एक दिन स्कूल की शिक्षिका ने अपने क्लास में बच्चों के साथ एक प्रयोग करने का निश्चय किया शिक्षिका ने अपने बच्चों को कहा कि वे अपने साथ एक प्लास्टिक की थैली में कुछ आलू लेकर आए और हर एक आलू पर उस इंसान का नाम लिखें जिससे वे नफरत करते हैं। दूसरे दिन हर एक बच्चे ने वे जितने लोगों से नफरत करते थे उतने आलू प्लास्टिक की थैली में डालकर अपने साथ स्कूल में ले आए।
कुछ बच्चों ने अपनी थैली में दो तीन या किसी ने पांच आलू लाए शिक्षिका ने बच्चों से कहा कि दस दिन तक वे आलू से भरी थैली पूरी तरह से बंद करके हर वक्त हर जगह अपने साथ रखें । जैसे – जैसे दिन बीतते गए बच्चों ने सड़े हुए आलू की दुर्गंध की शिकायत करनी शुरू कर दी जिन बच्चों के पास पांच आलू थी उन्हें उसे उठाने की मशक्कत करनी पड़ रही थी । दस दिन बाद जब प्रयोग समाप्त हुआ तब बच्चों ने राहत की सांस ली।
शिक्षिका ने बच्चों से पूछा कि आपको इन आलू को संभाल कर रखना कैसा लगा ? बच्चों ने शिकायत करते हुए कहा हमें बदबूदार थैली अपने साथ हर जगह ले जाने में काफी तकलीफ हुई तब शिक्षिका ने प्रयोग में छिपे हुए राज से परिचित कराया उन्होंने बताया कि ‘यही आप की अवस्था होती है,जब आप अपने दिल में किसी के प्रति नफरत लेकर जीते हैं बदबूदार दुर्गंध जैसी नफरत आपके हृदय को दूषित करती हैं। आप दस दिन तक भी इस दुर्गंध को नहीं झेल पाए तो सोचिए किसी से नफरत , क्रोधभरी बदबू को अपने हृदय में कई दिनों तक कैसे रख पाते हैं? इसलिए दूसरों को क्षमा करने में ही समझदारी है।
क्षमा करने का अभ्यास आध्यात्मिक विकास में आत्म-अनुशासन का शिखर है।क्षमा का नियम कहता है कि “आप उसी हद तक मानसिक और भावनात्मक दृष्टि से स्वस्थ हैं, जिस सीमा तक आप खुद को चोट पहुंचाने वाले किसी व्यक्ति को पूरी तरह क्षमा कर देते हैं।