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अनमोल उपहार

प्रेरक प्रसंग

अनमोल उपहार

भगवान ने मनुष्य को खुशियों का खजाना दिया परन्तु अफ़सोस की बात है की मनुष्यों ने इस अनुपक खजाने का मोल समझ नहीं पाया और हमेसा दुरूपयोग किया।

इससे भगवान को अत्यंत दुःख हुआ और उन्होंने देवताओं की एक सभा बुलाई और सभी देवताओं से चर्चा किया की मनुष्यों को इस अनमोल उपहार का ज्ञान किस तरह कराया जाये।

चर्चा चली फिर एक देवता ने कहा, यह तो बिल्कुल सरल है भगवन, आप ने ही मनुष्यों को को यह अनुपम उपहार दिया है। सो मनुष्यों को इसकी कद्र नहीं है तो आप इसे वापस ले लीजिये।

भगवन बोले, नहीं कभी नहीं उपहार मनुष्यों को दिया जा चूका है और दिए हुए उपहार को वापस लेना सोभा नहीं देता। दूसरे देवता बोले, भगवन हम इस उपहार को किसी ऐसी जगह छुपा देते हैं जिससे मनुष्य इसे आसानी से ढूंढ ना सके।

अन्य देवतागण बोले, परन्तु वह जगह कौन सा होगा जहाँ उपहार को छुपाया जाये। कोई देवता बोले इसे समुद्र की गहराई में छुपा देते हैं। भगवन बोले – मनुष्य समुद्र की गहराई में भी गोता लगाकर इसे प्राप्त कर कर लेगा।

अन्य देवतागण बोले – तो चलिए इसे समुद्र के बीचो बीच दबा देते हैं। भगवन बोले, मनुष्य ऐसे-ऐसे मशीनों का अविष्कार कर लेगा, जो जमींन की गहराइयों को भी खोद कर यह उपहार प्राप्त कर लेगा।

इस तरह चर्चा चलती रही, परन्तु कोई सुझाव ही पसंद नहीं आ रहा था। भगवान एक-एक करके सारे सुझाव को नकारते ही जा रहे थे। बहुत सोंच विचार के बाद अंत में स्वयं भगवन को एक सुझाव आया।

भगवन बोले – इस उपहार को मनुष्य के भीतर ही छुपा दिया जाये, मनुष्य अपने बाहार, आस-पास हमेसा खुशियां और प्रसन्ता ढूंढता रहेगा परन्तु खुशियों का उपहार उसके भीतर ही होगा।

केवल वही व्यक्ति इस अनमोल उपहार को पा सकेगा, जो इस दुनिया को छोड़ अपने भीतर झांक पायेगा।

दोस्तों प्रसंग का तात्पर्य यह है की हम खुशियों को अपने आस-पास ढूंढते रहते है परन्तु खुशियों का अनमोल खजाना तो हमेसा हमारे भीतर ही विद्यमान रहता है।

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