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राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां(Legislative Powers of President)

->राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक अभिन्न अंग है तथा उसे निम्नलिखित विधायी शक्तियां(Legislative powers) प्राप्त है-
->राष्ट्रपति को, नई लोकसभा के गठन के बाद संसद के प्रथम अधिवेशन को और प्रतिवर्ष होने वाले प्रथम अधिवेशन को संयुक्त रूप से या अलग-अलग संबोधित करने का अधिकार है|
->राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का अधिकार है परंतु प्रधानमंत्री के सिफारिश पर|
->अनुच्छेद 331 के अनुसार राष्ट्रपति को लोकसभा में दो आंग्ल-भारतीय को तथा अनुच्छेद 80(1) के तहत राज्य सभा में कला, साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान, तथा सामाजिक कार्यों में पर्याप्त अनुभव एवं दक्षता रखने वाले 12 व्यक्तियों को मनोनीत करने का अधिकार है|
->राष्ट्रपति को, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, ओबीसी आयोग एवं SC/ST आयोग के प्रतिवेदन को संसद के समक्ष रखवाने का अधिकार है|
->यदि लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त हो तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौप सकता है इसी प्रकार यदि राज्यसभा के सभापति और उपसभापति दोनों के पद रिक्त हो तो व राज्यसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौप सकता है|
->साधारण विधेयक व वित्त विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद होने पर राष्ट्रपति अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त अधिवेशन बुला सकता है|
[Note:-संविधान संशोधन विधेयक और धन विधेयक पर संयुक्त अधिवेशन नहीं बुलाई जा सकती है|]
->संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है|
->यदि लोकसभा अध्यक्ष अनुपस्थित हो तो लोकसभा उपाध्यक्ष तथा यदि दोनों अनुपस्थित हो तो राज्यसभा का उपसभापति इसकी अध्यक्षता करता है|
->आज तक भारतीय संसद के तीन संयुक्त अधिवेशन हुए है|
(I)दहेज निरोधक अधिनियम-1961
(II)बैंकिंग सेवा अधिनियम-1978
(III)पोटा-2002
->अटल बिहारी वाजपेई तीनों संयुक्त अधिवेशन में भाग लिए हैं|
->संसद में कुछ विशेष प्रकार के विधायकों को प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होना अनिवार्य है-
(I)संविधान संशोधन विधेयक
(II)धन व वित्त विधेयक
(III)नए राज्यों का निर्माण, पुराने राज्यों के नामों व सीमाओं में परिवर्तन संबंधी विधेयक
(IV)भूमि अधिग्रहण से संबंधित विधेयक
(V)संचित निधि में व्यय करने वाले विधेयक
(VI)जिस काराधान में राज्य का हित हो, उस काराधान पर प्रभाव डालने वाले विधेयक
(VII)व्यापार की स्वतंत्रता पर रोक लगाने वाले राज्य का कोई विधेयक
->राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है क्योंकि संसद का गठन राष्ट्रपति, लोकसभा एवं राज्यसभा से मिलकर होता है इसी कारण कोई भी विधेयक इसके हस्ताक्षर के बिना कानून नहीं बन सकता है|
->यदि राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दे, तो इसे वीटो कहा जाता है|
->भारत के राष्ट्रपति द्वारा तीन प्रकार के वीटो का प्रयोग किया जाता है-
(1)Pocket Veto(जेबी वीटो)
(II)Suspensive Veto(निलंबनकारी वीटो)
(III)Absolute Veto(अत्यांतिक वीटो)

Pocket Veto(जेबी वीटो)

->इस वीटो के तहत राष्ट्रपति न तो कोई सहमति देता है, न अस्वीकृत करता है और न ही लौटाता है परंतु एक अनिश्चित समय के लिए विधेयक को लंबित कर देता है|
->राष्ट्रपति इस वीटो शक्ति का प्रयोग इसलिए कर पाते हैं क्योंकि संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है, कि किसी विधेयक पर कितने समय में राष्ट्रपति द्वारा Sign किया जाना चाहिए|
->1986 में डाकघर संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति ‘ज्ञानी जैल सिंह’ ने इस वीटो का प्रयोग किया था जिसके कारण यह बिल 2010 तक राष्ट्रपति के जेब में ही रहा था|
Suspensive Veto(निलंबनकारी वीटो)
->इसके तहत राष्ट्रपति, संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित साधारण विधेयक और वित्त विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है| यदि लौटाया गया विधेयक पुनः दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य होता है|
->42वें संविधान संशोधन, 1976 के तहत राष्ट्रपति को पहली बार में ही हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर दिया गया था, परंतु 44 वें संविधान संशोधन, 1978 के तहत एक बार पुनः विचार करने हेतु लौटाने की छूट प्रदान की गई|
Note:-
->राष्ट्रपति किसी धन विधेयक को अपनी स्वीकृति या तो दे सकता है या उसे रोककर रख सकता है परंतु उसे संसद को पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता है|
->राज्य विधानमंडल द्वारा पुनः पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य नहीं होता है|
Absolute Veto(अत्यांतिक वीटो)
->इस वीटो के तहत राष्ट्रपति, संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को अपने पास सुरक्षित रखता है, जिसके कारण उस विधेयक का अस्तित्व समाप्त हो जाता और अधिनियम नहीं बन पाता है|
->सामान्यत: यह वीटो निम्न दो मामलों में प्रयोग किया जाता है|
(1)सांसद के गैर सरकारी सदस्यों(अर्थात संसद का वह सदस्य जो मंत्री ना हो) द्वारा प्रस्तुत विधेयक के मामलों में|
(2)जब विधेयक पारित हो गया हो और राष्ट्रपति की अनुमति मिलना बाकी हो तथा किसी कारणवश मंत्रिमंडल त्याग पत्र दे दे और नया मंत्रिमंडल, राष्ट्रपति को ऐसे विधेयक पर अपनी सहमति न देने की सलाह दे|
->पहली बार इसका प्रयोग राजेंद्र प्रसाद द्वारा पीईपीएसयू विनियोग विधेयक 1954 के संदर्भ में किया गया था|
Note:-
->संविधान संशोधन से संबंधित अधिनियमों में राष्ट्रपति के पास कोई वीटो शक्ति नहीं है|
->24 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1971 के तहत राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक पर स्वीकृति देने के लिए बाध्यकारी बना दिया|

अध्यादेश जारी करने की शक्ति

->संविधान के अनुच्छेद 123 के अंतर्गत राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति दी गई है|
->अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा तब जारी किया जाता है, जब संसद का दोनों सत्र नहीं चल रहा हो अथवा दोनों में से किसी भी एक सदन का सत्र न चल रहा हो और तुरंत किसी कानून की आवश्यकता हो|
->अध्यादेश मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर जारी किया जाता है|
->अध्यादेश अस्थायी कानून है|
->इसका प्रभाव अधिनियम (Act)जैसा ही होता है|
->इसका प्रभाव संसद सत्र के शुरू होने के 6 सप्ताह तक रहता है यदि 6 सप्ताह के भीतर इसे दोनों सदनों से पास कर दिया जाता है तो यह स्थायी कानून बन जाता है अन्यथा अध्यादेश प्रभावहीन हो जाता है|

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