भारतीय शहतूत का परिचय
अपने फलों के मीठेपन से प्रसिद्ध शहतूत (Shahtoot) के पेड़ की पत्तियों व कोपलों का प्रयोग सब्जियों में भी डालकर किया जाता है एवं खनिजों की खान विशेष तौर पर इसकी पत्तियाँ सलाद के भी रूप में सेवन की जा सकती हैं।
कच्चे फलों को कढ़ी में मिलाया जाता रहा है। पके फल को साबुत अथवा नमक मिलाकर बड़े चाव से खाया जाता है। गीली अथवा सूखी पत्तियों अथवा फल को बाद में पानी में गलाकर अथवा सीधे ही चाय आदि के निर्माण में किया जा सकता है।
प्रायः बड़ी झाड़ी अथवा छोटे पेड़ के रूप में दिखने वाला शहतूत (Shahtoot) सदाबहार स्वरूप लिये होता है जिसकी लम्बाई 5-20 मीटर्स तक हो सकती है। छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश के अतिरिक्त शहतूत की खेती पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आँध्रप्रदेश एवं कर्णाटक में भी की जा रही है।
शहतूत (Shahtoot) को बीजों से व डालियों से उगाया जाता है। विश्व में शहतूत की कई प्रजातियाँ पायी जाती हैं.. काला शहतूत मुखरोगों, अपस्मार, अनिद्रा, मूत्र पथ-संक्रमण, अवसाद के उपचार में तथा सफ़ेद शहतूत (Mulberry) त्वचा की झुर्रियाँ हटाने, आथ्र्राइटिस, नेत्र रोग आदि के उपचार में सहायक पाया गया है।
शहतूत की उपयोगिताएँ
बीटा-केरोटिन – पत्तियों में इसकी मध्यम मात्रा होती है। बीटा-केरोटिन को शरीर में Vitamin-A में बदल लिया जाता है जो कि नेत्र-स्वास्थ्य व प्रतिरक्षा-तन्त्र के लिये महत्त्वपूर्ण है।
विटामिन ई – पत्तियों में प्रचुर विटामिन-ई त्वचा में नमी रखने के अतिरिक्त कैन्सर व कोरोनरी-हृदयरोगों के बचाव में सहायक है। विटामिन-ई वसा विलयशील (चर्बी में घुलनशील) होता है जिसमें जलन दूर करने वाले गुण धर्म होते हैं। यह कोशिकाओं को हानि पहुँचा रहे मुक्त मूलकों (Free – Radicles) से जूझने में महत्त्वपूर्ण है।
एस्कार्बिक अम्ल – पत्तियों में अधिक मात्रा में पाया जाने वाला एस्कार्बिक अम्ल नैसर्गिक जल-विलयशील (पानी में घुलनशील) विटामिन (Vitamin-C) है। यह जीवाणुओं से लड़ने सहित रेशेमय ऊतकों में कोलेजन के रखरखाव में महत्त्वपूर्ण है। शरीर के कुल प्रोटीन्स का एक-तिहाई भाग कोलेजन होता है।
कैल्सियम – पत्तियों में प्रचुर परिमाण में कैल्शियम ऐसा खनिज है जो अस्थियों के निर्माण के साथ उन्हें स्वस्थ रखने में एवं पेशियों के संकुचन-शिथिलन व हृदय के धड़कने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हमारे शरीर का लगभग 99 प्रतिशत कैल्शियम हमारी अस्थियों व दाँतों में होता है। प्रतिदिन पसीने, त्वचा, नाख़ून, मूत्र-मल के माध्यम से कैल्शियम शरीर से निकलता है जिससे इस खनिज को भोजन के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में प्राप्त करना आवश्यक है, वैसे भी हमारा शरीर कैल्शियम का निर्माण नहीं कर सकता।
मैन्गनिश्यम – शहतूत के फलों का मैग्नीशियम शरीर में पेशियों व तन्त्रिकाओं के कार्य ठीक रखने में एवं ऊर्जा-उत्पादन में महत्त्वपूर्ण है।
पोटेशियम – शहतूत के फलों में पाया जाने वाला पोटेशियम शरीर में तरल-संतुलन बनाये रखने के अतिरिक्त तन्त्रिका-संकेतों को सुचारु रखने में भी महत्त्वपूर्ण होता है। इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप को घटाकर सामान्य करने एवं शरीर में पानी भरने की समस्या से राहत पाने में उपयोगी हो सकता है।
लौह – पत्तियों में मध्यम मात्रा में उपस्थित लौह मानव-शरीर की पेशी-कोशिकाओं में मायोग्लोबिन के रूप में एवं लालरक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन के रूप में पाया जाने वाला खनिज है, लौह वैसे शरीर के अन्य भागों में भी रहता है।
आक्सीजन व कार्बन डाई-आक्साइड के परिवहन में लौह महत्त्वपूर्ण है। लौह की कमी से हुए एनीमिया को दूर करने में व काफ़ी रक्त स्राव हो जाने की स्थिति में शहतूत लौह के कारण विशेष सेवन-योग्य हो जाता है।
ज़िरोनिन – शहतूत की पत्तियों व फल में पाया जाने वाला यह एक एल्केलायड है जो क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को सुधारता है।
स्कोपोलेटिन – शहतूत के फलों व पत्तियों में यह एक काउमेरिन है जो रक्तचाप का विनियमन करता है।
सूक्ष्मजीवरोधी (एण्टिमाइक्रोबियल) गुण – शहतूत की पत्तियाँ सूक्ष्मजीवरोधी (एण्टिमाइक्रोबियल) गुण युक्त होती हैं, इन्हें चबाना दाढ़-दाँत व मसूढ़ों के लिये बेहतर रहता है। इस प्रकार ये दंत स्वास्थ्य में महती भूमिका निभा सकती हैं एवं दंतक्षय को कम कर सकती हैं। पत्तियों के सत में अधिक जीवाणुरोधी (Antibacterial) लक्षण देखे गये हैं।
जस्ता – शहतूत की पत्तियों में जस्ता होता है जो शरीर में कोशिका-विभाजन, कोशिकाओं की बढ़त, व घाव भरने में उपयोगी है तथा गंध ग्रहण करने व आस्वादन के भी लिये जरुरी है। शरीर में जस्ते की जैव-उपलब्धता पर्याप्त न रहने से जस्ता-कुपोषण एक विश्व – व्यापी समस्या है। अन्य वयस्कों की अपेक्षा नवजातों, बच्चों, किशोरों, गर्भवतियों व शिशुओं को दूध पिला रही स्त्रियों में जस्ते की जरूरत बढ़ जाती है।
भारतीय शहतूत के सेवन में रखे यह सावधानी
शहतूत में एंथ्राक्विनान्स, एमेरिकेनिन ऐ (नियोलिग्नेन का एक शक्तिशाली एण्टिआक्सिडेण्ट), फ़िनालिक यौगिक इत्यादि भी होते हैं। शहतूत की पत्तियों में लगभग 3.5 प्रतिशत Protein होता है।
शहतूत में मधुमेह-नियन्त्रण करने वाले तत्त्व पाये गये हैं फिर भी गर्भवतियों, शिशु को स्तनपान कराने वाली स्त्रियों एवं त्वचा-कैन्सर, वृक्करोग, पथरी की समस्याओं, यकृत-विकृतियों, मतिभ्रम (हॅल्युसिनेशन) इत्यादि.
किसी विशेष चिकित्सात्मक स्थिति वाले व्यक्तियों को शहतूत (Mulberry) अथवा प्रायः किसी भी नये अथवा अलग पदार्थ का सेवन एकदम से नहीं बढ़ाना चाहिए तथा उस स्थिति में भी अपने Doctor से विचार-विमर्श करते रहना चाहिए। कुछ-कुछ दिनों के अन्तराल से सीमित मात्रा में शहतूत-सेवन से भी पेट में गड़बड़ अथवा अन्य समस्या दिखे तो इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करें।