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An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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अपच (बदहजमी) के कारण एवं उपचार Indigestion Causes and Treatment

अपच (बदहजमी ) के लक्षण

1 . आमाशय में अथवा पेट के ऊपरी भाग में जलन अधिकांश लोगों को छाती में गहराई में जलन की अनुभूति अपच के साथ होती है किन्तु ध्यान रखना होगा कि छाती में जलन – हार्टबर्न एक अलग लक्षण है एवं यह अन्य समस्या का संकेत हो सकता है; यह भी स्मरण रखें कि अपच अतिरेक आमाशयी अम्ल के कारण हो ऐसा आवश्यक नहीं किन्तु ये दोनों स्थितियाँ साथ-साथ हो सकती हैं।
2 . अम्लीय स्वाद .
3 . पेटदर्द .
4 . पेट फूलना अथवा भरा-भरा लगना .
5 . डकार अथवा उबकाई अथवा गैस .
6 . मितली एवं उल्टी .
7 . आमाशय में गुड़गुड़ाहट .
8 . हो सकता है कि उपरोक्त लक्षण तनाव के समय बढ़ जायें।

अपच ( बदहजमी ) किन लोगो को अधिक होती है ?

 मद्यपान अथवा धूम्रपान करने वालों को .
 एस्पिरिन व अन्य दर्द निवारक अथवा अन्य ड्रग का सेवन जिनसे आमाशय को कष्ट हो सकता हो .
 पाचन-पथ में कोई असामान्यता युक्त स्थिति, जैसे कि अल्सर से .
 दुष्चिंता अथवा अवसाद जैसी किसी मानसिक समस्या के प्रभावस्वरूप .

 अपच (बदहजमी ) के कारण

रोगः अल्सर विशेषतया पेप्टिक अल्सर जो एच. पायलोरिबैक्टीरिया के कारण आमाशय ग्रासनली अथवा डुओडिनम में हो सकता है), आमाशय का अल्सर (जो कि कम ही होता है), पित्ताष्मरी, गेस्ट्रोऑयसोफ़ेगल रिफ़्लक्स डिसीस, गेस्ट्रोपॅरेसिस ( इस स्थिति में आमाशय ठीक से खाली नहीं हो पाता; मधुमेह में ऐसा अधिक देखा गया है ), आमाशय में कोई संक्रमण अथवा सूजन, इरिटेबल बाउल सिण्ड्रॉम, दीर्घकाल से चला आ रहा अग्न्याशय-षोथः क्रॉनिक पैंक्रियाटिस, थायरॉइड रोग, कोष्ठबद्धता (कब्ज़), आमाशय का कैन्सर, आन्त्रीय अवरोध, आँत में रक्तप्रवाह कम हो पाना ।

जीवनशैलीगतः बहुत ज़्यादा या फिर तेजी से खाना, अधिक तैल-वसा वाले पदार्थों का सेवन अथवा हैरान-परेशान स्थिति में खाना, मदिरा, धूम्रपान, तनाव व थकान। पाइप से अथवा बॉतल से अथवा धार बनाकर पानी पीने से अथवा मुख बन्द करके ठीक से घूँट-घूँट पानी न पीने या भोजन में समय यहाँ-वहाँ की बातें करते रहने से पेट में गयी वायु से डकार अथवा पेट फूलने का लक्षण बढ़ सकता है जो कि अधिकांशतया अपच से जुड़े लक्षण होते हैं।

हो सकता है कि अपच लगातार रहे एवं उपरोक्त में से कोई कारक नज़र न आ रहा हो तो उस प्रकार के अपच को फ़ंक्षल अथवा ग़ैर-अल्सर डिस्पेप्सिया कहेंगे। अस्पष्ट कारण वाले अपच को अस्पष्ट अपच भी कहा जाता है।

अपच (बदहजमी ) का निदान

व विभिन्न रक्त-जाँचें ।
व मलादि का परीक्षण भी विशेष रूप से यह देखने के लिये किया जा सकता है कि किस जीवाणु के कारण पेप्टिक अल्सर हुआ है (यदि हो रहा हो तो) ।
व आमाशय अथवा/एवं क्षुद्रान्त्र(छोटी आँत) का एक्स-रे ।
व आमाशय के भीतर देखने के लिये अपर एण्डोस्कोपीः इसमें प्रकाश स्रोत व कैमरा लगी एक लचीली नली मुख के माध्यम से भीतर प्रवेश करायी जाती है एवं शरीर के भीतरी अंगों की इमेजेज़ प्राप्त की जाती हैं एवं इस दौरान आमाशय के भीतरी भाग कम्प्यूटर-स्क्रीन पर दिख रहे होते हैं; वैसे अपर गेस्ट्रोइण्टेस्टाइनल (जीआई) एण्डोस्कोपी में रिफ़्लक्स इसोफ़ेगाइटिस, अल्सर्स, इन्फ़्लेमेटरी रोग, संक्रमणों व कैन्सर का अवलोकन करने में सरलता हो सकती है।

पेट की अपच (बदहजमी ) का उपचार –

चूँकि अपच स्वयं में कोई रोग न होकर अन्य छुपे हुए रोग का लक्षण होता है अतः अपच के उस छुपे कारण का उपचार कराना होता हैः-

* अधिक तले/वसीय/नमकीन पदार्थों का सेवन न्यूनतम करें ।

* जंक/फ़ास्ट फ़ूड से यथासम्भव बचें ।

* कोल्ड ड्रिंक्स से यथासम्भव परहेज करें; चाय-कॉफ़ी कम रखें ।

* मन से प्रतिजैविक, दर्दनिवारक व आयरन-सप्लिमेण्ट्स न लें ।

* दोबारा-तिबारा उपयोग में लाये गये तेल का उपयोग न के बराबर करें ।

* एक बार में ठूँस-ठूँसकर खाने के बजाय कम-कम मात्रा में अधिक बार खायें ताकि आमाशय को भारी कार्य न करना पड़े ।

* यथासम्भव जल्दबाज़ी में व क्रोध में भोजन न करें। ‘पेट की गैस व दर्द ठीक करने के 21 उपाय’ नामक आलेख भी अवश्य पढ़ें।

* धूम्रपान व मद्यपान बन्द करें, इससे एक और लाभ यह होगा कि आमाशय का आस्तर(लाइनिंग) क्षुब्ध नहीं होगा ।

* लूज़ फि़टिंग या इलास्टिक जीन्स एवं अन्य टाइट-फि़टिंग गार्मेण्ट्स न पहनें ताकि आमाशय पर दबाव न पड़े, पेट के बल कभी न सोयें, अन्यथा आमाशय के अंश ग्रासनली में आने की आशंका भी होगी ।

* पुदीने, जीरा, अजवायन, सौंफ़, हींग इत्यादि का सेवन बढ़ायें ।

* अदरख अपच के उपचार में सहायक हो सकता है क्योंकि यह आमाशय के अम्ल को घटा सकता है। जिस प्रकार आमाशय में अधिक अम्ल से अपच हो सकता है उसी प्रकार कम आमाशयी अम्ल से भी अपच सम्भव है, अतः अति से बचें, दिन में 3-4 ग्रॅम्स से अधिक अदरख का सेवन न करें, अन्यथा गैस, गले व सीने में जलन सम्भव।

* नींबू-पानीः नींबू का क्षारीय प्रभाव आमाशय की अम्लीयता को उदासीन कर देता है एवं पाचन ठीक होता है।

* मुलहठीः यह पेशियों में ऐंठनों से राहत प्रदान कर सकती है एवं पेट व आँत में सूजन को भी घटा सकती है; ये दोनों समस्याएँ अपच को बढ़ावा दे सकती हैं जिनसे राहत के लिये मुलहठी को दुचलकर रेषे बनाकर चबाकर निगल लें।

इसका अधिक मात्रा में सेवन न करें, अन्यथा सोडियम व पोटेशियम असंतुलन आ सकता है एवं विशेषतः उच्चरक्तचाप की स्थिति और बिगड़ सकती है। राहत यदि शीघ्र चाहिए हो तो भी एक दिन में ढाई ग्रॅम्स से अधिक मुलहठी का सेवन न करें।

* स्थिति अपने आप अथवा घरेलु उपचारों से ठीक न हो रही हो अथवा गम्भीर लग रही हो अथवा अन्य कोई चिंतनीय स्थिति हो सकती हो तो पेट व आँत रोग विशेषज्ञ से मिलें, विशेषतया तब यदि उल्टी में रक्त दिखे, शरीर का भार अथवा भूख में कमी आ रही हो अथवा मलोत्सर्ग में समय लग जाता हो अथवा काले रंग का मल हो, पेट के किसी भाग में तेज दर्द हो अथवा खाये-बिन खाये भी पेट में असहजता आती हो तब।

* अपच जैसे लक्षण हृदयाघात् के कारण भी हो सकते हैं अपच यदि असामान्य हो अथवा साँसों में उथलापन हो अथवा पसीना असामान्य रूप से अधिक निकल रहा हो अथवा छाती में दर्द हो अथवा जबड़ों, गर्दन अथवा बाहु में दर्द फैलने जैसा अनुभव हो अथवा नेत्रों अथवा त्वचा में पीलापन हो तो भी तुरंत पेट व आँत रोग विशेषज्ञ से मिलें।

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