“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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सकारात्मक रवैया

एक आदमी एक सेठ की दुकान पर नौकरी करता था। वह बेहद ईमानदारी और लगन से अपना काम करता था। उसके काम से सेठ बहुत प्रसन्न था और सेठ द्वारा मिलने वाली तनख्वाह से उस आदमी का गुज़ारा आराम से हो जाता था।

ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे। एक दिन वह आदमी बिना बताए काम पर नहीं आया। उसके न आने से सेठ का काम रूक गया।

तब सेठ ने सोचा कि यह आदमी इतने दिनों से ईमानदारी से काम कर रहा है। मैंने कब से इसकी तन्ख्वाह नहीं बढ़ाई। इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा?

सेठ ने सोचा कि अगर इस आदमी की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत और लगन से काम करेगा। उसने उसी महीने से ही उस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी।

उस आदमी को जब एक तारीख को बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया। लेकिन वह कुछ नहीं बोला और चुपचाप पैसे रख लिये… धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी। कुछ महीनों बाद वह आदमी फिर कुछ दिन ग़ैर हाज़िर हो गया।

यह देखकर सेठ को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- कैसा कृतघ्न आदमी है। मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी।

इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह नहीं सुधरेगा! और उसी दिन सेठ ने बढ़ी हुई तनख्वाह वापस लेने का फैसला कर लिया।

अगली 1 तारीख को उस आदमी को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। लेकिन हैरानी यह कि इस बार भी वह आदमी चुप रहा।

उसने सेठ से ज़रा भी शिकायत नहीं की। यह देख कर सेठ से रहा न गया और वह पूछ बैठा- बड़े अजीब आदमी हो भाई। जब मैंने तुम्हारे ग़ैर-हाज़िर होने के बाद पहले तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले। और आज जब मैंने तुम्हारी ग़ैर-हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम करके दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है?

उस आदमी ने जवाब दिया- जब मैं पहली बार ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था। उस वक्त आपने जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तो मैंने सोचा कि ईश्वर ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ…

जिस दिन मैं दोबारा ग़ैर-हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं…

फिर मैं इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ?

यह सुनकर सेठ गदगद हो गया। उसने उस आदमी को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। उसके बाद उसने न सिर्फ उस आदमी की तनख्वाह पहले जैसे कर दी, बल्कि उसका और ज्यादा सम्मान करने लगा।

शिक्षा:-हमारे जीवन में अक्सर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की घटनाएं होती रहती हैं। जो आदमी एक अच्छी घटना से खुश होकर अनावश्यक उछलता नहीं, और नकारात्मक घटनाओं पर अनावश्यक दु:ख नहीं मनाता और हर दशा में अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखते हुए सच्ची लगन और ईमानदारी से कार्य करता रहता है, वही आदमी जीवन में स्थाई सफलता प्राप्त करता है।

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