एक समय एक गुरु और शिष्य बगीचे में बैठे हुए अपने ध्यान चिंतन में मग्न थे, ध्यान चिंतन करते-करते शिष्य देखता है, की एक पौधे के नीचे पत्तों व घांस में एक अण्डा पड़ा हुआ है। और उस उस अंडे के अंदर जो भी जीव, प्राणी है वह अंडे को तोड़ कर बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है।
और यह प्रयास लगातार चलता रहा, सुबह से दोपहर हो गया फीर दोपहर से शाम हो गया, लेकिन वह प्राणी अंडे से बाहार नहीं निकल पाया था। हालांकि उसके लगातार प्रयास से अण्डा जगह-जगह से टूट गया था और इल्ली (तितली) का थोड़ा सा मुँह बाहर निकल गया।
इसी तरह यह कोशिश लगातार दिन रात चलती रही और कई दिन बीत गए, परन्तु इल्ली अभी भी अंडे से बाहर नहीं निकल पायी थी।
शिष्य उसे ध्यान से देखता रहता था, शिष्य को इल्ली पर बड़ी दया आ रही थी, की वह प्राणी दिन-रात मेहनत कर रहा है और अण्डा से बाहर आना चाह रहा है परन्तु अण्डा तो थोड़ा-थोड़ा करके ही टूट रहा है।
शिष्य को लगा की इस इल्ली के लिए कुछ करना चाहिए। परन्तु गुरजी शिष्य को बोलते की तुम इधर-उधर अपना ध्यान मत भटकाओ और केवल ध्यान में अपना मन लगाओ।
अंत में शिष्य से रहा नहीं गया और उसने अण्डे के खोल को तोड़कर इल्ली बाहर निकाल ली, शिष्य इल्ली को अपने हाँथ में लेकर उसे देखने, निहारने लगा।
वह बहुत ही प्रसन्न हुआ की मैने इस इल्ली पर दया दिखाते हुए इसकी जान बचा ली, परन्तु वह इल्ली मुश्किल से 2, 3 घंटे तक जीवित रही फिर मर गयी। शिष्य को बहुत दुःख हुआ वह समझ नहीं पाया की आखिर ऐसा क्यों हुआ।
उसने गुरूजी से पूछा की गुरूजी ऐसा क्यों हो गया।
गुरूजी बोले – तुमने इस अण्डे को जीवन देने के बजाय इसकी जीवन ले ली।
तुमने उस इल्ली की पीड़ा देखी जबकि वास्तव में वह पीड़ा थी ही नहीं, इल्ली बार-बार अपने पंख से अण्डे पर प्रहार किये जा रही थी। जिससे उसके पंखो पर मजबूती आ रही थी और कुछ दिन बाद उसके पैर मजबूत हो भी जाते, वह खुद से उस अण्डे को तोड़ पाती, फीर वह स्वतंत्र होकर घूमती फिरती फूलों का आनंद लेती।
दोस्तों इस छोटी सी कहानी का सार यह है की हम अपने बच्चों को या किसी अपने को या फिर खुद को तकलीफ देना ही नहीं चाहते हम चाहते है की उन्हें बिना तकलीफ किये ही सारा सुख मिले।
प्रयाश करना, हार जाना, फिर प्रयास करना, और प्रयाश करते रहना। हम ये नहीं चाहते, हम यह चाहते है की हमे बिना प्रयास किये सफलता मिले, हमे जीवन में कोई कष्ट उठाना ना पड़े।
दुःख तकलीफ होने पर रोते तो सभी हैं, पर बहुत कम ही ऐसे लोग होते हैं जो संघर्ष करते हैं।
अधिकतर लोग अपने जीवन से समझौता किये हुए होते है और डर-डर कर अपना जीवन गुजार देते हैं। याद रखिये परिस्थितियों को बदलने का नाम ही संघर्ष है।