मरम्मतें खुद की रोज़ करता हूँ, फिर भी ना जाने क्यों..
रोज़ मेरे अंदर एक नुक्स निकल ही आता है…..
मन की लिखूँ, तो शब्द रूठ जाते हैं….
और सच लिखूँ तो, अपने रूठ जाते हैं…
मानो तो, एक रूह का रिश्ता है, हम सभी का…..
ना मानों तो, कौन क्या लगता है, किसी का…