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भारत के प्रमुख मंदिर| Important Temples of India

भारत के प्रमुख मंदिर

 

शोर मंदिर (महाबलीपुरम, तमिलनाडु): भारत के प्रमुख मंदिर

  • शोर मंदिर की मूर्तिकला पल्लव वास्तुकला का एक खूबसूरत उदहारण हैं। इसके अलावा 7-8 वीं शताब्दी के दौरान की द्रविड़ वास्तुशैली की झलक भी मंदिर में देखने को मिलती हैं।
  • यह नरसिंहवर्मन के शासनकाल के दौरान निर्मित महाबलीपुरम में ग्रेनाइट से बना मंदिर है।
  • मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है, जिसमें परिसर के भीतर तीन मंदिरों में से एक में अनंतशयन विष्णु की मूर्ति है।
  • शोर मंदिर की ऊंचाई 60 फिट हैं जोकि एक पिरामिडनुमा संरचना है। 50 फीट वर्गाकार क्षेत्र में बना यह दर्शनीय मंदिर द्रविड़ वास्तुशैली का अद्भुत उदहारण हैं और यह भारत के सबसे खूबसूरत पत्थर मंदिरों में से एक है।
  • शोर मंदिर को वर्ष 1984 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में भी शामिल किया जा चुका है।

कैलाश मंदिर (एलोरा, महाराष्ट्र): भारत के प्रमुख मंदिर

  • 276 फीट लंबे और, 154 फीट चौड़े इस मंदिर की खासियत ये है कि इसे केवल एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है।
  • इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है।
  • इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट राजा कृष्ण के शासनकाल के दौरान किया गया था और यह 8 वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य का है।
  • कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में करीब 40 हजार टन वजनी पत्थरों को काटा गया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसका रूप हिमालय के कैलाश की तरह देने का प्रयास किया गया था।

सूर्य मंदिर (कोणार्क, उड़ीसा): भारत के प्रमुख मंदिर

sun temple konark
  • कोणार्क में सूर्य मंदिर जिसका निर्माण पूर्वी गंगा शासक नरसिंहदेव प्रथम ने लगभग 1250 ई. में कराया था ।
  • विशाल मंदिर में मूल रूप से एक गर्भगृह था, जिसमें एक ऊंचा घुमावदार शिखर, एक जगमोहन और एक नृत्य हॉल, एक ही धुरी पर बनाया गया था, और तीन प्रवेश द्वारों के साथ एक विस्तृत परिसर की दीवार थी।
  • इसकी कल्पना कलिंग वास्तुकला (वास्तुकला की ओडिशा शैली) में निर्मित सूर्य भगवान के विशाल रथ के रूप में की गई है।
  • यह कलिंग वास्तुकला की उपलब्धि का सर्वोच्च बिंदु है जो अनुग्रह, खुशी और जीवन की लय को दर्शाता है।
  • इसे वर्ष 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
  • यह एक विशाल और अद्भुत संरचना है, जिसकी कल्पना 12 जोड़ी सजावटी पहियों के साथ एक विशाल रथ के रूप में की गई है, जिसे सात पालने वाले घोड़ों द्वारा खींचा गया है।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर के दोनों ओर 12 पहियों की दो पंक्तियाँ हैं। कुछ लोगों का मत है कि 24 पहिये दिन के 24 घंटों के प्रतीक हैं, जबकि अन्य का कहना है कि 12-12 अश्वों की दो कतारें वर्ष के 12 माह की प्रतीक हैं।
  • सात घोड़ों को सप्ताह के सातों दिनों का प्रतीक माना जाता है।
  • समुद्री यात्रा करने वाले लोग एक समय में इसे ‘ब्लैक पगोडा’ कहते थे, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि यह जहाज़ों को किनारे की ओर आकर्षित करता है और उनको नष्ट कर देता है।

लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर, उड़ीसा): भारत के प्रमुख मंदिर

  • 11वीं शताब्दी में निर्मित लिंगराज मंदिर, भगवान शिव को समर्पित मंदिर है इसे  भुवनेश्वर (ओडिशा) शहर का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण सोमवंशी राजा ययाति प्रथम (Yayati I) ने करवाया था।
  • यह लाल पत्थर से निर्मित है जो कलिंग शैली की वास्तुकला (Kalinga style of Architecture) का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • मंदिर को चार वर्गों में विभाजित किया गया है –
    • विमान (गर्भगृह युक्त संरचना)
    • यज्ञ शाला (प्रार्थना के लिये हॉल)
    • भोग मंडप (प्रसाद हेतु हॉल)
    • नाट्य शाला (नृत्य के लिये हॉल)।
  • मंदिर का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि यह ओडिशा में शैव और वैष्णववाद संप्रदायों के समन्वय का प्रतीक है। इसका एक कारण शायद यह हो सकता है कि भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु का एक अवतार) और लिंगराज मंदिर दोनों का विकास एक ही समय पर हुआ है।
  • मंदिर में मौजूद देवता को हरि-हारा ( Hari-Hara) के नाम से जाना जाता है जिसमे हरि का अर्थ भगवान विष्णु और हारा का अर्थ है भगवान शिव।

लक्ष्मण मंदिर (खजुराहो, मध्य प्रदेश): भारत के प्रमुख मंदिर

  • लक्ष्मण मंदिर से मिले एक अभिलेख से पता चलता है की चंदेल वंश के 7वी पीढ़ी में हुए राजा यशोवर्मन ने उनके अवसान से पहले खजुराहो में वैकुंठ विष्णु का मंदिर का निर्माण करवाया था। राजा यशोवर्मन का अवसान 954 में हुआ था। इससे यह मालूम होता है की लक्ष्मण मंदिर करीबन 930 से 950 के मध्य में इसका निर्माण करवाया था।
  • लक्ष्मण मंदिर नागर शैली के हिंदू मंदिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • यह मंदिर कामुक मूर्तियों के लिए जाना जाता है।
  • लक्ष्मण मंदिर में केंद्रीय देवता विष्णु की एक छवि है जो उनके तीन सिर वाले रूप में वैकुंठ के नाम से जानी जाती है।
  • इस मंदिर की शिल्प और वास्तुकला की विलक्षणताओ से यह यह मालूम होता है की यह मंदिर वैकुंठ विष्णु भगवान को समर्पित है परंतु इस मंदिर का नामकरण मंदिर के निर्माता यशोवर्मन के उपनाम लक्षवर्मा के नाम से आधार पर इस मंदिर का नाम लक्ष्मण मंदिर रखा गया।

मीनाक्षी मंदिर (मदुरै, तमिलनाडु): भारत के प्रमुख मंदिर

मीनाक्षी मंदिर (मदुरै, तमिलनाडु): भारत के प्रमुख मंदिर
  • मीनाक्षी मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का एक प्रमुख उदाहरण है।
  • इस इमारत समूह में 12 भव्य गोपुरम हैं, जो अतीव विस्तृत रूप से शिल्पित हैं। इन पर बडी़ महीनता एवं कुशलतापूर्वक रंग एवं चित्रकारी की गई है।
  • माता पार्वती  के मीनाक्षी अवतार का यह अलौकिक मंदिर तमिलनाडु के मदुरै शहर में स्थापित है।
  • यह हिन्दू देवता शिव (“‘सुन्दरेश्वरर”’ या सुन्दर ईश्वर के रूप में) एवं उनकी भार्या देवी पार्वती (मीनाक्षी या मछली के आकार की आंख वाली देवी के रूप में) दोनो को समर्पित है। यह ध्यान योग्य बात है कि मछली पांड्य राजाओं का राजचिह्न था।
  • यह मंदिर देश के बाकि मंदिरों से काफी अलग है क्योंकि इस मंदिर में शिव और देवी पार्वती दोनों की एक साथ पूजा की जाती है।
  • इसमें 40 से अधिक शिलालेख हैं।
  • यह मुख्य द्वार पर 3 मंजिला गोपुरम के लिए प्रसिद्ध है।
  • कहा जाता है कि मीनाक्षी मंदिर का गर्भगृह अत्यंत ही प्राचीन है। यह करीब पैतीस सौ वर्ष पुराना है। मंदिर की बाहरी दीवारें तकरीबन 2000 वर्ष पुरानी हैं। वैसे हिन्दू शैव मतावलम्बियों के अनुसार मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में हुआ था। 1310 ईं.स. में मुस्लिम शासक मलिक कफूर ने मंदिर में लूटपाट की थी, और मंदिर के कई हिस्सों को नष्ट कर दिया था।
  • फिर इसके पुनर्निर्माण का उत्तरदायित्व आर्य नाथ मुदलियार (1559-1600 A.D.), मदुरई के प्रथम नायक के प्रधानमन्त्री, ने उठाया। वे ही ‘पोलिगर प्रणाली’ के संस्थापक थे। फिर तिरुमलय नायक, लगभग 1623 से 1659 का सर्वाधिक मूल्यवान योगदान हुआ।
  • मंदिर परिसर में 165 फीट लंबा और 120 फीट चौड़ा एक पवित्र सरोवर भी है।
  • इस मन्दिर का स्थापत्य एवं वास्तु आश्चर्यचकित कर देने वाला है, जिस कारण यह आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में प्रथम स्थान पर स्थित है, एवं इसका कारण इसका विस्मयकारक स्थापत्य ही है।

बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर, तमिलनाडु): भारत के प्रमुख मंदिर

Brihadeswara Temple
  • बृहदीश्वर मन्दिर या राजराजेश्वरम् तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे पेरुवुटैयार कोविल भी कहते हैं। यह मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट नि‍र्मि‍त है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्‍तुशिल्‍प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है।
  • इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने करवाया था। उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है।
  • 13 मंजिला बने इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है।
  • यह गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर और ऐरावतेश्वर मंदिर के साथ महान जीवित चोल मंदिरों में से एक है।
  • इसे दक्षिण मेरु भी कहा जाता है और यह कावेरी नदी के तट पर स्थित है।
  • करीब 216 फीट की ऊंचाई वाले इस मंदिर को 130,000 टन ग्रेनाइट के पत्‍थरों से बनाया गया है। आश्‍चर्य की बात यह है कि तंजौर में आस-पास 60 किमी तक न कोई पहाड़ और न ही पत्‍थरों की कोई चट्टानें हैं। अब सवाल यह उठता है कि यह भारी-भरकम पत्‍थर यहां आए कहां से और कैसे लाए गए। कहते हैं यहां 3 हजार हाथियों की मदद से इन पत्‍थरों को यहां लाया गया था।
  • इन पत्‍थरों को जोड़ने में कोई सीमेंट, प्‍लास्‍टर, सरिया या फिर अन्‍य किसी वस्‍तु का प्रयोग नहीं किया गया है। बल्कि पत्‍थरों को पजल तकनीक से आपस में जोड़कर तैयार किया गया है। मंदिर का मजबूत आधार इस प्रकार से तैयार किया गया है कि हजार साल बाद भी इतना ऊंचा मंदिर आज भी एकदम सीधा खड़ा है।

दशावतार विष्णु मंदिर (देवघर, उत्तर प्रदेश): भारत के प्रमुख मंदिर

  • उत्तर प्रदेश में झांसी के पास देवगढ़ में बेतवा नदी के किनारे एक विष्णु मंदिर है। जो भारत के पुराने मंदिरों में एक है।
  • इस मंदिर में सुंदर नक्काशी के जरिये भगवान विष्णु के दस अवतारों की कहानी बताई गई है। इसलिए इसे दशावतार मंदिर कहा जाता है।
  • मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ती नर नारायण तपस्या के आकार में है और दूसरी मूर्ती है जिसमें वह एक नाग पर लेटे हैं।
  • ये करीब 1500 साल पुराना है। माना जाता है कि ये गुप्त शासनकाल में बनवाया गया था।
  • हालांकि ये मंदिर अब जर्जर हालात में है। यहां हुई खुदाई के दौरान मंदिर के चारों कोनो पर छोटे और चौकोर देवालयों के अस्तित्व का पता लगा। इस कारण कहा जा सकता है कि ये मंदिर उत्तर भारत में पंचायतन शैली का शुरुआती उदाहरण है।

सूर्य मंदिर (मोढेरा, गुजरात): भारत के प्रमुख मंदिर

  • मोढेरा सूर्य मंदिर गुजरात के मेहसाना जिले के “मोढेरा” नामक गाँव में पुष्पावती नदी के किनारे प्रतीष्ठित है। यह स्थान पाटन से ३० किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
  • यह सूर्य मन्दिर भारतवर्ष में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है।
  • सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा सन् 1026 ई॰ में इस मन्दिर का निर्माण किया गया था। वर्तमान समय में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और इस मन्दिर में पूजा करना निषिद्ध है।
  • मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर के निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं किया गया है।
  • इस मन्दिर परिसर के मुख्य तीन भाग हैं- गूढ़मण्डप (मुख्य मन्दिर), सभामण्डप तथा कुण्ड (जलाशय)।
  • भीमदेव ने इस मंदिर को दो हिस्सों में बनवाया था। पहला हिस्सा गर्भगृह था और दूसरा सभामंडप। सभामंडप के आगे एक विशाल कुंड बना हुआ है, जिसे लोग सूर्यकूंड या रामकुंड के नाम से जानते हैं।
  • इसके मण्डपों के बाहरी भाग तथा स्तम्भों पर अत्यन्त सूक्ष्म नक्काशी की गयी है।
  • कुण्ड में सबसे नीचे तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं तथा कुछ छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।

लड़खान मंदिर (ऐहोल, कर्नाटक): भारत के प्रमुख मंदिर

  • पाँचवीं शताब्दी के मध्य में निर्मित यह मन्दिर चालुक्य मंदिर स्थापत्य के विकास केन्द्र ऐहोल का सबसे प्राचीन है। मन्दिर सपाट तथा नीची छत वाला है।
  • इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशीय राजा पुलकेशिन प्रथम द्वारा 553-67 BCE में करवाया गया था वही मंदिर के बाकी हिस्सों को आगे बढ़ने का कार्य उनके पुत्र पुलकेशिन द्वितीय ने किया था।
  • मूलरूप से यह वैष्णव मन्दिर था, परंतु बाद में स्थापित की गई नन्दि मूर्ति से यह शैव मन्दिर बन गया है।

महाबोधि मंदिर परिसर (बोधगया, बिहार): भारत के प्रमुख मंदिर

  • महाबोधि मंदिर परिसर भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र स्थलों में से एक है, और विशेष रूप से आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रशिद्ध है।
  • इस मंदिर परिसर का महात्‍मा बुद्ध के जीवन (566-486 ईसा पूर्व) से सीधा संबंध है क्‍योंकि यह वही स्‍थान है जहां 531 ईसा पूर्व में उन्‍होंने बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर सर्वोच्‍च और संपूर्ण अंतरज्ञान प्राप्‍त किया था।
  • यहां उनके जीवन और तत्‍पश्‍चात उनकी पूजा से जुड़ी घटनाओं के असाधारण रिकॉर्ड उपलब्‍ध हैं, विशेषकर उस समय के जब 260 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक इस स्‍थान पर तीर्थ यात्रा पर आए थे और उन्‍होंने बोधि वृक्ष के स्‍थल पर पहले मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • महाबोधि मंदिर परिसर बोध गया शहर के ठीक बीचों – बीच में स्थित है। इस स्‍थल पर एक मुख्‍य मंदिर है तथा एक प्रांगण के भीतर छह पवित्र स्‍थान हैं और दक्षिण की ओर के प्रांगण के ठीक बाहर, कमल कुंड नामक एक सातवां पवित्र स्‍थान है।
  • यह प्रारंभिक बौद्ध मंदिरों में से एक है, जो पूरी तरह से ईंट से बना है, जो अभी भी भारत में गुप्त काल के अंत से खड़ा है। ईंट का काम बुद्ध के जीवन को दर्शाता है।
  • महाबोधि का सेंट्रल टावर 180 फीट लंबा यानि 54 मीटर है।
  • यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।

जगन्नाथ मंदिर (पुरी, उड़ीसा): भारत के प्रमुख मंदिर

  • यह एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है जो भगवान विष्णु के एक रूप भगवान जगन्नाथ को समर्पित है।
  • इस मन्दिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है।
  • जब भारत के मंदिरों में अधिकांश देवता पत्थर या धातु से बने होते हैं, जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी से बनी होती है जिसे हर बारह या उन्नीस वर्षों में पवित्र वृक्षों का उपयोग करके औपचारिक रूप से बदल दिया जाता है।
  • इसे यमनिका तीर्थ भी कहते हैं।
  • पुरी का यह मंदिर अपने वार्षिक रथ उत्सव, रथ यात्रा के लिए प्रसिद्ध है।
  • जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा मंदिर में पूजे जाने वाले देवताओं की तिकड़ी हैं।

होयसलेश्वर मंदिर (हलेबिदु, कर्नाटक): भारत के प्रमुख मंदिर

  • होयसलेश्वर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है जो कर्नाटक के हालेबिदु नामक स्थान पर स्थित है। यह बेलूर से 16 किमी दूर है। इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा विष्णुवर्धन के काल में हुआ था।
  • होयसल मंदिर, की शैली हाइब्रिड और बेसर शैली का मिश्रण है। क्योंकि यह अनूठी शैली न तो पूरी तरह द्रवीण है और न नागर शैली।

परशुरामेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर, उड़ीसा): भारत के प्रमुख मंदिर

  • यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और राज्य के सबसे पुराने मौजूदा मंदिरों में से एक है।
  • ऐसा माना जाता है कि इसे वास्तुकला की नागर शैली में 650 सीई के आसपास बनाया गया था जो ऊर्ध्वाधर संरचना पर जोर देता है और इसमें 10 वीं शताब्दी के पूर्व के उड़ीसा शैली के मंदिरों की सभी मुख्य विशेषताएं हैं।
  • यह पहला मंदिर है जिसमें पहले के मंदिरों की तुलना में जगमोहन नामक एक अतिरिक्त संरचना है, जिसमें केवल विमान था।

मुक्तेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर, उड़ीसा): भारत के प्रमुख मंदिर

  • 950 ई के आसपास निर्मित मुक्तेश्वर मंदिर को अक्सर ओडिशा की वास्तुकला का एक लघु रत्न कहा जाता है।
  • इसकी वास्तुकला कलिंग वास्तुशैली के शुरुआती और बाद के चरणों के बीच एक संक्रमण बिंदु को चिह्नित करती है। इसी कारण से कई इतिहासकार इस मंदिर को नई संस्कृति का अग्रदूत कहते हैं।
  • मंदिर देवी सरस्वती, भगवान गणेश और भगवान शिव को समर्पित है जिनके आराधनास्थल यहां स्थापित किए गए हैं।
  • इसके जगमोहन अथवा पोर्च की जालीदार खिड़कियां परशुरामेश्वर मंदिर से मिलती जुलती हैं।
  • इस मंदिर का एक आकर्षण इसकी मूर्तियां हैं, उदाहरण के लिए इसके जगमोहन की खिड़कियों के आस-पास गढ़ी हुई बंदरों की मूर्तियाँ पंचतंत्र की प्राचीन भारतीय कहानियों से लिए गए हास्य दृश्यों को चित्रित करती हैं।
  • चूँकि यह 35 फुट ऊँचा मंदिर आकार में काफ़ी छोटा है, इसलिए यह स्पष्ट होता है कि यह एक प्राचीन संरचना है क्योंकि उस समय तक ओडिशा में बड़े मंदिरों का निर्माण प्रारंभ नहीं हुआ था।
  • मंदिर का शानदार तोरण, एक सजावटी धनुषाकार प्रवेश द्वार, उड़ीसा में बौद्ध धर्म की याद दिलाता है।

दिलवाड़ा मंदिर (माउंट आबू, राजस्थान): भारत के प्रमुख मंदिर

  • जैन तीर्थंकरों को समर्पित दिलवाड़ा मंदिर। ये सोलंकी शासकों के संरक्षण में बनाए गए थे।
  • वास्तुपाल तेजपाल द्वारा डिजाइन किया गया और 11 वीं और 13 वीं शताब्दी के बीच विमल शाह द्वारा निर्मित, यह मंदिर अपने संगमरमर और जटिल नक्काशी की वजह से बेहद प्रसिद्ध है।
  • यह शुद्ध सफेद संगमरमर में बनाया गया था और उत्कृष्ट मूर्तिकला से सजाया गया था।

विट्ठल मंदिर (हंपी, कर्नाटक): भारत के प्रमुख मंदिर

  • विट्ठल मंदिर एक 15वीं सदी की संरचना है जो भगवान विट्ठल या भगवान विष्णु को समर्पित है। विट्ठल को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
  • तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित यह मंदिर मूल दक्षिण भारतीय द्रविड़ मंदिरों की स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता है।
  • विट्ठल मंदिर का निर्माण राजा देवराय द्वितीय के शासनकाल (1422 से 1446 ईसवी) के दौरान किया गया था और यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य द्वारा अपनाई गई शैली का प्रतीक है।
  • रंग मंडप और 56 संगीतमय स्तंभ जिन्हें थपथपाने से संगीत सुनाई देता है, विट्ठल मंदिर की उत्कृष्ट आकृतियां हैं।
  • मूर्तियों को भीतर के गर्भगृह में रखा गया है और यहां केवल मुख्य पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं। छोटा गर्भगृह आम जनता के लिए खुला है जबकि स्मारकीय सजावट बड़े गृह में देखी जा सकती है।
  • इस मंदिर के परिवेश में मौजूद एक पत्थर का रथ इस मंदिर का एक अन्य प्रमुख आकर्षण है। इसे गरुड़ मंडप कहते हैं।
  • परिसर की पूर्वी दिशा में स्थित, यह रथ वजनदार होने के बावजूद इसके पत्थर के पहियों की मदद से इसे स्थानांतरित किया जा सकता है।

गोमतेश्वर बाहुबली मंदिर (हासन जिले, कर्नाटक में श्रवणबेलगोला): भारत के प्रमुख मंदिर

  • श्रवणबेलगोला की मूर्ति को दुनिया की सबसे बड़ी मुक्त-खड़ी मूर्तियों में से एक माना जाता है, जिसे 983 ईस्वी में गंगा वंश के मंत्री चामुंडा-राय द्वारा बनाया गया था।
  • महामस्तकाभिषेक महोत्सव भगवान बाहुबली की मूर्ति का अभिषेक समारोह है। इस महोत्सव को प्रत्येक 12 सालो में एक बार मनाया जाता है।
  • इसे बाहुबली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
  • दुनिया की सबसे ऊंची अखंड मूर्ति (गोमतेश्वर की) ग्रेनाइट के एक ब्लॉक से खुदी हुई है।
  • यह एक जैन मंदिर है जो 57 फीट ऊंचा है।
  • प्राचीन ग्रंथो के अनुसार बाहुबली यानि की गोमतेश्वर जैन प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव यानि की आदिनाथ के दूसरे पुत्र थे।

स्वर्ण मंदिर (अमृतसर, पंजाब): भारत के प्रमुख मंदिर

  • स्वर्ण मंदिर को श्री हरमंदिर साहब और श्री दरबार साहब के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस भव्य गुरुद्वारे की नींव श्री गुरु राम दास जी ने 1577 ई. में रखी थी। जिसके बाद सिखों के पांचवे गुरू अर्जन देव जी ने 15 दिसंबर, 1588 को इसका निर्माण कार्य शुरू किया और पहली बार 16 अगस्त, 1604 ई. को श्री हरमंदिर साहिब में स्थापित किया गया था।
  • महाराजा रणजीत सिंह द्वारा दान की गई संपत्ति और सामग्री से 1980 में मंदिर को सोने में मढ़वाया गया था।

कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो, मध्य प्रदेश): भारत के प्रमुख मंदिर

  • खजुराहो के मंदिरों में सबसे विशाल कंदरिया महादेव मंदिर मूलतः शिव मंदिर है।
  • मंदिर का निर्माणकाल 1025 -1050 सन् ई मे राजा विद्याधर चंदेल ने गजनवी से विजय के बाद करवाया था।
  • यह शिवलिंग संगमरमर से बना है। मंदिर की दीवारों पर बहुत ही सुंदर नक्काशी की गई है।  इस मंदिर को सामने से देखने से ऐसा लगता है, कि जैसे हम किसी गुफा में प्रवेश कर रहे हैं।
  • गुफा को कंदरा भी कहते हैं इसलिए इस का नाम कंदरिया महादेव मंदिर पड़ा। अर्थात कंदरा में रहने वाले शिव।
  • एक अन्य मत के अनुसार इसका कंदरिया नामांकरण, भगवान शिव के एक नाम कंदर्पी के अनुसार हुआ है। इसी कंदर्पी से कंडर्पी शब्द का विकास हुआ, जो कालांतर में कंदरिया में परिवर्तित हो गया।
  • कंदरिया महादेव मंदिर सभी तरफ आकाशीय अप्सराओं, मिथुनों और कई देवताओं से सुशोभित है।

काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी, उत्तर प्रदेश): भारत के प्रमुख मंदिर

  • विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है। ये मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर है. कहा जाता है कि इस मंदिर का दोबारा निर्माण 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था। 1194 ईसवी में मुहम्मद गौरी ने इसे ध्वस्त कर दिया था। परंतु मंदिर का पुन निर्माण करवाया गया लेकिन 1447 ईसवी में इसे एक बार फिर जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। इतिहास के पन्नों में झांकने पर यह ज्ञात होता है कि काशी मंदिर के निर्माण और तोड़ने की घटनाएं 11वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रही।
  • 1585 में राजा टोडरमल की मदद से पंडित नारायण भट्ट ने विश्वनाथ मंदिर का एक बार फिर से निर्माण करवाया लेकिन एक बार फिर 1632 में शाहजंहा ने मंदिर का विध्वंस करने के लिए अपनी सेना भेजी लेकिन सेना अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई।  इसके बाद औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 में इस मंदिर को ध्वस्त करा दिया।
  • 1669 ई. में, सम्राट औरंगजेब ने मंदिर को नष्ट कर दिया और उसके स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया।
  • मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा।
  • स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था। शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं पड़ा।
  • 1780 में मल्हार राव की बहू अहिल्याबाई होल्कर ने मस्जिद से सटे वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया।
  • यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
  • मुख्य देवता विश्वनाथ या विश्वेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड के शासक है। वाराणसी शहर को काशी भी कहा जाता है। इसलिए मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है।
  • इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है।
  • यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया था।

विरुपाक्ष मंदिर (कर्नाटक): भारत के प्रमुख मंदिर

  • तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर हेम कूट पहाड़ी की तलहटी पर बने इस मंदिर का गोपुरम 50 मीटर ऊंचा है।
  • भगवान शिवजी के अलावा इस मंदिर में भुवनेश्वरी और पंपा की मूर्तियां भी बनी हुई हैं। इस मंदिर के पास छोटे-छोटे और मंदिर हैं जो कि अन्य देवी देवताओं को समर्पित हैं।
  • विरुपाक्ष मंदिर विक्रमादित्य द्वितीय की रानी लोकमाह देवी द्वारा बनवाया गया था।
  • द्रविड़ स्थापत्य शैली में ये मंदिर ईंट तथा चूने से बना है।
  • यह हम्पी में स्मारकों के समूह का एक हिस्सा है जिसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है।

नटराज मंदिर/चिदम्‍बरम मंदिर (तमिलनाडु): भारत के प्रमुख मंदिर

  • भारतीय राज्य तमिलनाडु में स्थित नटराज मंदिर को चिदम्‍बरम मंदिर और थिल्लई नटराज मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
  • नटराज मंदिर के इसी भवन में गोविंदराज और पंदरीगावाल्ली का मंदिर भी स्थित है। यह मंदिर देश के उन कम मंदिरों में मंदिर में यह मंदिर शामिल हैं जहां शिव व वैष्णव दोनों देवता एक ही स्थान पर विराजमान हैं।
  • मंदिर की दीवार की नक्काशी भरत मुनि द्वारा नाट्य शास्त्र से सभी 108 करणों को प्रदर्शित करती है; ये मुद्राएं एक शास्त्रीय भारतीय नृत्य भरतनाट्यम की नींव बनाती हैं।
  • यह 10 वीं शताब्दी में बनाया गया था जब चिदंबरम चोल वंश की राजधानी थे।
  • यह दक्षिण भारत में सबसे पुराने जीवित सक्रिय मंदिर परिसरों में से एक है।
  • मंदिर का निर्मणा विक्रम चोल ने किया था। पल्लव राजा सिंहवरम ने मंदिर को पुनर्निर्मित करवाया था।

रामनाथस्वामी मंदिर (तमिलनाडु): भारत के प्रमुख मंदिर

  • रामनाथस्वामी मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य में रामेश्वरम द्वीप पर स्थित भगवान शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है।
  • यह पवित्र तीर्थस्थल तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है।
  • भारतीय धर्मग्रंथों में बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम यात्रा का अपना ही महत्व है। यह तीर्थ हिंदुओं के चार धामों में से एक प्रमुख है। इसके अलावा मंदिर में स्थापित शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक शिवलिंग माना जाता है।
  • यह भारत के सभी हिंदू मंदिरों में सबसे लंबा गलियारा है।
  • इसे द्रविड़ शैली की वास्तुकला में बनाया गया है।

रंगनाथस्वामी मंदिर (तमिलनाडु): भारत के प्रमुख मंदिर

  • यह विष्णु के 108 पवित्र मंदिरों में एक है जिसे भारत का दिव्य देसम भी कहते हैं।
  • यह विजयनगर काल में निर्मित द्रविड़ शैली में निर्मित है।
  • मुख्य मंदिर को रंगनाथ स्वामी मंदिर कहा जाता है, जो भगवान का शयन कक्ष है। इस मंदिर में विष्णु की प्रतिमा शयन मुद्रा में है। साथ ही विष्णु की खड़ी प्रतिमा, कृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती, श्रीराम, नरसिम्हा के विविध रूप और वैष्णव संतों की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में गंग राजवंश के दौर में हुआ था।
  • यह जुड़वां नदी- कावेरी और कोलेरून द्वारा निर्मित द्वीप पर स्थित है।
  • सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र निकाय द्वारा सम्मानित किया जाने वाला पहला मंदिर।
  • इसका गोपुरम एशिया का सबसे बड़ा गोपुरम है, जो 237 फीट का है।
  • साथ ही, यह दुनिया का सबसे बड़ा पूजनीय हिंदू मंदिर है। इसका विस्तार 155 एकड़ में है। हालांकि कंबोडिया के अंकोरवाट को भी सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। विस्तार में वह मंदिर 400 एकड़ में है, लेकिन उसे अब पर्यटन स्थल के रूप में ही जाना जाता है। वहां व्यापक स्तर पर धार्मिक आयोजन व पूजा-पाठ नहीं होता।

पद्मनाभस्वामी मंदिर (केरल): भारत के प्रमुख मंदिर

  • पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है।
  • मंदिर की संरचना में सुधार कार्य किए जाते रहे हैं। उदाहरणार्थ 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था।
  • मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं।
  • मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती तथा स्त्रियों को साड़ी पहनना अनिवार्य है।
  • यह मंदिर केरल और द्रविड़ वास्तुशिल्प शैली का अनुपम उदाहरण है। इसे दुनिया का सबसे धनी मंदिर माना जाता है।
  • यह विष्णु के 108 पवित्र मंदिरों में एक है जिसे भारत का दिव्य देसम भी कहते हैं।
  • इस मंदिर में 7 तहखाने हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी खोले गए थे, जिसमें एक लाख करोड़ रुपये के हीरे और जूलरी निकली थी। इसके बाद जैसे ही टीम ने वॉल्ट-बी यानी की सातवां दरवाजे के खोलने की शुरुआत की, तो दरवाजे पर बने कोबरा सांप के चित्र को देखकर काम रोक दिया गया। कई लोगों की मान्यता थी कि इस दरवाजे को खोलना अशुभ होगा।

तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर (आंध्रप्रदेश): भारत के प्रमुख मंदिर

  • तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर तिरुपति में स्थित भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है।
  • श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है। इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं।
  • तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है। तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था।
  • कहा जाता है भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर बाल लगे हैं जो असली हैं। यह बाल कभी भी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान खुद विराजमान हैं।
  • जब मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करेंगे तो ऐसा लगेगा कि भगवान श्री वेंकेटेश्वर की मूर्ति गर्भ गृह के मध्य में है। लेकिन आप जैसे ही गर्भगृह के बाहर आएंगे तो चौंक जाएंगे क्योंकि बाहर आकर ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान की प्रतिमा दाहिनी तरफ स्थित है। अब यह सिर्फ भ्रम है या कोई भगवान का चमत्कार इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है।
  • मान्यता है कि भगवान के इस रूप में मां लक्ष्मी भी समाहित हैं जिसकी वजह से श्री वेंकेटेश्वर स्वामी को स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र पहनाने की परम्परा है।
  • श्री वेंकेटेश्वर स्वामी मंदिर में एक दीया हमेशा जलता रहता है और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस दीपक में कभी भी तेल या घी नहीं डाला जाता। यहां तक कि यह भी पता नहीं है कि दीपक को सबसे पहले किसने और कब प्रज्वलित किया था।
  • भगवान वेंकेटेश्वर की मूर्ति पर कान लगाकर सुनें तो समुद्र की लहरों की ध्वनि सुनाई देती है। यह भी कहा जाता है कि भगवान की प्रतिमा हमेशा नम रहती है।

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