“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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“अस्पृश्य (अछूत)”

प्रेरक प्रसंग
“अस्पृश्य (अछूत)”

भगवान बुद्ध की धर्मसभा चल रही थी। गौतम बुद्ध ध्यानमग्न अवस्था में बैठे चिंतन कर रहे थे। तभी बाहर खड़ा कोई व्यक्ति चिल्लाकर बोला- “आज मुझे इस सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गयी है?” शांत सभा में उसके क्रोधित शब्द गुंजायमान हो उठे। लेकिन बुद्ध उसी प्रकार ध्यानमग्न ही रहे। उसने पुनः पहले से तेज आवाज में अपना प्रश्न दोहराया।

शिष्यों ने सभा की शांति को बनाये रखने के लिए भगवान बुद्ध से उसे अंदर आने की अनुमति देने के लिए कहा। बुद्ध ने कहा, ” वह अंदर बैठने के योग्य नहीं है। वह अछूत है।” शिष्य आश्चर्य में पड़ गए और बोले, “भगवन! आपके धर्म में तो जाति पांति को कोई स्थान नहीं है। कोई ऊंचा नीचा नहीं है। फिर यह अस्पृश्य या अछूत कैसे है?”

तब बुद्ध ने शिष्यों को समझाया, “आज यह क्रोध में है। क्रोध से शांति एवं एकाग्रता भंग होती है। क्रोधी व्यक्ति हिंसा करता है। अगर वह शारीरिक हिंसा से बच भी जाये तो मानसिक हिंसा अवश्य करता है।” “किसी भी कारण से क्रोध करने वाला मनुष्य अछूत है। उसे कुछ समय तक एकांत में रहकर पश्चाताप करना चाहिए। तभी उसे पता चलेगा कि अहिंसा महान कर्तव्य है। परम धर्म है।”

शिष्य समझ गए कि अश्पृश्यता क्या है और अछूत कौन है?

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