एक गाँव में एक बच्चा था जिसका नाम रामू था। वह बहुत ही मंदबुद्धि था। उसके मित्र उसे हंसते और ठीक से समझाने की कोशिश करते, लेकिन रामू कभी भी कुछ सीखने का प्रयास नहीं करता था।
एक दिन, गाँव में एक मेला आया। रामू भी मेले में जाने के लिए बहुत उत्साहित था। उसने अपने दोस्तों के साथ मेले की ओर रवाना हो गया। मेले में वह बहुत सारी खिलौने और खाने-पीने की दुकानों को देखता रहा। तभी उसने एक विशाल घड़ी की दुकान देखी। घड़ी एक खासी महंगी दिखती थी।
रामू ने घड़ी को देखते हुए दुकानदार से पूछा, “भैया, यह घड़ी कितने की है?” दुकानदार ने कहा, “बेटा, यह घड़ी 500 रुपये की है।” रामू ने कहा, “ठीक है, मुझे एक दिखाओ।” दुकानदार ने घड़ी रामू को दिखाई और बताया कि यह घड़ी एक अच्छी गुणवत्ता और टेक्नोलॉजी के साथ आती है।
रामू ने बिना किसी चिंता के अपने पैसे देकर घड़ी खरीद ली। लेकिन घड़ी काम नहीं कर रही थी। रामू को घड़ी की समझ नहीं आ रही थी कि कैसे इसे चलाया जाता है। उसने दुकानदार को लौटकर कहा, “यह घड़ी काम नहीं कर रही है।”
दुकानदार ने हंसते हुए कहा, “बेटा, तुम्हें घड़ी की समझ नहीं आती है। इसके लिए तुम्हें पहले सिखना पड़ेगा।” रामू ने अपनी भूल समझी और घड़ी को सिखने का निर्णय लिया।
रामू ने घड़ी के बारे में बहुत कुछ सीखा और उसने एक दिन वापस दुकान पर जाकर दुकानदार को धन्यवाद कहा। उसने अपने गलती को समझा और अब वह मेहनत करके अपनी बुद्धि को विकसित कर रहा था।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि मंदबुद्धि होना कोई गलती नहीं है। हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और मेहनत करके अपनी बुद्धि को विकसित करना चाहिए। रामू ने अपनी गलती को समझा और उसने मेहनत करके सीखा कि कैसे वह अपनी बुद्धि को बढ़ावा दे सकता है।