हँसना मनुष्य की स्वाभाविक क्रिया है। सृष्टि का कोई और दूसरा प्राणी हँसता हुआ नहीं देखा जाता। * पर बढ़ती हुई तनावपूर्ण जीवन शैली ने मनुष्य का हँसना-गुनगुनाना भी भुला दिया है।
गहराई से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि अधिकांश के चेहरे पर चिंता की रेखा खिंची हुई है। अवसाद से मन भरा हुआ है। जीविका कमाने का संघर्ष एवं भौतिकता को ज्यादा- से-ज्यादा प्राप्त करने की होड़ ने मानों उनसे प्रसन्नता को छीन लिया है। मनुष्य यह भूल गया है कि सफल जीवन के लिए हँसती-हँसाती हलकी मनःस्थिति ही आवश्यक है। अकारण चिंतित एवं गंभीर बने रहने से कुछ प्राप्त नहीं होता। उलटे हानि ही उठानी पड़ती है।
** हँसी का फब्बारा ही वह स्रोत है जो शरीर को रोगमुक्त करने वाली जीवनी शक्ति को बढा़वा देता है और मन में नया उत्साह पैदा करता है।
** व्यक्ति में स्वयं अपने प्रति विनोद की भावना होनी चाहिए। यहाँ काम को गंभीरता से न लेने का अभिप्राय गैर जिम्मेदारी नहीं है। बल्कि एक ऐसी मनःस्थिति है जो कार्याधिक्य से प्रभावित नहीं होती।
** हँसना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा टाॅनिक है। शरीर में पेट और छाती के बीच एक ‘डाॅयफ्रेम’ होता है, जो हँसते समय कंपित होता है। जिससे सारे आंतरिक अवयवों में गतिशीलता आती है। नियमित रूप से हँसना शरीर के सभी अवयवों को ताकतवर और पुष्ट बनाता है। खुलकर हँसने से रक्त संचार की गति बढ़ जाती है तथा पाचनतंत्र अधिक कुशलता से कार्य करता है। हँसी श्वसनक्रिया को तेज करती है और फेंफडे़ में रुकी हुई दूषित वायु को बाहर निकालने में सहायक होती है। हँसने के कारण फेफडे़ के रोग नहीं होते हैं।
हँसने का लाभ यह भी है कि यह जीवन की नीरसता, एकाकीपन, दुष्कृत भावना, थकान, मानसिक तनाव एवं शारीरिक दरद से राहत दिलाता है।
मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से अब यह स्पष्ट हुआ है कि अधिक हँसने वाले बच्चे अधिक कुशाग्र बुद्धि होते हैं। * असफलता और सफलता दोनों जीवन में धूप-छाँव की भाँति आते हैं। यदि मनुष्य दोनों परिस्थितियों में हँसमुख रहता है, तो उसका मन सदैव काबू में रहता है। *हास्य शरीर को झकझोर देता है, जिससे शरीर में अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली अंतःस्रावी प्रणाली सुचारु रूप से कार्य करने लगती है।
आज लोग कहते हैं – ढेर-की-ढेर चिंताएँ सिर पर सवार हैं, जिम्मेदारियाँ पीसे डाल रही हैं। ऐसे में कैसे हँसे ? किंतु वे यह नहीं सोचते कि उदास रहने से चिंताएँ और प्रबल तथा उत्तरदायित्व और बोझिल हो जाता है। जबकि हँसने और प्रसन्न रहने से उसका बोझ हलका मालूम होता है, उन्हें वहन करने की शक्ति में वृद्धि होती है। ** एक बार किसी विदेशी ने महात्मा गांधी की विनोद-प्रियता के विषय में प्रश्न किया, तो बापू ने बताया – ” यदि मुझमें विनोदप्रियता की वृत्ति न होती, तो मैं चिंताओं के भार से दबकर कभी का मर गया होता। यह मेरी विनोदप्रियता ही है जो मुझे चिंताओं में घुलने से बचाए रखती है। ”
एक विचारक ने कहा है – “अगर तुम हँसोगे, तो दुनिया तुम्हारे साथ हँसेगी और अगर तुम रोओगे, तो कोई तुम्हारा साथ न देगा। जीवन को सामाजिक बनाने के लिए भी हास्य की आवश्यकता है।”
भौंरे उसी फूल पर बैठते हैं, जो खिला दिखाई देता है। मुरझाए फूल पर न कभी भ्रमर जाते हैं न तितलियाँ। हँसता-मुस्कराता चेहरा व्यक्तित्व के आकर्षण में चार चाँद लगा देता है। ** मनहूसियत मिटाने और दैनंदिन जीवन के तनाव से मुक्ति पाने का सर्वोत्तम उपाय है कि जीवन एक खेल की तरह जिया जाए, खिलाडी़ की मनःस्थिति रखी जाए।
आइए खुशियाँ बाँटे-बटाएँ। हँसी-खुशी का वातावरण चारों ओर बनाएँ। यही मनुष्य जीवन की स्वाभाविक स्थिति है।