मसूर को विश्व के सबसे पुराने स्वास्थ्य – वर्द्धक खाद्य के रूप में जाना जाता है। 800 ईसापूर्व में मध्य-पूर्व में मसूर की खेती आरम्भ की गयी। यूनानी इसे ‘निर्धनों के खाने की फली’ कहते हैं तो मिस्रवासियों द्वारा इसे राजसी आहार कहा जाता है। मसूर को अमेरिका में सोलहवीं शताब्दी में ले जाया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लोगों ने मसूर को सस्ते खाद्य एवं माँस के हाई-प्रोटीन विकल्प के रूप में देखना शुरु किया।
प्रोटीन के सन्दर्भ में अन्य फलियों से तुलना करें तो सर्वाधिक प्रोटीन सोयाबीन में एवं दूसरे स्थान पर सर्वाधिक प्रोटीन मसूर में मिलता है। मसूर कई किस्मों में आती है जिनमें भूरी, हरी व लाल प्रचलित हैं किन्तु हरी मसूर अधिक पौष्टिक मानी गयी है।
मसूर दाल के फायदे और विशेषताएं
ग्लुटेन-मुक्त – कुछ अनाजों में पाया जाने वाला ग्लुटेन मसूर (Masoor) में नहीं होता, ग्लुटेन से कुछ व्यक्तियों को एलर्जी होती है जिससे पेट सम्बन्धी कुछ परेशानियाँ आती-जाती रहती हैं।
प्रोटीन – मसूर में विपुल मात्रा में उपलब्ध प्रोटीन अस्थियों, पेशीयों व त्वचा की निर्माण-सामग्री तैयार करने का कार्य करता है। कम मसूर में भी पेट भरा-भरा लग सकता है जिससे मोटापे को दूर करने में भी यह दाल सहायक हो सकती है।
कैल्शियम – कैल्शियम अस्थियों के निर्माण व उन्हें स्वस्थ रखने के लिये आवश्यक है, इसके अतिरिक्त खून का थक्का जमाकर उसके बाहरी बहाव को रोकने, पेशियों को संकुचित करने एवं हृदय को धड़कने के भी लिये यह जरुर रहता है। 99 प्रतिशत कैल्शियम तो अस्थियों व दाँतों में होता है।
लौह – हीमोग्लोबिन का मुख्य घटक लौह थकान मिटाने में सहायता करता है। विभिन्न माँसों से हीम आयरन मिल सकता है परन्तु मसूर जैसे शाकाहार से नान-हीम आयरन मिलता है।
इस प्रकार शाकाहारियों के लिये एवं स्वास्थ्यगत कारणों से माँसाहार से दूर रहने वालों के लिये मसूर लौह का बेहतर व हानिरहित स्रोत है। वैसे शरीर इन दोनों में से किसी भी आयरन को सीधे अवशोषित नहीं कर पाता, अतः नींबू इत्यादि विटामिन-सी-समृद्ध खाद्यों का सेवन भी साथ में करें।
पोटेशियम – नमक के दुष्प्रभावों को कम करने में पोटेशियम की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, यह बढ़े रक्तचाप को भी घटाता है।
मैंग्नीज़ – मानव-शरीर में लगभग 10-20 मिलीग्रॅम्स मैंग्नीज़ होता है जिसमें से 25 से 40 प्रतिशत तो अस्थि में होता है। यकृत, अग्नाशय, वृक्क व मस्तिष्क में भी मैंग्नीज़ होता है। मैंग्नीज़ अवशोषण व उत्सर्जन के नियामक नियन्त्रण के माध्यम से शरीर स्थिर ऊतक-मैंग्नीज़ सान्द्रणों को बनाये रखता है।
मैग्नीशियम – मसूर में भी विद्यमान् मैग्नीशियम ऐसा खनिज है जो मानव शरीर में लगभग 300 एन्ज़ाइम-अभिक्रियाओं में भूमिकाएँ निभाता है। यह पेशियों व तन्त्रिकाओं के कार्य सुचारु रखने, रक्तचाप के नियमन एवं प्रतिरक्षा-तन्त्र को स्वस्थ रखने में आवश्यक है।
ताम्र (ताँबा) – यह लौह के साथ मिलकर लालरक्त कोशिकाओं का निर्माण कराता है। रक्त-वाहिकाओं की कार्यप्रणाली सुचारु रखने में एवं लौह के अवशोषण में आवश्यक है।
जस्ता (ज़िंक) – पूरे शरीर की कोशिकाओं में पाया जाने वाला जस्ता शरीर की रोगप्रतिरोधक प्रणाली में महत्त्वपूर्ण है। कोशिका-विभाजन, कोशिकाओ की बढ़त व घाव ठीक करने में उपयोगी जस्ता आस्वादन व सूँघने की इन्द्रियों के भी लिये जरुरी है।
सेलेनियम – सेलेनियम के बारे में वैज्ञानिक कहते हैं कि यह गाँठें बनने की गति को धीमी करता है जिससे कैन्सर की आशंका कम हो जाती है। सेलेनियम टी-कोशिकाओं के उत्पादन को प्रेरित करता है जिससे संक्रमण से जूझने में सहायता कर सकता है।
फ़ास्फ़ोरस – इसका मुख्य कार्य अस्थियों व दाँतों का निर्माण करना होता है। यह शरीर की बढ़त व रखरखाव के लिये प्रोटीन-निर्माण भी करता है। बी-विटामिन्स के साथ मिलकर फ़ास्फ़ोरस वृक्कों, पेशीय संकुचनों, सामान्य धड़कन व तन्त्रिका-संकेतों में भी भूमिका निभाता है।
थियामिन – यह जल-विलयशील बी-विटामिन्स में से एक विटामिन है जिसे विटामिन बी1 कहा जाता है। मसूर में उपस्थित यह कोशिकाओ की बढ़त, परिवर्द्धन व कार्यों को ठीक रखने में महत्त्वपूर्ण है।
राइबोफ़्लेबिन – इसे विटामिन बी2 भी कहते हैं। कोशिकीय श्वसन (शरीर की कोशिकाओं के साँस लेने) के लिये यह आवश्यक है।
नियासिन – यह विटामिन बी3 का एक रूप है जो हाई डेन्सिटी कोलेस्टॅराल अर्थात् अच्छे कोलेस्टॅराल का स्तर बढ़ा सकता है एवं ट्राईग्लिसराइड्स को घटा सकता है।
पेण्टोथेनिक अम्ल – जल में घुलनशील यह विटामिन एक बी-विटामिन है जिसे विटामिन बी5 भी कहा जाता है। विटामिन बी5 लालरक्त कोशिकाओ के निर्माण में, पाचन-पथ को स्वस्थ रखने में एवं अन्य विटामिन्स (विशेषतया बी2 अर्थात् राइबोफ़्लेविन) को प्रोसेस करने में महत्त्वपूर्ण है।
विटामिन बी6 – इसे पिरीडाक्सिन भी कहा जाता है जो कि पानी में घुलनशील विटामिन है। यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व वसा के उपचयापचय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ ही साथ लालरक्त कोशिकाओ व न्यूरोट्रांस्मिटर्स के निर्माण में भी आवश्यक है। विटामिन बी6 को मानव शरीर नहीं बना पाता, अतः मसूर के सेवन से इसे सरलता से ग्रहण किया जा सकता है।
फ़ोलेट – फ़ोलेट हृदय को कई दुर्बलताओं से बचाता है एवं लालरक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहयोग करता है। गर्भवतियों को तो गर्भस्थ शिशु के विकास के लिये फ़ोलेट अति आवश्यक हो जाता है।
फ़ोलेट वास्तव में एक प्रकार का बी-विटामिन होता है जो तन्त्रिका-कार्यों को सुचारु रखने में भी सहायक है तथा धमनी को क्षति पहुँचा सकने वाले होमोसिस्टीन को घटाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह जल-विलयशील (पानी में घुलनशील) विटामिन एनीमिया, कैन्सर व डिमेन्षिया में भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
रेशे – मसूर में रेशे की अधिकता कोलेस्टेरोल को घटाती है, वजन घटाने में भी सहायक हो सकती है तथा मधुमेह व कोलोन कैन्सर को दूर रखने में उपयोगी है। रेषे की अधिक मात्रा सेवन की जाये तो पेट साफ रखना सरल हो जाता है एवं कब्ज़ से छुटकारा सम्भव हो पाता है।
मसूर में रेशो की अधिक मात्रा को पचाना कुछ कठिन हो सकता है, इसलिये यदि पहली बार मसूर खा रहे हैं तो इसकी मात्रा कम रखें तथा हर बार हींग अवश्य मिलायें जो किसी भी खाने को जल्दी पचाने के लिये महत्त्वपूर्ण होती है। रेशो से बन सकने वाली गैस व पेट में ऐंठन को भी हींग दूर अथवा कम रखती है।