होलिका दहन का इतिहास हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण है। यह पर्व होली के पूर्व दिन मनाया जाता है और यह भारत में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। होली का महत्व और परंपरा दृढ़ता से उनकी कथा में प्रतिष्ठित है।
कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस राजा था जो अपनी भक्ति में प्रह्लाद नामक बेटे की प्रेरणा के बावजूद भगवान विष्णु की प्रतीक्षा में उसे हत्या करने की कोशिश करता रहा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका थी, जो असीम प्राकृतिक शक्ति के धारी होती थी। वह एक अमरनी परियों की थी, जिसे आग से नुकसान नहीं होता था।
हिरण्यकश्यप ने सोचा कि वह अपने बेटे को होलिका की गोद में बैठाकर उसे जला सकता है। होलिका ने अपने आसन पर बैठे हुए प्रह्लाद को गोद में बैठाया और उसे आग में डालने का प्रयास किया। लेकिन भगवान के आशीर्वाद से प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं हुआ, जबकि होलिका की आग में जलकर उसकी मृत्यु हो गई। यह घटना धरती में अच्छाई की जीत का प्रतीक बन गई और होली के पर्व का आयोजन होता है, जिसमें आग के सम्मान में दहन किया जाता है।
होली के इस पर्व में भारतीय लोग एक-दूसरे के साथ खुशियों का उत्सव मनाते हैं, रंग-बिरंगी गुलाल फेंकते हैं, मिठाईयाँ खाते हैं, और एक-दूसरे के साथ खेलते हैं। यह पर्व सामाजिक एकता, प्यार, और भाईचारे का प्रतीक है।