गले के कैंसर के कारण
1. धूम्रपान – यह गले के कैन्सर का अति प्रमुख कारण है। धूम्रपान करने से हुए गला-कैन्सर का उपचार शीघ्र असर नहीं करता। शल्य क्रिया सम्पन्न कर भी ली गयी हो तो भी धूम्रपान के कारण स्थितियाँ सामान्य देर से हो पाती हैं।
2. शराब – यदि गले के कैन्सर का उपचार सफल करना हो तो भी इन धूम्र व मद्यपान दोनों से दूर होना ही होगा. मद्य गले के कैन्सर का एक कारण तो है ही परन्तु यदि तम्बाकू चबाने व धुम्रपान के साथ मद्यपान भी किया जाता हो तो यह मिश्रण और ख़तरनाक हो जाता है।
3. ठीक से पोषण न होना
4. शरीर में एस्बेस्टास के प्रवेश से जो कि विनिर्माण-कार्य करने वाले श्रमिकों के शरीर में निर्माण-सामग्री से होते हुए आ जाता है।
5. दंत-स्वास्थ्य ठीक न होना
6. आनुवंशिक संलक्षण (जेनेटिक सिण्ड्राम्स)
7. ह्यूमन पेपिलोमा वायरस संक्रमण जो कि मुख्यतया यौन सम्बन्धों से फैलता है (ध्यान रखें कि निरोध को सुरक्षित नहीं माना जा सकता)
गले के कैंसर की जाँचें
1. गले को पास से देखना – प्रकाश युक्त एक स्कोप (एण्डोस्कोप) द्वारा गले के भीतर एण्डोस्कोपी करते हुए आन्तरिक भाग को देखा जाता है, एण्डोस्कोप के छोर पर एक छोटा-सा कैमरा होता है जो अन्दर के दृष्यों को चिकित्सक की वीडियो-स्क्रीन पर दर्शा रहा होता है जिससे समझने में कुछ आसानी हो सकती है कि भीतर कहीं असामान्यता के चिह्न तो नहीं !
2. लेरिंगोस्कोपी – लेरिंगोस्कोप नामक एक अन्य स्कोप को वायस बाक्स में ले जाकर मैग्निफ़ाईंग लेन्स द्वारा वाकल काड्र्स का अवलोकन किया जाता है।
3. परीक्षण हेतु ऊतक-प्रतिदर्श (टिशू-सैम्पल) निकालना – एण्डोस्कोपी या लेरिंगोस्कोपी में कोई असामान्यता दिखी हो तो स्कोप के माध्यम से शल्यक औजार भीतर प्रवेश कराकर बायोप्सी की जा सकती है।
इस प्रतिदर्श का परीक्षण किया जाता है तथा फ़ाइन नीडल एस्पिरेशन नामक एक युक्ति के प्रयोग से फूली लिम्फ़ नोड के प्रतिदर्श की भी जाँच करायी जा सकती है।
4. इमेजिंग परीक्षण – एक्स-रे, कम्प्यूटराइज़्ड टोमोग्रॅफ़ी, मैग्नेटिक रेज़ोनेन्स इमेजिंग एवं पाज़िट्रान एमिशन टोमोग्रॅफ़ी से कैन्सर की उपस्थिति की उस सम्भावना को परखा जा सकता है जो गले की सतह पर या Voice Box में न नज़र आ रही हो।
फिर क्या ? स्टेजिंग – गले का कैन्सर पता चलने के बाद आगामी चरण में कैन्सर के विस्तार को समझने का प्रयास किया जाता है। इससे यह जानने में सहायता हो जाती है कि उपचार कैसे आरम्भ करना है।
पहली स्टेज तब कहते हैं जब गले के एक भाग में छोटा-सा ट्यूमर सिमटा हुआ हो. चौथी स्टेज तक गम्भीरता बढ़ती हुई जाती है।
गले के कैन्सर का उपचार
गले के कैन्सर के स्थान व अवस्था, भागीदार कोशिकाओं के प्रकार, समग्र स्वास्थ्य व व्यक्तिगत स्थितियों जैसे ढेरों कारकों के आधार पर उपचार के तरीके निर्भर होंगे। प्रत्येक विकल्प के लाभ-हानियों की चर्चा चिकित्सक को खुलकर कर लेनी चाहिए। दोनों मिलकर ही आगे के कदमों का चयन करें.
गले के कैन्सर के लिए विकिरण चिकित्सा
प्रोटान्स एवं एक्स-रे जैसे स्रोतों से हाई-एनर्जी बीम्स का प्रयोग करते हुए कैन्सर-कोशिकाओं में विकिरण ले जाया जाता है जिससे उनकी मृत्यु हो जाये। इस कार्य विधि में या तो शरीर को एक बड़ी मशीन के बाहर छोड़ दिया जाता है.
(एक्स्टर्नल बीम रेडियेशन) या शरीर के भीतर कैन्सर प्रभावित भाग के निकट रखे छोटे रेडियोएक्टिव सीड्स व वायर्स से विकिरण लाया जाता है.
(ब्रॅकिथिरॅपी)। शुरुआती अवस्था के गला कैन्सरों में हो सकता है कि विकिरण-चिकित्सा ही एकमात्र विकल्प हो परन्तु आगे की अवस्थाओं के गला-कैन्सरों में कीमोथिरेपी या शल्यचिकित्सा को विकिरण-चिकित्सा से जोड़ने की जरूरत हो सकती है।
शल्यचिकित्सा
गले के कैन्सर की स्थिति व अवस्था के आधार पर शल्यक्रिया का तरीका निर्भर होगा व आरम्भिक अवस्था के गला-कैन्सर की शल्यक्रिया. यदि कैन्सर गले की सतह अथवा वाकल काड्र्स तक सीमित हो तो एण्डोस्कोपी द्वारा यह शल्यक्रिया की जा सकती है।
Voice Box का एक भाग या इस पूरे अंग को निकालना. छोटे ट्यूमर को निकालने के लिये वायस बाक्स का एक (संक्रमित) भाग अलग करना पर्याप्त हो सकता है, अधिकांश वायस बाक्स बचा रह जाने से सामान्य साँस व बोलचाल सम्भव परन्तु यदि ट्यूमर बड़ा हुआ तो पूरे वायस बाक्स को निकालना पड़ सकता है.
इसमें साथ में एक और शल्यक्रिया द्वारा व्यक्ति साँस लेने में सक्षम हो सकेगा परन्तु समूचे लेरिंग्स को निकालने के बाद बोलने में समर्थ होने के लिये सम्भव है कि बिना वायस बाक्स के बोल सकने के लिये रोगी को स्पीच-पॅथोलाजिस्ट के सम्पर्क में रहने की आवश्यकता हो।
गले का एक भाग निकालना (फ़ेरिंगेक्टामी) – गले के छोटे कैन्सर में गले के छोटे-छोटे भागों को ही निकालना काफ़ी हो सकता है व निकाले जा चुके इन भागों को फिर से बनाया जा सकता है ताकि खाना सामान्य रूप से निगला जा सके। इस शल्यक्रिया में प्रायः वायस बाक्स को भी निकालना पड़ता है।
कैन्सरस लिम्फ़नोड्स को निकालना (नेक-डिस्सेक्षन) – गले का कैन्सर यदि गर्दन की गहराई तक फैल चुका हो तो कुछ या सभी लिम्फ़-नोड्स को निकालकर यह देखने की जरूरत पड़ सकती है कि कहीं उनमें कैन्सर-कोशिकाएँ तो नहीं। इस शल्यक्रिया में रक्तस्राव व संक्रमण का ख़तरा रहता है।
कीमोथिरॅपी – इसमें कैन्सर-कोशिकाओं के नाश के लिये औषधियाँ प्रदान की जाती हैं। यह चिकित्सा प्रायः विकिरण के साथ अपनायी जाती है।
लक्ष्यबद्ध ड्रगथिरॅपी – इसमें कैन्सर-कोशिकाओं में उन कमियों को फ़ायदा उठा लिया जाता है जो कोशिकाओं को बढ़त को उकसा रही थीं।
उदाहरणार्थ सेटुग्ज़िमाब (एर्बिटक्स) एक ऐसी लक्ष्यबद्ध चिकित्सा है जिससे स्वस्थ कोशिकाओं के कई प्रकारों में प्रोटीन के उस कार्य को रोक दिया जाता है जो कि गले की कैन्सर-कोशिकाओं के कुछ प्रकारों में अधिक प्रधानता से हो रहा होता है।