“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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दान का पाप

एक बार की बात है एक भिखारी कबीर साहब के पास आया और कुछ खाने के लिए मांगा । भिखारी काफी दिन से भूखा था । तब कबीर जी कपडे बुन रहे थे । कबीर जी ने भिखारी से कहा कि मेरे पास इस समय खाने के लिए कुछ भी नही है । और ना ही पैसे है । फिर कबीर जी ने उस भिखारी को पशम (ऊन ) के धागे का गोला देते हुए कहा कि इस समय मेरे पास यही है । इसे बेचकर कुछ खा लेना । बह भिखारी चला गया । रास्ते मे एक तलाब आया, तलाब मे मछलियाँ बहुत थी। भिखारी ने उस धागे का जाल बनाकर मछली को पकडने के लिए तलाब मे फेंका । क्योकि वह धागा कमाई वाले संत कबीर जी का था । इस लिए उस जाल मे काफी मछलियाँ आई । वह भिखारी सारा दिन मछलियाँ पकडता रहा । शाम को उसने सारी मछलियाँ बेच दी । वह भिखारी रोज ऐसे ही करता । उसने धीरे धीरे कई जाल पा लिए । और कुछ ही सालो मे वह बहुत अमीर आदमी बन गया । एक दिन उस भिखारी ने सोचा कि क्यो ना उस संत के दर्शन किए जाए भिखारी संत कबीर जी के पास सोना चांदी और अच्छे कपडे ले के गया कबीर जी ने पहले तो उसे पहचाना नही । पर जब उस भिखारी ने सारी बात बताई तो कबीर जी बहुत पछताए और उस भिखारी को कहा कि तुमने जितनी भी मछलियो को मारा है ।उन सब का आधा पाप मुझे लगेगा । क्योंकि मै तुमही वो धागा नही देता तो तुम कभी मछलियाँ नही पकडते । कबीर जी उसका सब सामान लोटा दिया और आगे से अच्छे काम करने का उपदेश दिया हमे भी सोच समझकर दान करना चाहिए क्योंकि अगर हमारा किया हुआ दान किसी गलत काम मे लगेगा तो उसका फल हमे भी भोगना पडेगा..!!

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