निद्रा में शरीर की इन्द्रियाँ शिथिल पड़ जाती हैं, दैनिक गतिविधियों से शरीर की कोशिकाओं में हुई टूट-फूट की मरम्मत व अगले दिन के लिये स्फूर्ति के लिये सोना प्रायः आवश्यक रहता है परन्तु नींद को घण्टों में नहीं तौला जा सकता, वास्तव में निद्रा की गुणवत्ता आवश्यक होती है, गुणवत्ता विहीन 7 घण्टे की निद्रा के बजाय गुणवत्ता पूर्ण 4 घण्टे की निद्रा पर्याप्त होगी।
यहाँ अनिद्रा, निद्राभंग, समय पर नींद न आने के विषय में सर्वसमावेशी आलेख प्रस्तुत किया जा रहा है जिसमें आप निद्रा व दिनचर्या को नियमित करने के बारे बहुत कुछ सीख जायेंगे, अगला दिन नवस्फूर्ति से आरम्भ कर पायेंगे, यदि परिवर्तनशील शिफ़्टों अथवा नाइट-शिफ़्ट में कार्य करते हैं तो भी जीवनशैली को अधिकाधिक सामान्य रखने में सहायता अवश्य होगी.
क्या कभी न करें ?
1. मद्यपान बिल्कुल न करें, अन्यथा हार्मोनल असंतुलन, स्लीप एप्निया, खर्राटे इत्यादि की आशंकाएँ बनी रहेंगी।
2. सोते समय क्या करें, क्या न करें ?
3. शाम से प्रकाश, विशेष तौर पर नीले प्रकाश को कम से कम करें, विशेषतया इलेक्ट्रानिक गजेट्स का प्रयोग न ही करें तो बेहतर।
4. शाम या रात को काफ़ी व चाय से दूरी बरतें।
5. रात का भी खाना समय पर खायें।
6. सोते समय या तो पूर्ण अंधकार रखें अथवा ज़ीरोवाट जितना अल्पतम प्रकाश रखें एवं वह भी नेत्रों पर न पड़ पाये।
7. पलकें बन्द रखें : नींद न आ रही हो तो भी नेत्रों को बन्द करके रखें, अन्यथा दृष्य देखकर चित्त चंचल हो सकता है एवं नींद आते-आते वापस जा सकती है। अनिद्रा हो या न हो, हर बार अपने इष्टदेव का ध्यान करते-करते निद्रारत हो जायें।
8. शवासन में सोयें : अपना शरीर बिना तकिये के बिस्तर पर पीठ के बल अर्थात् उत्तानावस्था में लेटायें, सिर से पैर सीधी रेखा में हों तथा अब हाथ-पैरों को एकदम ढीला छोड़ दें मानो कोई शव हो। सोने का आसन बिल्कुल समतल हो, अधिक कठोर न हो एवं इतना नर्म भी न हो कि शरीर के विभिन्न भाग उसमें धँसने लगें व नर्म आसन के कारण शरीर सीधी रेखा में न आ पा रहा हो।
9. गहरी साँसें लें : लम्बी-लम्बी साँसें एकदम धीरे-धीरे लें, पूरी साँस लेकर पूरी साँस हर बार छोड़ें।
10. सोने से पहले मन की अस्थिरता पर लगाम लगायें : कार्यालय का कार्य, घरेलु कार्य, सहकर्मी, रिश्तेदारी, आस-पड़ौस की वाद-विवाद इत्यादि को मन से यथासम्भव निकालें।
11. एक्यूप्रेशर का प्रयोग करें : लकड़ी के बने एक्यूप्रेशर-उपकरण स्थानीय स्तर पर दुकानों-बाज़ारों में उपलब्ध हो सकते हैं जो गोलीय, बेलनाकृतिक, पहियों वाले भी हो सकते हैं जिन्हें पैरों व पीठ पर चलाकर एक्यूप्रेशर लाभ प्राप्त किया जा सकता है (वैसे दिन में भी एक्यूप्रेशर चप्पलें पहनें)।
12. मालिश – अविवाहित हैं तो अपने हाथ-पैरों में स्वयं मालिश करें, विवाहित हैं तो जीवनसाथी से मालिश करवायें।
13. अनिद्रा की समस्या कुछ दिनों से अधिक हो तो सोने से पहले पैर थोड़ी देर गुनगुने पानी में डालें। हो सके तो इस दौरान हाथों से रक्तचाप इत्यादि में भी सहायक नर्म गेंदें जैसे गोलक दबाते रहें।
14. सोने के आधे-एक घण्टे पहले नहा आयें अथवा पूरा सिर धोलें अथवा मुख तो धो ही लें।
15. घरेलु परिवेश को ठीक करें : शोर न हो रहा हो (शोर की आशंका हो तो कान व सिर में मफ़्लर जैसा कुछ हल्के-से बाँधकर सोयें).
16. तापमान सामान्य हो, वातानुकूलित्र द्वारा सामान्य से कम न करें और वैसे भी नींद में शरीर का तापमान अपने आप कुछ कम हो जाता है जिससे वातानुकूलित्र के कारण नींद खुल सकती है। यदि शान्ति की ग्यारण्टी हो तो खिड़की खुली रखी जा सकती है.
17. सोते समय सहज साँसों पर ज़ोर दें, एकदम पतला चद्दर इत्यादि इस प्रकार ओढ़ें कि आपने उसमें एक ओर छोटा-सा छेद अपनी नाक के लिये रखा हो जहाँ सूती कपड़े की पुरानी मच्छरदानी के टुकड़े जैसी 2-3 पर्तें लगा सकते हैं ताकि मच्छर न काट सकें तथा मच्छरों को भगाने के अहिंसक तरीके अपनायें.
नीम की कुछ पत्तियाँ सोते समय जलाने के अतिरिक्त हर्बल अगरबत्तियों का भी प्रयोग किया जा सकता है, हाथ-पैर में हर्बल मच्छररोधी क्रीम एवं मच्छरदानी का प्रयोग भी किया जा सकता है, विशेषतया तब जब आप छत पर सो रहे हों.
सुबह से दिनभर क्या करें, क्या न करें ?
*. दिन के समय उजले प्रकाश, विशेष रूप से धूप में भी रहें। भवन के बाहर किये जा सकने वाले आधिकारिक व घरेलु कार्य खुले आकाष के नीचे सम्पन्न किये जा सकते हैं।
*. दिन में शारीरिक गतिविधि ख़ूब करेंः जैसे कार्यालय, खेत व घरेलु कार्य, सायकल चलाना, रस्सी कूदना, तेज चलना अथवा दौड़ना, सीढ़ियाँ चढ़ना, वनक्षेत्र अथवा हरी-भरी ऊबड़-खाबड़ जगह घूमना।
*. दिन में सोने से परहेज करें, यदि किसी दिन अत्यधिक आवश्यक लगे तो टेबल घड़ी में अलार्म भरकर अधिकतम आधे घण्टे की झपकी मात्र लें, यदि नींद बिल्कुल भी न लगे तो भी अलार्म से अथवा उससे उठ जायें, अलार्म का समय आगे बिल्कुल न बढ़ाना।
*. अन्य तरीके :
प्रयास करें कि शीघ्र सोयें व ब्रह्ममुहूर्त में उठ जायें, शीघ्र उठने के समय के प्रति अधिक स्थिर रहें। इसके लिये टेबल घड़ी अवश्य हो। अलार्म भरने में, अलार्म बंद करके वापस न सोने में एवं अलार्म का समय न बढ़ाने के सन्दर्भ में भी ईमानदार रहें।
यदि आरम्भ में सुबह समय पर न उठ पा रहे हो तो पहले 6 बजे का अलार्म भरें, फिर 15 मिनट्स कम, ऐसा करते-करते ब्रह्ममुहूर्त तक आयें एवं दोबारा नींद न आये इसके लिये शीघ्र स्नानादि से निवृत्त हो जायें, हो सकता है कि समय पर उठना शुरु करते समय आरम्भ में कुछ दिवसों तक दिन में नींद आये अथवा थकावट लगे किन्तु धीरे-धीरे स्थिति सुधरेगी एवं पहले से अधिक उत्साह व ऊर्जा की अनुभूति होने लगेगी।
स्लीप एप्निया का उपचार करवायें जिसमें नींद में साँस बीच-बीच में बन्द-बन्द हो जाती है। शारीरिक भार अथवा किसी आन्तरिक समस्या के कारण ऐसा हो सकता है, नैसर्गिक रूप से शारीरिक गतिविधियाँ बढ़ायें एवं आवश्यकतानुसार जाँचें कराते हुए चिकित्सात्मक उपचार करवायें।
मेलाटानिन सप्लिमेण्ट – मानव-शरीर में मेलाटानिन हार्मोन का मुख्य कार्य रात्रि व दिवस चक्रों, निद्रा-जागरण चक्रों का विनियमन करना होता है। अंधकार में शरीर अधिक मेलाटानिन उत्पन्न करता है जिससे शरीर को सोने का संकेत मिलता है। प्रकाश में मेलाटानिन उत्पादन घटता है जिससे जगने के लिये शरीर को तैयार होने का संकेत पहुँचता है। निद्रा समस्याओं से ग्रसित कुछ लोगों में मेलाटानिन स्तर कम होने की समस्या होती है।
ऐसा समझा जाता है कि मेलाटानिन सप्लिमेण्ट से इन्हें सोने में सहायता हो जायेगी। सप्लिमेण्ट के रूप में मेलाटानिन को प्रायः प्रयोगशाला में संष्लिष्ट कर लिया जाता है। यह शरीर में सीधे अवशोषित हो जाता है।
चिकित्सक व्यक्ति की आन्तरिक शारीरिक घड़ी को सामान्य करने, जेट लेग का प्रभाव घटाने एवं शिफ्ट-वर्क डिसार्डर से जुड़े दैनिक Work Scheduled परिवर्तनों वाले व्यक्ति में निद्रा-जागरण चक्रों को सुधारने में इस मेलाटानिन हार्मोन सप्लिमेण्ट का प्रयोग कर सकता है।
एल-थिएनिन – यह अमीनो अम्ल तनाव घटाने सहित निद्रा की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक है, इसे चिकित्सक सप्लिमेण्ट के रूप में दे सकता है – एन-थिएनिन सप्लिमेण्ट।
ग्लायसीन – यह अमीनो अम्ल मस्तिष्क पर प्रशन्तक (काल्मिंग) प्रभाव डालता है एवं समग्र शरीर के तापक्रम को कम रखते हुए निद्रास्थिति को बनाये रखने में सहायता करता है, वैसे इस अमीनो अम्ल को मानव-शरीर स्वयं बना लेता है फिर भी दालों व फलियों से इसे बाहर से प्राप्त भी किया जा सकता है।
ट्रिप्टोफ़ेन – यह एक एसेंशियल अमीनो अम्ल है, अर्थात् इसे मानव-शरीर नहीं बना सकता। दूध-पनीर, ओट्स, कुछ सूखे मेवों व बीजों में ट्रिप्टोफ़ेन पाया जाता है। यह निद्रा की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक बोला गया है तथा नींद तेजी से लाने में उपयोगी कहा जाता है।
कौरव-पाण्डव बेल – इसे राखी बेल भी कहा जाता है क्योंकि इसके पुष्पों को देखने पर पुराने ज़माने की राखी के जैसे लगते हैं। यह कमल नहीं है फिर भी इसे कृष्ण-कमल तक कह दिया जाता है, विशेष रूप से नीली राखी बेल को। इस बेल को कौरव-पाण्डव बेल इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें चारों तरफ़ सौ रेशे कौरवों के समान, मध्य में पाँच पाण्डव एवं सबसे मध्य में एक द्रौपदी जैसी संरचना होती है। इस पौधे को चाय में डालना अच्छी नींद लाने में सहायक कहा जाता है।
केमोमाइल – इस पौधे का सेवन (जैसे कि चाय में डालकर) अवसाद के लक्षणों को घटाने व आराम दिलाने में सहायक कहा गया है।
वेलेरियन जड़ – इस पौधे की जड़ निद्रा-विकारों में, विषेषतया ठीक से न सो पाने में राहत दिलाने में उपयोगी कही जाती है। एन्ज़ायटी व मानसिक तनाव को दूर कराने के भी लिये इसका सेवन कराया जाता है।
मैग्नीशियम – कद्दू के बीज, बादाम, गेहूँ का चोकर, साबुत अनाज, पालक सहित अन्य गहरे हरे रंग की पत्तेदार भाजियों, मूँगफली व काजू का सेवन अधिक किया करें। इनमें उपस्थित मैग्नीशियम शरीर व मन को शान्त रखने में सहायता कर सकता है जिससे सोना सरल हो जाता है।
लैवेण्डर – लैवेण्डर एक पौधा है जिसके पुष्प व तैल का प्रयोग एन्ज़ायटी, तनाव, अनिद्रा, अवसाद, पागलपन व शल्यक्रिया के बाद दर्द से राहत दिलाने वाला कहा जाता है, लैवेण्डर-सुगंध वाली सूखी धूपबत्ती भी घर में लगा सकते हैं।