गीता का उपदेश (Geeta ka Updesh) महाभारत के युद्ध में अपने शिष्य अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने दिए थे जिसे हम गीता सार (Geeta Saar Hindi) या गीता उपदेश (Geeta Updesh) भी कहते हैं। श्रीमद्भगवद् गीता (Bhagavad Geeta Saar) हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध मेंने गीता का सन्देश (Geeta Saar) अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। भगवत गीता में एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है।
श्रीमद्भगवद्गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और जीवन की समस्यायों से लड़ने की बजाय उससे भागने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत के महानायक थे, अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गए थे, अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से विचलित होकर भाग खड़े होते हैं। आज 5 हजार साल से भी ज्यादा वक्त बित गया हैं लेकिन गीता के उपदेश आज भी हमारे जीवन में उतने ही प्रासंगिक हैं।
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है।
जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिंता न करो। वर्तमान चल रहा है।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
गीता सार | Geeta Saar
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा, परंतु आत्मा स्थिर है- फिर तुम क्या हो?
तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिंता व शोक से सर्वदा मुक्त है।
जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवनमुक्त का आनंद अनुभव करेगा।
गीता सार | Geeta Saar
Geeta Updesh in Mahabharat
- मानव शरीर अस्थायी और आत्मा स्थायी है
- जीवन का एक मात्र सत्य है वो है मृत्यु
- गुस्से पर काबू करना चाहिए क्योंकि क्रोध से व्यक्ति का नाश हो जाता है:
- व्यक्ति अपने कर्मों को नहीं छोड़ सकता है:
- जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है।
- इंसान को अपने मन को काबू में रखना चाहिए
- मनुष्य को पहले खुद का आकलन करना चाहिए और खुद की क्षमता को जानना चाहिए
- खुद पर पूरा भरोसा रखे और अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातर प्रयास करें
- अच्छे कर्म करें और फल की इच्छा ना करें
- मनुष्य की इंद्रियों का संयम ही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है
- तनाव से दूर रहना चाहिए क्योंकि तनाव इंसान को सफल होने से रोकता है
- अपना काम को प्राथमिकता दें और इसे पहले करें
- लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान की विभूतियां हैं
- जो लोग भगवान का सच्चे मन से ध्यान लगाते हैं वह पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं
- अपने काम को मन लगाकर करें और अपने काम में खुशी खोजें
- किसी भी तरह की अधिकता इंसान के लिए बन सकती है बड़ा खतरा
- दूसरी की भलाई पर ध्यान दे, सिर्फ अपना मतलब नहीं साधे
- ईश्वर हमेशा मनुष्य का साथ देता है
- संदेह की आदत इंसान के दुख का कारण बनती है