशोधन 2002 के तहत जोड़ा गया|
->इस अनुच्छेद के अनुसार 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को निशुल्क शिक्षा पाने का अधिकार प्रदान किया गया है|
->इसे 1 अप्रैल 2010 से लागू कर दिया गया| इस अधिकार में नेवर हुड स्कूल की अवधारणा दी|
->कक्षा-5 तक के बच्चो के लिए 1 किलोमीटर के अंदर तथा कक्षा-6 से 8 तक के बच्चों के लिए 3 किलोमीटर के अंदर स्कूल होंगे|
->इसके तहत निजी स्कूलों में 25% सीटें गरीब बच्चों (BPL) को प्रदान की गई|
->अनुच्छेद-22: गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण प्रदान करता है तथा इसके अंतर्गत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है-
(1)गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित करना आवश्यक है| इन 24 घंटे में आने-जाने का समय शामिल नहीं किया जाएगा |
(2)किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय उसे गिरफ्तार करने का कारण बताना होगा |
(3)गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपने वकील से परामर्श करने का अधिकार होगा|
निवारक निरोध कानून
->निवारक निरोध कानून का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड 4 से 7 में किया गया है| इन कानूनों के तहत किसी व्यक्ति को उस स्थिति में भी गिरफ्तार किया जा सकता है, जब उस पर संदेह हो, भले ही उस व्यक्ति ने कोई अपराध न किया हो|
->विदेशी शत्रु और निवारक निरोध कानूनों के तहत बंदी बनाए गए व्यक्तियों पर अनुच्छेद 22 कि उपर्युक्त 3 व्यवस्थाएं लागू नहीं होती है|
->यदि किसी व्यक्ति को निवारक निरोध के किसी भी विधि के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है तब-
->सरकार ऐसे व्यक्ति को केवल 3 महीने तक ही कारावास में रख सकती है यदि उसे 3 महीने से ज्यादा कारावास में रखनी होती है तो इसके लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से गठित सलाहकार बोर्ड का प्रतिवेदन प्राप्त करना पड़ता है या सांसद द्वारा बनाई गई ऐसी किसी विधि के तहत ही रखा जा सकता है|
निवारक निरोध से संबंधित बनाई गई विधियां
(1)निवारक निरोध अधिनियम,1950:-
->26 फरवरी 1950 को भारतीय संसद ने पहला निवारक निरोध अधिनियम पारित किया था| इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रविरोधी तत्वों को भारत की प्रतिरक्षा के प्रतिकूल कार्य से रोकना था|
->31 दिसंबर, 1971 को इसे समाप्त कर दिया गया|
(2)आंतरिक सुरक्षा अधिनियम(MISA),1971:-
->इसे 1971 में पारित किया गया तथा 1979 में इसे समाप्त कर दिया गया क्योंकि 44 वां संविधान संशोधन इसके प्रतिकूल था|
(3)विदेशी मुद्रा का संरक्षण और तस्करी अधिनियम, 1974:-
->इसे 1974 में पारित किया गया उस समय इस अधिनियम के तहत तस्करों के लिए नजरबंदी की अवधि 1 वर्ष थी जिसे 13 जुलाई, 1984 को एक अध्यादेश के द्वारा बढ़ाकर 2 वर्ष कर दिया गया|
(4)राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका),1980:-
->जम्मू कश्मीर के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों में लागू किया गया|
(5)आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधियां निरोधक कानून(टाडा):-
->निवारक निरोध व्यवस्था के अंतर्गत जो कानून बने उनमें यह सबसे अधिक प्रभावी और सर्वाधिक कठोर कानून था जिसे 23 मई, 1995 को समाप्त कर दिया गया|
(6)पोटा(Prevention of Terrorism Ordinance,2001)
->इसे 25 अक्टूबर, 2001 को लागू किया गया|’पोटा ‘ टाडा का ही एक रूप है एवं इसके अंतर्गत 23 आतंकवादी गुटों को प्रतिबंधित किया गया है| इसमें निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
(1)इसके तहत आतंकवादी और आतंकवादियों से संबंधित सूचना को छिपाने वालों को भी दंडित करने का प्रावधान किया गया है|
(2)पुलिस शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है किंतु बिना आरोप-पत्र के 3 महीने से अधिक हिरासत में नहीं रख सकती है|
(3)इसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है लेकिन यह अपील भी गिरफ्तारी के 3 महीने बाद ही हो सकती है, 21 अक्टूबर, 2004 को इसे अध्यादेश द्वारा समाप्त कर दिया गया|
(7)गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम, 2004:-
->मूलतः इसे 1967 में बनाया गया था, जिसे 2004 में पोटा के समाप्त होने के बाद अध्यादेश द्वारा 21 सितंबर 2004 को लागू किया गया|
->इसमें राष्ट्रविरोधी कामों में शामिल लोगों के लिए मृत्युदंड तक का प्रावधान है|