“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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लघुकथा

लघुकथा

“बेटा!.गाड़ी साफ कर दूं?”
रंजीत ने जैसे ही फ्यूल भरवाने के लिए अपनी कार पेट्रोल पंप पर रोका एक बुजुर्ग भागकर उसकी गाड़ी के करीब आया।
“नहीं अंकल!.अभी थोड़ी जल्दी में हूँ।”
यह कहते हुए रंजीत ने उस बुजुर्ग को टालना चाहा लेकिन वह बुजुर्ग उससे विनती करने लगा..
“बेटा दस मिनट भी नहीं लगेंगे!.थोड़ा ठहर जाओ मैंने आज सुबह से अभी तक कुछ नहीं खाया है,. दस-बीस रुपए दे देना बस!”
बुजुर्ग की हालत देख रंजीत को उस पर दया आ गई “अंकल!.मैं आपको रुपए दे देता हूंँ आप कुछ खा लीजिएगा!”
यह कहते हुए रंजीत ने अपनी जेब से बटुआ निकाल लिया लेकिन बुजुर्ग ने यह कहते हुए रुपए लेने से इंकार कर दिया कि..
“बेटा!.मैं भीख नहीं ले सकता।”
“अंकल!. यह भीख नहीं है,. मैं आपकी इज्जत करता हूंँ!.आप मेरे पिता समान है,. लेकिन आपने सुबह से कुछ नहीं खाया है इसलिए मैं आपको यह कुछ रुपए देना चाहता हूंँ।”
“नहीं बेटा!. आप जाइए,. मैं इंतजार करूंगा!. आप नहीं तो कोई और सही!. किसी ना किसी को तो मेरी मेहनत की जरूरत होगी।”
यह कहते हुए वह बुजुर्ग वापस मुड़ गया।
उस बुजुर्ग का आत्मसम्मान और स्वाभिमान देख रंजीत हैरान हुआ।
वह बुजुर्ग उसे कोई आम इंसान नहीं लगा इसलिए रंजीत अपनी कार छोड़ उस बुजुर्ग के पीछे आया..
“अंकल!.क्या मैं आपसे दो मिनट बात कर सकता हूंँ?”
“बोलो बेटा!”
“आप कहां रहते हो?”
“यहीं!”
“यहां कहां?”
“यह पेट्रोल पंप ही मेरा ठिकाना है!.मैं यही रहता हूंँ।”
“आपका कोई घर-द्वार भी तो होगा ना?”
“घर था!. लेकिन अब नहीं रहा।”
“मैं कुछ समझा नहीं अंकल?”
“बच्चों को पढ़ाने और लायक बनाने के चक्कर में मैं अपना घर बेचकर एक किराए के मकान में रहने लगा था।”
“अंकल!.अब आपके बच्चे कहां रहते हैं?” रंजीत को जिज्ञासा हुई।
“एक विदेश में है और दूसरा यहीं इसी शहर में!”
“अंकल!.आप उनके साथ क्यों नहीं रहते?”
“बेटा!. उनके घर में मेरे रहने लायक कोई जगह नहीं है!”
“क्यों अंकल?”
“मेरा एक बेटा इंजीनियर है और एक डॉक्टर!”
“मुझे लगता है उन दोनों की कमाई अच्छी खासी होगी!. है ना अंकल?”
“हांँ बेटा!. मेरा एक बेटा इसी शहर में डॉक्टर है!. साठ हजार रुपए किराया देकर एक बंगाले में रहता है!. पच्चीस-पैतीस लाख की गाड़ी से चलता है,. लेकिन मेरे लिए उसके पास कुछ नहीं है।”
यह कहते-कहते उस बुजुर्ग की आंखों में आंसू छलक आए।
“अंकल!.आप अपने बच्चों पर आपको गुजारा भत्ता देने के लिए कोर्ट में मुकदमा दायर क्यों नहीं करते?. आख़िर आपने अपना सब कुछ दे कर उन्हें कमाने लायक बनाया है।”
रंजीत ने उस बुजुर्ग को सलाह दी और उसकी बात सुनकर वह बुजुर्ग मुस्कुराया..
“बेटा!. मैंने उनकी परवरिश पर जो कुछ भी खर्च किया वह सब कुछ अपनी मर्जी से किया था!. अगर मैं वह सब कुछ उन पर मुकदमा करके मांग भी लूं तो उन सब चीजों का अब मैं करूंगा क्या?”
“फिर भी अंकल!.आपको उनसे कुछ ना कुछ तो मिलना ही चाहिए।”
“बेटा!.दो रोटी तो मैं अपनी मेहनत से आज भी कमा लेता हूंँ!.रही मुकदमा दायर करने की बात तो अदालत में मुकदमा दायर कर बच्चों के प्रति स्नेह और माता-पिता के प्रति सम्मान नहीं मांगा जा सकता इस बात का अंदाजा मुझे भी है।”
उस बुजुर्ग की बात सुनकर रंजीत नतमस्तक हो गया उसे अब कुछ कहते नहीं बन रहा था लेकिन फिर भी उसने अपनी बात को दूसरी ओर मोड़ दिया..
“अंकल!.अब मैं इतनी देर ठहर ही गया हूंँ तो आप मेरी कार पर जमी धूल साफ कर दीजिए।”
वह बुजुर्ग अपने हाथ में थामे साफे से झटपट उसकी कार पर जमीन गर्द को साफ करने लगा लेकिन उस बुजुर्ग की जिंदगी पर जमीन गर्द को साफ करने में असमर्थ रंजीत मन ही मन सोच रहा था कि,..

एक अकेला गरीब पिता अपने बच्चों को लायक बनाने की हिम्मत रखता है लेकिन जवान होने पर वही बच्चे सक्षम होने के बावजूद अपने बुजुर्ग हो चुके माता-पिता को संभालने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते!
इसी उधेड़बुन में खड़े रंजीत ने उस बुजुर्ग के सामने एक ऑफर रखा..
“अंकल मेरे पास गाड़ियों का एक शोरूम है!.अगर आप चाहे तो वहां गाड़ियों की देखभाल का काम कर सकते हैं।”
रंजीत की बात सुनकर उस बुजुर्ग के हाथ रुक गए वह मुस्कुराया..
“बेटा!.आप बहुत दयालु हो लेकिन मुझे किसी की दया की जरूरत नहीं है।”
रंजीत ने आगे बढ़कर उस बुजुर्ग का हाथ अपने हाथों में लेकर उसे आश्वस्त किया..
“नहीं अंकल!.वहां भी आपको आपकी मेहनत के बदले ही रुपए मिलेंगे।”
एक अजनबी से इतनी आत्मीयता पाकर उस बुजुर्ग के चेहरे पर गजब का स्वाभिमान था।

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