एक संत महात्मा थे, गांव से कुछ ही दूर जंगल के पास उनकी कुटिया थी जहां वे निवास करते थे और भक्ति भजन में लगे रहते थे। गांव के लोग भी महात्मा के दर्शन के लिए रोजाना जाया करते थे और उनसे ज्ञान की बातें सुना करते थे, महात्मा रोज शाम को गांव वालों को प्रवचन में अच्छी-अच्छी बाते बताया करते थें।
उनके ज्ञानवर्धक प्रवचन का असर इस कदर फैला हुआ था कि दो व्यक्ति उनसे बहुत अधिक प्रभावित थे। उन दो व्यक्तियों का मन था की महात्मन उन्हें अपना शिष्य (चेला) बना लें और अपने साथ अपने कुटिया में रखकर सेवा का मौका दें एक दिन जब महात्मा गांव वालों को प्रवचन देकर उठे तब उन दो व्यक्तियों ने अपनी इक्षा महात्मा के सामने रखी।
दोनों व्यक्तियों ने महात्मा से बोला – हे गुरुदेव, हमें अपना शिष्य बना लीजिये।
महात्मा ने दोनों को देखते हुए बोला कि तुम दोनों मेरा शिष्य बनना चाहते हो परन्तु शिष्य तो कोई एक बन सकता है।
दोनों व्यक्ति महात्मा से निवेदन करने लगे कि हमें अपना शिष्य बना लीजिये। एक बोलता हमे शिष्य बनाइये, दूसरा बोलता हमे बनाइये।
तब गुरूजी (महात्मा) ने कुछ फैसला लिया और फिर दोनों से बोले कि देखों तुम दोनों को मेरा शिष्य बनने के लिए एक परीक्षा देना होगा। और जो इस परीक्षा में पास हो जायेगा वह मेरे शिष्य बनने के योग्य होगा।
दोनों व्यक्ति मान गए और बोले, ठीक है गुरूजी बताइये हमें कौन सी परीक्षा देनी है।
गुरूजी ने उन दोनों को एक तिनका (बांस की पतली सी लकड़ी) दिया और बोले की कल सुबह जब प्रवचन सुनने के लिए आओगे तब इस लकड़ी के टुकड़े को बीच से तोड़ के लाना। और याद रहे कि इस लकड़ी को ऐसे जगह तोड़ना जहाँ तुम्हे कोई देख ना रहा हो।
और फिर दोनों व्यक्ति गुरूजी से आशीर्वाद लेकर अपने-अपने घर चले गएँ।
दूसरे दिन दोनों गुरूजी के पास लौटकर आये। गुरूजी ने उनसे सवाल किया कि कल जो मैने तुम्हे आज्ञा दी थी उसे तुम दोनों ने पूरा किया। पहला व्यक्ति बोला हां गुरूजी यह रही आपकी लकड़ी का तिनका जिसे मैने घर से कुछ दुरी पर जाकर शांत वातावरण में जहाँ कोई नहीं था वहा दो टुकड़ो में तोड़ लिया है।
फिर गुरूजी ने दूसरे व्यक्ति से बोला कि तुम भी दिखाओ लड़की का वह टुकड़ा जिसे तुमने अकेले में तोडा होगा।
वह व्यक्ति बोला मुझे क्षमा कीजिये गुरुदेव परन्तु मै उस लकड़ी को तिनके को दो भागों में नहीं तोड़ पाया।
गुरूजी बोले ऐसा क्यों – व्यक्ति ने जवाब दिया गुरूजी मैने उस लकड़ी के तिनके को तोड़ने के लिए प्रयास किया परन्तु मुझे ऐसा कोई एकांत जगह मिला ही नहीं जहाँ मुझे कोई देख ना रहा हो इस वजह से मै उसे तोड़ नहीं पाया।
क्योंकि मै जहाँ-जहाँ गया वहा मै अकेला नहीं था जंगल में पेड़-पौधे मेरे साथ थे जमीन और आकाश मुझे हमेसा देख रहे थे ऐसा कोई जगह ही नहीं मिला जहाँ मै अकेला होता।
गुरूजी उस व्यक्ति की बात से प्रशन्न हुए और उसे अपना शिष्य बना लिया।
सार: दोस्तों जो चीज हमें सरल लगती है या कोई गुरु ऐसा बात कहे जिसका अर्थ बड़ा सरल सा लगे तो जरुरी नहीं है की उसका जवाब या हल भी सरल ही हो। जीवन में कई बार ऐसे चीज़ें होती है जो दिखने में तो सरल लगती है परन्तु उसका अर्थ या उत्तर उतना सरल नहीं होता।