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अलिफ लैला – व्यापारी और दैत्य की कहानी

शहरजाद कहानी सुनाती है, ‘बरसों पहले एक अत्यंत धनी व्यापारी हुआ करता था। उसके पास अथाह संपत्ति थी। दर्जनों शहरों में बड़ी-बडी कोठियां थी। गाड़ी-घोड़े, नौकर-चाकर के साथ तमाम सुविधाएं मौजूद थी। उसका व्यापार विदेशों तक फैला हुआ था। एक बार उसे कुछ काम के लिए विदेश जाने की दरकार पड़ी। उसने यह बात अपनी पत्नी को बताई और रास्ते के लिए कुछ नाश्ता बांध देने को कहा। पत्नी ने वही किया। अगले दिन व्यापारी झोले में खजूर और कुलचे लिए और घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा। कई मील चलने के बाद वह थक गया और विश्राम करने का सोचा। पास में उसे एक तालाब दिखा वह तालाब किनारे पेड़ की छांव में आराम फरमा लगा और झोले में साथ लाए खजूर खाने लगा। व्यापारी ने खजूर खाकर इधर-उधर फेंक दिए और आंख बंद करके आराम फरमाने लगा।

अचानक उसकी आंख खुली और उसने देखा कि सामने एक विशालकाय राक्षस हाथों में तलवार लिए खड़ा है। वह डर गया। घबराकर उठा और हाथ जोड़ लिए। इतने राक्षस जोर से गरजा। उसने कहा, ‘तुम हत्यारे हो। तुमने मेरे बेटे की हत्या की अब मैं तुम्हारा वध करुंगा।’ व्यापारी डर से कांपने लगा और रुआंसी आवाज में बोला, ‘मैंने किसी की हत्या नहीं की है।’ इतने में राक्षस बोला ‘तूने मेरे बेटे को मारा है इसलिए मैं तुझे मारूंगा।’ व्यापारी बोला ‘मैंने तो आपके बेटे को कभी देखा तक नहीं फिर भला मैं उसे कैसे मार सकता हूं।’ राक्षस बोला ‘तूने खजूर खाए और उसका बीज फेंका। उसी बीज से चोट खाकर मेरे बेटे की जान चली गई है।’ व्यापारी बोला ‘मैंने जान बूझकर किसी की जान नहीं ली, आप मुझे क्षमा कर दीजिए।’ राक्षस चिल्लाया ‘मैं क्षमा नहीं केवल प्रतिशोध जानता हूं, मैं तुम्हारी जान लूंगा तभी मेरे पुत्र को न्याय मिलेगा।’

इतना कहते ही राक्षस ने व्यापारी का गला पकड़ा उसे मारने को आतुर हो गया। व्यापारी रोता रहा, गिड़गिड़ा रहा और अपने प्राणों की भीख मांगता रहा लेकिन राक्षस ने उसकी एक नहीं सुनी। जैसे ही उसने व्यापारी के प्राण लेने के लिए तलवार निकाली वैसे ही व्यापारी बोला ‘एकबार मेरी बात सुन लीजिए।’ इतनी कहानी बताकर शहरजाद चुप हो गई। उसने खिड़की से बाहर देखा कि रात बीत गई है और उजाला हो गया है। इतने में छोटी बहन दुनियाजाद बोली, ‘दीदी कहानी में आगे क्या हुआ, क्या व्यापारी मारा गया।’ शहरजाद बोली ‘बादशाह के नमाज पढ़ने का वक्त हो गया है।’ तो दुनियाजाद बोली, ‘लेकिन आगे की कहानी…’ शहरजाद बोली, ‘अगर बादशाह मुझे आज जीवित रहने की अनुमति दें तो आगे की कहानी तुम्हें कल अवश्य सुनाऊंगी।’

बादशाह शहरयार बिस्तर से उठे और कक्ष से बाहर आ गए. उन्हें भी कहानी पसंद आ रही थी इसलिए उन्होंने शहरजाद की मृत्यु अल्पकाल के लिए रोक दी। उन्होंने सोचा कि कहानी खत्म होने तक वे शहरजाद को नहीं मरवाएंगे। तैयार होकर वे मंत्रिमंडल के बीच आए। जहां मंत्री इस चिंता में डूबा खड़ा था कि आज उसे अपने हाथों से अपनी बेटी को मौत के मुंह में पहुंचाना है। वह बादशाह के आज्ञा की राह देखने लगा। काफी समय बीत गया लेकिन बादशाह ने शहरजाद के लिए मृत्युदंड का फरमान नहीं सुनाया। उसे आश्चर्य तो हुआ लेकिन उसने बादशाह से कुछ पूछा नहीं। किसी तरह दिन गुजरा। रात्रि भोज के बाद बादशाह शहरयार अपने कक्ष में पहुंचा। जहां शहरजाद और दुनियाजाद पहले से मौजूद थी। सभी सो गए।

कुछ देर बाद दुनियाजाद उठी और शहरजाद के पास आकर बोली, ‘दीदी! व्यापारी के साथ क्या हुआ? मुझे बड़ी उत्सुकता है मैं सो नहीं पा रही कृप्या आगे की कहानी सुनाओ।’ शहरजाद अनुमति के लिए बादशाह की ओर देखने लगी। बादशाह ने हां की मुद्रा में सिर हिलाया और खुद भी उठकर कहानी सुनने लगा। शहरजाद ने कहानी दोबारा शुरू की… व्यापारी की प्रार्थना करने पर राक्षस उसकी बात सुनने के लिए राजी हो गया। व्यापारी ने राक्षस का आभार किया और कहा, ‘आप मुझे केवल एक साल की मोहल्लत दें ताकि मैं अपने अधूरे कामकाज निपटा आऊं। आखिरी बार परिवार से मिल आऊं। बीवी-बच्चों को देख आऊं और उनके बीच जायदाद का बंटवारा कर आऊं ताकि मेरे जाने के बाद ये लोग आपस में लड़े न और शांतिपूर्वक रहें।’ राक्षस चिल्लाता है, ‘नहीं। तुम मुझे क्या बेवकूफ समझते हो जो मैं तुम्हें यहां से जाने दूंगा। तुम वापस आओगे ये भला मैं कैसे मान लूं। अरे मौत के मुंह में कोई क्यों आएगा?’ व्यापारी बोला, ‘मैं अपनी जुबान से कभी नहीं फिरता और मैं आपको जुबान दे रहा हूं। मैं ठीक एक साल बाद यहां आऊंगा। आप मेरा भरोसा कीजिए। व्यापारी सौंगध खाते हुए कहता है।’ राक्षस व्यापारी की आंखों में सच्चाई देखता है और उसकी बात मान जाता है।

व्यापारी की जान में जान आती है और वह राक्षस को ठीक एक साल बाद आने का वचन देकर घर की ओर चल देता है। रास्ते भर व्यापारी यही सोचता रहा कि उसका जीवन मात्र एक साल ही शेष है। जैसे ही वह घर पहुंचा तो अपने बीबी-बच्चों को देखकर फूट-फूटकर रोने लगा। परिवार वालों को समझ नहीं आया कि व्यापारी को अचानक क्या हुआ। सभी घबरा गए और बार-बार पूछने लगे। व्यापारी ने खुद को किसी तरह संभाला और घरवालों को पूरी बात बताई। व्यापारी महज एक साल का मेहमान है ये सुनकर घर में मातम मच गया। सभी दहाड़े मारकर रोने-बिलखने लगे। लेकिन व्यापारी ने सभी को संभाला और बोला, ‘ये एक साल मैं खुशी से जीना चाहता हूं और तुम सभी को खुश देखना चाहता हूं इसलिए कोई रोएगा नहीं सभी हंसते-मुस्कुराते रहेंगे।’ घरवालों ने व्यापारी की बात मान ली।

अगले दिन सुबह उठते ही व्यापारी उन कार्यों में लग गया जिसके लिए उसने राक्षस से एक साल का समय मांगा था। उसने सभी महाजनों का उधार चुकाया। पंडितों और जरुरतमंदों में भरपूर दान दिए। भंडारा करवाया। सभी व्यापारी को लंबी उम्र का आशीर्वाद देते रहे। लेकिन इन सब के बीच वह रोज दिन गिनता था कि उसकी मौत में कितने दिन बचे हैं। उसने साल भर सामाजिक कार्य किए और बची संपत्ति बेटे-बेटियों और पत्नी के नाम कर दी। इन कार्यों में एक साल कैसे बीत गया व्यापारी को पता ही न चला। आखिर व्यापारी के जाने का दिन आ गया। उस दिन घर में सुबह से ही चीख-पुकार मच गया। परिवार वाले उससे लिपट कर रोने-बिलखने लगे और व्यापारी की पत्नी को तो मानों लकवा मार गया था। अपने वचन के मान के लिए व्यापारी घोड़े पर सवार होकर निकला। मन ही मन सोच रहा था कि हर गज के साथ वह मृत्यु के करीब जा रहा था। लेकिन वह विवश था।

लंबी दूरी तय करने के बाद वह उस जगह पर पहुंच गया जहां राक्षस ने उसे मिलने को कहा था। वह तालाब किनारे पेड़ की छांव में बैठकर राक्षस की राह देखने लगा। इतने में एक बुजुर्ग हिरण लिए पहुंचा। व्यापारी को परेशान देखकर बुजुर्ग बोला, ‘तुम यहां इस तरह क्यों बैठे हो? तुम्हें पता होना चाहिए कि ये राक्षसों का इलाका है अत: यहां से जाओ।’ व्यापारी बोला, ‘स्वामी! मैं यहां राक्षस की ही राह देख रहा हूं।’ इतना सुनते ही बुजुर्ग बोला, ‘क्या तुम पागल हो? जान बूझकर मरने क्यों बैठे हो?’ व्यापारी ने उसे सारी कहानी बताई। कुछ देर शांत रहने के बाद बुजुर्ग बोला, ‘तुम बड़े सत्यवान हो। अपने वचन के मान के लिए तुम दोबारा मौत के मुंह में आए ऐसा शायद ही कोई करता। तुम धन्य हो।’

बुजुर्ग व्यापारी के पास बैठ गया और दोनों आपस में बातें करने लगे। इतने में एक अन्य वृद्ध वहां से गुजरा। जिसके हाथ में एक रस्सी थी और उससे दो काले कुत्ते बंधे हुए थे। वृद्ध उन दोनों को वहां सुनसान रास्ते में अकेले देखकर रुक गया और ठहरने की वजह पूछी। इतने में वहां पहले से मौजूद बुजुर्ग ने व्यापारी की सारी कहानी उसे बताई। व्यापारी की सत्यता देखकर वृद्ध काफी खुश हुआ और बोला ‘तुम्हारा त्याग बरसों तक याद किया जाएगा। तुम्हारे वचन पालन की मिसाल दी जाएगी। तभी तीसरा बुजुर्ग वहां आया उसके हाथ में एक खच्चर था। तीनों को आपस में बात करते और परेशान देख वह उनके करीब आया और बोला ‘आप सभी इस तरह यहां क्यों बैठे हैं?’ दूसरे बुजुर्ग ने उसे व्यापारी की कहानी सुनाई। पूरा वृतांत सुनकर तीसरा व्यापारी कुछ नहीं बोला और वहीं उनके साथ बैठ गया।

सभी बैठे ही थे कि जगंल में तेज गर्जना हुई। सभी डर गए। कुछ क्षण बाद एक विशालकाय राक्षस वहां प्रकट हुआ जिसके हाथ में तलवार थी। वह काफी भयावह दिख रहा था। उसे देखते ही व्यापारी समझ गया कि ये वही राक्षस है जिससे एक साल पहले उसकी मुलाकात हुई थी। वह उसे मारने आया है। राक्षस ने व्यापारी को अपने पास आने का इशारा किया। व्यापारी उठा और राक्षस के करीब जाने लगा। तभी हिरण के साथ आया पहला बुजुर्ग भागते हुए राक्षस के पास पहुंचा। उसने हाथ जोड़े और बोला ‘दैत्य महाराज मेरी आपसे एक प्रार्थना है। मैं चाहता हूं कि कुछ क्षण के लिए आप अपना क्रोध भूलकर धैर्यपूर्वक मेरी बात सुनें। मैं आपको हिरणी की कहानी सुनाना चाहता हूं अगर आपकी आज्ञा हो तो। हां लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त ये है कि अगर आपको कहानी विचित्र लगी तो आप इस व्यापारी का एक तिहाई अपराध माफ कर देंगे।’ राक्षस कुछ देर सोचता है और फिर बुजुर्ग की शर्त मान जाता है।

 

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