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Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of India) 

मूल अधिकार की उत्पत्ति (Origin of fundamental rights)

->मूल अधिकार का जन्म 1215 में ब्रिटेन में हुआ था | 1215 के इस अधिकार पत्र को ‘मौलिक अधिकारों’ का मैग्नाकार्टा कहा जाता है|
->फ्रांस विश्व का प्रथम देश था जिसने 1789 के क्रांति (फ्रांस की क्रांति) के बाद लागू नए संविधान में नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किए|
->1791 ई. में अमेरिकी संविधान में किए गए प्रथम 10 संशोधन के तहत नागरिकों को संविधान के माध्यम से व्यवस्थित रूप में मूल अधिकार प्रदान किए| इन्ही 10 संशोधनों को सामूहिक रूप से ‘बिल ऑफ राइट’ कहा जाता है|
->UNO की समाजिक एवं आर्थिक परिषद् ने 1946 में ‘एलोनोर कजवेल्ट’ की अध्यक्षता में मानवाधिकार आयोग का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट UNO को जून 1948 में सौंपी | इसी रिपोर्ट के आधार पर 10 दिसंबर 1948 को UNO ने मानवाधिकारों को मान्यता प्रदान की| इसी कारण प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है|

भारत में मौलिक अधिकार की मांग (Demand of fundamental rights in India)

->भारत में मौलिक अधिकार की सर्वप्रथम मांग स्वराज विधेयक 1895 में की गई थी |
->ऐनी बेसेन्ट ने ‘ कॉमन वेल्थ ऑफ इंडिया बिल ‘ के माध्यम से 1925 में इसकी मांग की |
->1928 में मोतीलाल नेहरु ने नेहरु रिपोर्ट के माध्यम से इसकी मांग की|
->जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित मूल अधिकार प्रस्ताव को 1931 में कराची कांग्रेस अधिवेशन में स्वीकार किया गया |
->सर तेज बहादुर सप्रू द्वारा 1945 में पेश की गई रिपोर्ट में मूल अधिकारों को शामिल करने की बात कही गई |

->मूल अधिकार(Fundamental Rights) U.S.A के संविधान से लिया गया है|
->यह देश की मूलविधि अर्थात संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं और इसमें राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता|
->भारतीय संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 तक नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किए गए थे लेकिन 44वें संविधान संसोधन 1978 के तहत अनुच्छेद 31 में वर्णित संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की श्रेणी से हटाकर अनुच्छेद 300(a)के तहत एक कानूनी अधिकार बना दिया गया|
->अनुच्छेद-12:- अनुच्छेद 12 में राज्य को परिभाषित किया गया जिसके अनुसार राज्य के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय निकाय अर्थात्(नगरपालिकाएं, पंचायत, जिला बोर्ड सुधार न्यास आदि) और अन्य सभी निकाय अर्थात (वैधानिक या गैर-संवैधानिक प्राधिकरण जैसे ओएनजीसी, सेल, LIC आदि ) आती है |
->अनुच्छेद-13:- अनुच्छेद-13 के अनुसार मूल(Fundamental Rights ) अधिकार में कोई भी नकारात्मक परिवर्तन नहीं किया जा सकता है|
->इसी अनुच्छेद के तहत मूल-अधिकारों की रक्षा करने का कार्य न्यायपालिका का है|

मौलिक-अधिकारों का वर्गीकरण:

भारतीय नागरिकों को 6 मौलिक अधिकार प्राप्त हैं :-
(1)समानता का अधिकार(Right to Equality) :-अनुच्छेद 14 से 18 तक
(2)स्वतंत्रता का अधिकार(Right to Freedom) :-अनुच्छेद 19 से 22 तक
(3)शोषण के विरुद्ध अधिकार(Right against exploitation) :- अनुच्छेद 23 से 24 तक
(4)धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार(Right to freedom of Religion) :-अनुच्छेद 25 से 28 तक
(5)सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधित अधिकार(Cultural and Educational Rights) :-अनुच्छेद 29 से 30 तक
(6)संवैधानिक उपचारों का अधिकार(Right to Constitutional remedies) :-अनुच्छेद 32

समानता का अधिकार(Right to Equality Article-14 to 18)

अनुच्छेद-14: विधि के समक्ष समता

->अनुच्छेद-14 में कानून के समक्ष समानता का अधिकार का प्रावधान है अर्थात राज्य(“राज्य” को अनुच्छेद 12 में परिभाषित किया गया है) भारत के राज्यक्षेत्र के सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान लागू करेगा| लेकिन भारत के राष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपालों, तथा राजप्रमुखों को अनुच्छेद 361 के तहत विशेष प्राधिकार प्रदान किए गए हैं|
(1)कार्यकाल के दौरान भारत के राष्ट्रपति तथा राज्यों के राज्यपालों पर दीवानी अथवा फौजदारी किसी भी प्रकार का मुकदमा देश के किसी भी न्यायालय में नहीं चलाया जा सकता है|
(2)कार्यकाल के दौरान राजदूत एवं कूटनीतिक व्यक्ति पर दीवानी अथवा फौजदारी किसी भी प्रकार का मुकदमा देश के किसी भी न्यायालय में नहीं चलाया जा सकता है|

अनुच्छेद-15: धर्म, जाति, लिंग, मूलवंश और जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध

->अनुच्छेद-15 के तहत धर्म, जाति, लिंग, मूलवंश और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव न करने का अधिकार है लेकिन इस अनुच्छेद के अंतर्गत कुछ विशेष व्यवस्था की गई है जो इस प्रकार है-
->अनुच्छेद-15(3rd)के तहत स्त्रियों और बालकों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान की गई है| लोकसभा और विधानसभा में महिला आरक्षण इसी के तहत प्रस्तावित है|
->अनुच्छेद-15(4th)के तहत OBC, SC, ST के विकास के लिए विशेष व्यवस्थाएं करने का प्रावधान की गई है|
->अनुच्छेद-15(5th)के तहत सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है|

अनुच्छेद-16: लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता

->अनुच्छेद-16 के तहत लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता का अधिकार है| अर्थात राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी| लेकिन अनुच्छेद-16 में ही कुछ शर्ते हैं-
->अनुच्छेद-16(4th)के तहत पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व यदि लोकसेवा में पर्याप्त नहीं है तो इस वर्ग को आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान है|
->अनुच्छेद-16(4-a) के अनुसार पदोन्नति में अनुसूचित जाति जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान है|

अनुच्छेद-17: अस्पृश्यता का अंत

->अनुच्छेद-17 के तहत अस्पृश्यता (छुआ-छूत) का अंत किया गया है, इसके लिए 1955 में अस्पृश्यता कानून लागू किया गया|नागरिक अधिकारों की रक्षा अधिनियम 1955
->1976 में इसे संशोधित करके इसके नाम में परिवर्तन कर दिया गया जिसे अब “नागरिक अधिकार अधिनियम” के नाम से जाना जाता है|

अनुच्छेद-18: उपाधियों का अंत

->अनुच्छेद-18 के तहत उपाधियों का अंत कर दिया गया तथा इसके अंतर्गत कुछ विशेष व्यवस्थाएं की गई-
->राज्य(अनुच्छेद 12 में राज्य को परिभाषित किया गया है), सेना और शिक्षा संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा|
->भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा|
->यदि कोई विदेशी भारत में किसी लाभ के पद पर हो तो वह किसी अन्य देश द्वारा दी गई उपाधि भारत के राष्ट्रपति के परामर्श द्वारा ही ग्रहण करेगा |
->सार्वजनिक पद ग्रहण करने वाले व्यक्ति राष्ट्रपति की अनुमति से ही किसी अन्य देश से पुरस्कार या सम्मान ग्रहण करेगा|

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