“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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यदि आप मानसिक शांति प्राप्त करना चाहते हों, तो अपना व्यवहार न बिगड़ने दें।

“यदि आप मानसिक शांति प्राप्त करना चाहते हों, तो अपना व्यवहार न बिगड़ने दें।”

संसार में किन्हीं भी दो व्यक्तियों के विचार 100% एक समान नहीं होते। कहीं न कहीं, कुछ न कुछ मतभेद होता ही है। “क्योंकि हर एक व्यक्ति की इच्छाएं संस्कार पारिवारिक पृष्ठभूमि भोजन पड़ोस का वातावरण शिक्षक पुस्तकें साहित्य माता पिता और गुरु जी द्वारा प्रशिक्षण आदि सब अलग अलग होता है। इन सब कारणों से लोगों के विचारों में, व्यवहार में अंतर आना स्वाभाविक है।”
जब लोगों के विचारों में टकराव होता है, और उनमें काम क्रोध लोभ ईर्ष्या अभिमान अविद्या राग द्वेष इत्यादि अन्य दोष भी होते हैं, तो इन दोषों के कारण व्यक्ति दूसरों पर अन्याय भी कर देता है। दुर्व्यवहार आदि भी करता है। इसी प्रकार से कभी-कभी लोग एक दूसरे पर झूठे आरोप भी लगा देते हैं। यह तो संसार में प्रतिदिन चलता रहता है।
अब संसार में, क्योंकि सब लोग एक जैसे नहीं हैं। “कुछ संस्कारी लोग हैं, जो पूर्वजन्म के विशेष संस्कार लेकर आए हैं। वे हमेशा धर्म का आचरण करते हैं। धर्म को कभी नहीं छोड़ते।” “कुछ दूसरे लोग हैं, जो अपने पूर्व खराब संस्कारों के कारण दुष्ट प्रवृत्ति के होते हैं। ऐसे लोग जब दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, तो अच्छे संस्कारी लोग भी कभी कभी उचित मात्रा में न्याय पूर्वक क्रोधित होते हैं। यह तो स्वाभाविक है, और उचित भी है। क्योंकि वे चेतन हैं। उनको भी न्याय पूर्वक जीवन जीने का पूरा अधिकार है। उनमें भी भावनाएं होती हैं। जब उनकी भावनाओं पर अन्याय पूर्वक आघात होता है, तो क्रोध आना स्वाभाविक है।” “हां, मरे हुए व्यक्ति को या पत्थर आदि जड़ पदार्थ को क्रोध नहीं आता।”
इतना होने पर भी, वे संयमी सदाचारी बुद्धिमान लोग अपना होश नहीं खोते। होश में रहते हैं। अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हैं। “यदि उनको उस घटना में दंड देने का अधिकार हो, तो वे दंड भी देते हैं। परंतु असभ्यतापूर्ण व्यवहार नहीं करते। अन्याय नहीं करते। झूठे आरोप नहीं लगाते। अपनी ओर से कोई ऐसा कर्म नहीं करते, जो धर्माचरण के विरुद्ध हो।” ऐसे बुद्धिमान संस्कारी लोग सदा सुखी रहते हैं। मानसिक दृष्टि से शांत रहते हैं। भले ही उन्हें क्षणिक क्रोध या आवेग आ भी गया हो, परंतु वह स्थाई रूप से नहीं रहता, और कुछ समय में समाप्त हो जाता है। इतना तो जीवन जीने के लिए, और अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक भी है। इसके बिना तो जीवन जीना भी संभव नहीं है।
कुछ लोग ईश्वर पर भी झूठे आरोप लगाते हैं, और संसार के लोगों के साथ भी बहुत सा अन्याय आदि पाप कर्म करते हैं। “ईश्वर उन सबके कर्मों को देखता है। ईश्वर ने सबका न्याय करने की जिम्मेदारी ले रखी है। ऐसे दुष्ट लोगों के पाप कर्मों को देखकर उचित मात्रा में तो ईश्वर भी क्रोधित होता है। क्योंकि ऐसा करना उचित है। इसके बिना न्याय नहीं हो सकता।” “ईश्वर का जो क्रोध होता है, वह शुद्ध अर्थ में है। वह दूषित अर्थ में नहीं है। वेद आदि शास्त्रों में उसका नाम मन्यु है। ऐसा ही मन्यु का प्रयोग, न्यायकारी मनुष्य लोग भी करते हैं।” “यदि कोई अधिकारी व्यक्ति मन्यु का प्रयोग कर रहा हो, तो उस पर ऐसा आरोप नहीं लगाना चाहिए, कि यह क्रोध करता है। यह क्रोधी है। यह दोषी है।” “यदि कोई व्यक्ति ऐसा झूठा आरोप लगाता है, और उसे दोषी मानता है, तो यह आरोप लगाने वाले व्यक्ति की भारी भूल है। कृपया इस प्रकार की भारी भूल करने और निर्दोष लोगों पर झूठा आरोप लगाने से बचें।” यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार से जीवन जिए, तो बुद्धिमत्ता और आनंद से जीवन जी सकता है।

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