आथ्र्राइटिस है क्या
आथ्र्राइटिस मानव-शरीर का ऐसा विकार है जिसमें एक अथवा अनेक संधियों (जोड़ों) में सूजन हो जाती है एवं वे नाज़ुक हो जाती हैं। आथ्र्राइटिस के मुख्य लक्षणों में संधियों में दर्द व कठोरता है जो प्रायः डिजनरेटिव आथ्र्राइटिस (आस्टियोआथ्र्राइटिस) के कारण होती हैं एवं आयु बढ़ने के साथ लक्षण और बिगड़ते जाते हैं।
100 से अधिक प्रकार के आथ्र्राइटिस पता चल चुके हैं जिनमें र्हूमेटायड आथ्र्राइटिस व गाउट सम्मिलित हैं। दर्द को कम से कम रखने के लिये प्रकार का निदान महत्त्वपूर्ण होता है। आथ्र्राइटिस के सर्वाधिक दिखायी देने वाले प्रकार आस्टियोआथ्र्राइटिस व र्हूमेटायड आथ्र्राइटिस हैं।
आथ्र्राइटिस के प्रकार
आथ्र्राइटिस के ढेरों प्रकार हैं जिनमें से कुछ प्रमुख का उल्लेख नीचे किया जा रहा है..
आस्टियोआथ्र्राइटिस में उपास्थि (कार्टिलेज) टूटने लगती है। उपास्थि वास्तव में पेशियों से अधिक कठोर किन्तु अस्थियों से कुछ कोमल चिकना ऊतक होता है जो अस्थियों के उन छोरों को घेरे रहता है जहाँ वे परस्पर मिलकर संधि का निर्माण करती हैं। वैसे हमारी नाक व बाह्यकर्ण में भी उपास्थि होती है किन्तु आथ्र्राइटिस से उनका कोई सम्बन्ध नहीं। आस्टियोआथ्र्राइटिस में उपास्थि की टूट-फूट वैसे तो धीरे-धीरे बरसों में होती है परन्तु किसी संक्रमण अथवा संधियों की चोट से इसमें तेजी आ सकती है।
र्हूमेटायड आथ्र्राइटिस में प्रतिरक्षा-तन्त्र संधियों पर आक्रमण करने लगता है एवं इसकी शुरुवात संधियों के आस्तर (लाइनिंग) से होती है। इस स्थिति में हो सकता है कि सम्बन्धित उपास्थि एवं संधि की अस्थि ही नष्ट हो जाये। प्रतिरक्षा-तन्त्र से जुड़े होने के कारण इस प्रकार के आथ्र्राइटिस में थकावट हो सकती है अथवा भूख में कमी लग सकती है क्योंकि प्रतिरक्षा-तन्त्र की अनावश्यक सक्रियता के कारण सूजन हो रही होती है। एनीमिया भी आ सकता है जिसमें लालरक्त कोशिकाओं की संख्या घट सकती है अथवा हल्का बुखार रह सकता है। समय रहते उपचार न कराने से संधि की संरचना में स्थायी विकृति आ सकती है।
गाउट – यूरिक अम्ल के क्रिस्टल्स अथवा मोनोसोडियम यूरेट के जमा होने से गाउट हो सकता है, रुधिर में अत्यधिक यूरिक अम्ल हो जाने की स्थिति में ऐसा होता है। गाउट एक र्हूमेटायड रोग है, गाउट की आशंका उन लोगों को काफ़ी अधिक होती है जो माँसाहार अथवा मद्य का सेवन करते हों।
अन्य आथ्र्राइटिस – संक्रमण अथवा अन्य किसी रोग (जैसे प्सोरायसिस अथवा ल्यूपस) की उपस्थिति से अन्य प्रकार के आथ्र्राइटिस उत्पन्न हो सकते हैं, उदाहरणार्थ एंकाइलोज़िंग स्पाण्डिलाइटिस, जुवेनाइल इडियोपेथिक आथ्र्राइटिस, रियेक्टिव आथ्र्राइटिस, सेप्टिक आथ्र्राइटिस, प्सोरायसिस आथ्र्राइटिस, थँब आथ्र्राइटिस। वैसे आथ्र्राइटिस के जितने प्रकार हैं उनका वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जा सकता है।
आथ्र्राइटिस की पहचान
वैसे तो लक्षण बहुत सीमा तक आथ्र्राइटिस के प्रकार पर निर्भर होंगे परन्तु चूँकि सभी प्रकारों में संधियाँ प्रभावित होती हैं अतः निम्नांकित लक्षण अधिकांशतया सामने आते हैं –
- पीड़ा
- कठोरता
- सूजन
- लालिमा
- गति में कमी
आथ्र्राइटिस के बने रहने अथवा संक्रमण से रोग के लक्षण शरीर के अन्य भागों में भी अनुभव हो सकते हैं।
आर्थराइटिस के सम्भावित कारण एवं जोख़िम-कारक
1. पहले से चोटिल संधि – जोड़ों में अभी अथवा बरसों-दशकों पहले कभी चोट लगी हो तो उस संधि में आथ्र्राइटिस विकसित होने की आशंका रहती है, जैसे कि चोट जिससे डिजनरेटिव आथ्र्राइटिस की स्थिति आयी हो
2. असामान्य उपचयापचय (एब्नार्मल मेटाबालिज़्म) जिससे गाउट अथवा प्स्यूडोगाउट की स्थिति आयी हो
3. आनुवंशिकी – जैसे कि आस्टियोआथ्र्राइटिस में
4. धूम्रपान, माँसाहार व मद्यपान
5. संक्रमण – जैसे कि लाइम डिसीस वाले आथ्र्राइटिस में
6. प्रतिरक्षा-प्रणाली से सम्बन्धित विकार – जैसे कि र्हूमेटायड आथ्र्राइटिस में
7. बढ़ती आयु किन्तु आथ्र्राइटिस की समस्या आजकल किषोरावस्था व बाल्यावस्था तक में आने लगी है।
8. लिंग – र्हूमेटायड आथ्र्राइटिस की आशंका स्त्रियों में एवं गाउट होने की आशंका पुरुषों में अधिक पायी गयी है
9. मोटापा – शरीर में अनावश्यक वजन से संधियों, कूल्हों, घुटनों व मेरु पर अधिक दबाव पड़ता है।
आर्थराइटिस की जटिलताएँ
गम्भीर आथ्र्राइटिस में, विशेषतया जिस आथ्र्राइटिस में हाथ अथवा पैर प्रभावित हों उसमें सम्भव है कि व्यक्ति को दैनिक कार्य सम्पादित करने कठिन पड़ने लगें। सामान्य चलने-फिरने, उठने-बैठने में समस्या आ सकती है अथवा यह भी हो सकता है कि संधियाँ मुड़ जायें अथवा उनकी संरचना विकृत हो जाये।
सहरुग्णताएँ (कोमार्बिडिटीज़) की बात करें तो आथ्र्राइटिस के रोगियों में उच्चरक्तचाप व हृदयरोगों की आशंका अधिक होती है। धूम्रपान समग्र स्वास्थ्य सहित अस्थि-स्वास्थ्य व श्वसन-स्वास्थ्य की विकृतियों में भी एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा साबित होता है।
आर्थराइटिस की जाँचें
- शारीरिक परीक्षण ताकि संधियों के आसपास तरल, गर्माहट अथवा लालिमा को परखा जा सके अथवा समझा जा सके कि कहीं संधियों की गति सिमट तो नहीं गयी है। इस दौरान यह पता लगाने में भी सहायता हो सकती है कि किस विशेषज्ञ की आवश्यकता है, जैसे कि र्हूमेटोलाजिस्ट के पास जाने की।
- एक्सरे
- एमआरआई
- सीटी स्केन्स
- रक्त-परीक्षण
आथ्र्राइटिस का उपचार
आथ्र्राइटिस के प्रकार के आधार पर उपचार के प्रयास सम्भव होंगे। वैसे कुल मिलाकर हर उपचार में यही प्रयास किया जाता है कि लक्षणों में राहत मिले, संधियों आदि में और ख़राबी आने से यथासम्भव रोका जा सके एवं जीवन की गुणवत्ता सुधारी जा सके क्योंकि एक बार आथ्र्राइटिस हो गया तो सम्पूर्ण उपचार असाध्य माना जाता है, एलोपेथिक उपचार के साथ निम्नांकित उपाय आज़माये जा सकते हैं..
विशेषज्ञीय चिकित्सक से पूछकर मेडिकल स्टोर से ला सकते हैं..
- हीटिंग पेड – मेडिकल स्टोर से लाकर एक पाउच का प्रयोग कर सकते हैं जिसमें गुनगुना पानी भरकर प्रभावित भाग में लगाया जाता है.
- मोबिलिटी एसिस्टैन्स डिवाइसेज़ – स्प्लिण्ट्स अथवा जायण्ट एसिस्टिव एैड्स, ब्रेसेज़, ग्रेबिंग अथवा ग्रिपिंग टूल्स, क्नी टॅपिंग, शू इन्सट्र्स, केन्स अथवा वाकर्स ताकि प्रभावित संधियों पर दबाव कम करने में सहायता हो सके.
- आइस पॅक्स
आर्थराइटिस का विशुद्ध घरेलु उपचार
*. मर्दन (मालिश) : अपने हाथों से अथवा पुत्र व पुत्री अथवा जीवनसाथी से
*. हाथ-पैरों सहित समूचे शरीर को नैसर्गिक रूप से गतिमान रखना आवश्यक है, थोड़ा दर्द सहकर भी सायकल चलायें, रस्सी कूदें, सावधानी से सीढ़ियाँ व ऊबड़-खाबड़ जगहें चढ़ें-उतरें, यह अत्यधिक आवश्यक है, अन्यथा जैसे पड़े-पड़े लौह में जंग लगती है उसी प्रकार अनुपयोगी रखी अस्थियाँ भी बेकार होने लगती हैं। संधियों व पेशियों की सहज सक्रियता बनाये रखें। मोटापे व वजन की समस्या को दूर करने में भी यह उपाय कारगर है।
*. एक आसन व मुद्रा में अधिक समय तक न बने रहें.
*. मुखमण्डल को धीरे-धीरे आगे-पीछे, दायें-बायें घुमायें तथा गर्दन का घूर्णन (रोटेशन) करें.
*. हाथों में दर्द हो तो अँगुलियों व अँगूठे को मोड़ें.
*. पैरों, घुटनों व जाँघों से सम्बन्धित दर्द हो तो पैर उठायें, पैरों को घड़ी की दिषा व घड़ी से विपरीत दिषा में घुमायें.
*. कार्यस्थल से सम्बन्धित ऐसे सुरक्षात्मक साधनों का प्रयोग करें जिनसे जोड़ों पर पड़ने वाला दबाव अथवा लग सकने वाली चोटों की आशंका न्यूनतम रहे.
*. एण्टिआक्सिडेण्ट्स से भरपूर आहार सेवन करें, फल-सब्जियाँ, कन्द-मूल अधिक खायेंगे जो सूजन घटेगी।
*. बीजों, सूखे मेवों से भी सूजन कम हो सकती है।
*. अधिक जले-तले, रिफ़ाइण्ड आहार व प्रोसेस्ड फ़ूड का सेवन कम किया करें, विशेषतः सेचुरेटेड व ट्रांस फ़ैट तथा एस्पार्टेम (एक कृत्रिम मिठासवर्द्धक) को जिस डिब्बाबंद खाद्य-पेय में देखें उसे यथासम्भव न लें.
*. फलियों, जैतून-तैल व साबुत अनाजों का सेवन बढ़ायें।
*. माँस, मद्य व धूम्रपान से सर्वथा दूर रहें।
*. नमक का सेवन कम करें, हो सके तो पंचलवण अथवा सैंधा नमक अपनायें.
*. हल्दी का सेवन बढ़ायें (विशेषतया गुनगुने दूध में मिलाकर रात को सोते समय).
*. लहसुन खायें, इसमें डायलिल डाईसल्फ़ाइड होता है जो उपास्थि-क्षति को कम कर सकता है.
*. अदरख, काली मिर्च (ब्लैक पेपर) का सेवन करें.
*. दूरदर्षन पर ध्यान से देख-समझकर आसनों व मुद्राओं का सुरक्षित अभ्यास कर सकते हैं.
*. स्विमिंग पूल, सार्वजनिक स्थानों पर नहाने से बचें क्योंकि हिपेटाइटिस सहित अनेक संक्रमण उनसे बड़ी आसानी से हो सकते हैं जो आथ्र्राइटिस की स्थिति को बिगाड़ सकते हैं.
व लैंगिक सम्बन्ध अपने जीवनसाथी तक सीमित रखें, ध्यान रखें कि जनन-द्रव्यों को 100 प्रतिशत रोक पाने में निरोध सक्षम नहीं हैं, क्लेमाइडिया व गोनोरिया जैसे कई रोग ऐसे सूक्ष्मजीवों से होते हैं जो यौनसम्बन्ध द्वारा सरलता से फैल सकते हैं (निरोध पहनने के बावजूद), इन संक्रमणों से विभिन्न आथ्र्राइटिस के विकास को बढ़ावा मिलता है।
आर्थराइटिस का चिकित्सात्मक उपचार
*. हार्मोनल उपचार – यदि हार्मोनल असंतुलन से आथ्र्राइटिस हो तो एण्डोक्राइनोलाजिस्ट से सम्पर्क कर हार्मोनल उपचार करायें.
*. शल्यक्रिया – अन्तिम विकल्प के रूप में शल्यक्रियाएँ आवश्यक होंगी। एक शल्यक्रिया में संधि को बदलकर कृत्रिम संधि लगा दी जाती है, ऐसा अधिकांशतया नितम्बों व घुटनों के सन्दर्भ में किया जाता है। अँगुलियों अथवा कलाइयों में आथ्र्राइटिस की गम्भीरता के अनुसार चिकित्सक द्वारा जायण्ट फ़्यूज़न किया जा सकता है जिसमें अस्थियों के छोरों को परस्पर बाँधकर तब तक रखा जाता है जब तक कि वे ठीक न हो जायें एवं एक न हो जायें।