“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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गलती का पश्चाताप

अध्यापक द्वारा कक्षा में गणित की परीक्षा ली गई। परीक्षा लेने से पहले उन्होंने सभी विद्यार्थियों से कहा, “जो विद्यार्थी सबसे अधिक अंक प्राप्त करेगा उसे पुरस्कार दिया जाएगा।” परीक्षा में केवल एक ही प्रश्न दिया गया। सभी विद्यार्थी उस प्रश्न को हल करने और पुरस्कार प्राप्त करने में जुट गये। लेकिन प्रश्न अत्यंत कठिन था, सरलता से हल नहीं किया जा सकता था। सभी विद्यार्थी जी जान से जुटे हुए थे। बहुत समय तक कोई भी विद्यार्थी उस प्रश्न को हल नहीं कर सका। अंत में एक बालक प्रश्न हल करके अध्यापक के सामने पहुँचा। अध्यापक महोदय ने प्रश्न और उसका हल देखा और पाया कि हल सही है।

उन्होंने इन्तजार किया कि शायद अन्य कोई विद्यार्थी भी सही हल निकाल कर ले आए, किन्तु देर तक कोई भी विद्यार्थी सही हल नहीं निकाल सका। समय पूरा हो चुका था। अध्यापक महोदय ने सही हल निकालकर लाने वाले को पुरस्कार दिया। पुरस्कार – प्राप्त विद्यार्थी नाचते गाते खुशी से झूमते अपने घर पहुँचा। दूसरे सभी विद्यार्थी हैरान थे कि यह लड़का सही हल कैसे निकाल सका, क्योंकि पढ़ने – लिखने में वह बालक मंदबुद्धि था।

अगले दिन अध्यापक महोदय ज्यों ही कक्षा में आए, त्यों ही पुरस्कार – प्राप्त विद्यार्थी लपक कर उनके चरणों से लिपट गया और फूट – फूट कर रोने लगा। सभी विद्यार्थी और अध्यापक हैरान थे कि इसे क्या हो गया है। अध्यापक ने उससे पूछा, “क्या बात हैं तुम रोते क्यों हो ? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि पुरस्कार प्राप्त करके तुमने अच्छा विद्यार्थी होने का प्रमाण दिया है। ” वह बालक रोते हुए बोला, “आप यह पुरस्कार वापस ले लिजीए श्रीमान !” “पर क्यों ?” अध्यापक ने पूछा। “इसलिए कि मैं इस पुरस्कार का अधिकारी नहीं हूँ। मैंने पुस्तक में से देखकर, चोरी करके प्रश्न सही हल निकाला था। मैंने अपनी योग्यता से सही हल नहीं निकाला था।

आप यह पुरस्कार वापस ले लीजिए और मेरी भूल के लिए मुझे क्षमा कर दीजिए। भविष्य में मैं ऐसी गलती कभी दोबारा नहीं करूँगा, बालक ने कहा।” अध्यापक ने उसे वापस बुलाकर कहा, “सही हल तुम्हें नहीं आया, लेकिन धोखा देना भी तुम्हें नहीं आता। धोखा देना और चोरी करना तुम्हारा स्वभाव नहीं है, इसलिए कल घर जाने के बाद तुम्हारा मन दुखी रहा और तुमने सही बात कह डाली। तुमने सही हल नही निकाला मुझे इसका इसका दुःख नहीं है, पर तुमने सही बात कह डाली, उसकी मुझे बहुत खुशी है। गलती मान लेने वाले बालक बड़े होकर बड़ा नाम और काम करते है।” आगे चलकर यह बालक न्यायमूर्ति गोपाल कृष्ण गोखले के नाम से जाना गया।

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