“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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पाप केवल शरीर से नहीं मन से भी होता है।

एक बार भगवान बुद्ध के दो शिष्य उनसे मिलने
जा रहे थे । पूरे दिन का सफर था । चलते-चलते
रास्ते में एक नदी पड़ी । उन्होंने देखा कि उस नदी
में एक स्त्री डूब रही है । बौद्ध भिक्षुओं के लिए
स्त्री का स्पर्श वर्जित माना जाता है । ऐसी दशा में
क्या हो ?

उन दोनों भिक्षुओं में से एक ने कहा-“हमें धर्म की
मर्यादा का पालन करना चाहिए । स्त्री डूब रही है
तो डूबे ! हमें क्या !”

लेकिन दूसरा भिक्षु अत्यंत दयावान था । उसने
कहा-“हमारे रहते कोई इस तरह मरे, यह तो मैं
सहन नहीं कर सकता”इतना कहकर वह पानी
में कूद पड़ा डूबती स्त्री को पकड़ लिया और कंधे
का सहारा देकर किनारे पर ले आया ।

दूसरे भिक्षु ने उसकी बड़ी भर्त्सना की, रास्ते भर
वह कहता रहा कि-“मैं जाकर तथागत से कहूंगा
कि आज तुमने मर्यादा का उल्लंघन करके कितना
बड़ा पाप किया है”

दोनों बुद्ध के सामने पहुंचे तो दूसरे भिक्षु ने एक
सांस में सारी बातें कह सुनाईं-“भंते ! मैंने इसको
बहुतेरा रोका, पर यह माना ही नहीं ।

बड़ा भयंकर पाप किया है इसने”बुद्ध ने उसकी बात
बड़े ध्यान से सुनी, फिर पूछा-“इस भिक्षु को उस स्त्री
को कंधे पर बाहर लाने में कितना समय लगा होगा ?”

“कम-से-कम पंद्रह मिनट तो लग ही गए होंगे”

“अच्छा !” बुद्ध ने पूछा- “इस घटना के बाद यहां
आने में तुम लोगों को कितना समय लगा ?”

भिक्षु ने हिसाब लगाकर उत्तर दिया- “यही कोई छ:घंटे !”
बुद्ध ने कहा-“भले आदमी ! इस बेचारे ने तो उस स्त्री की
प्राणरक्षा के लिए उसे सिर्फ पंद्रह मिनट ही अपने कंधे
पर रखा, लेकिन तू तो उसे छ: घंटे से अपने मन में बिठाए
हुए है, सर पर लाद के लाया है वह भी इसलिए कि मुझसे
इसकी शिकायत कर सके ।

बोल दोनों में बड़ा पापी कौन है ?”

बेचारा भिक्षु निरुत्तर हो गया ।

सारांश : पाप केवल शरीर से नहीं मन से भी होता है।

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