“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers……….
An Initiative by: Kausik Chakraborty.

The Knowledge Library

मौन की महत्ता

एक मछलीमार कांटा डाले तालाब के किनारे बैठा था। काफी समय बाद भी कोई मछली कांटे में नहीं फँसी , ना ही कोई हलचल हुई तो वह सोचने लगा … कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने कांटा गलत जगह डाला है, यहाँ कोई मछली ही न हो !

उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके कांटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं !

एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा तो उससे कहा– “लगता है भैया, यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो! अब इस तालाब की मछलियाँ कांटे में नहीं फँसती।”

मछलीमार ने हैरत से पूछा– “क्यों, ऐसा क्या है यहाँ ?

राहगीर बोला– “पिछले दिनों तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे। उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर प्रवचन दिया था। उनकी वाणी में इतना तेज था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी बड़े ध्यान से सुनतीं।

यह उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए कांटा डालकर बैठता है तो ये मौन धारण  कर लेती हैं। जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो कांटे में फँसेगी कैसे ? इसलिए बेहतर यहीं होगा कि आप कहीं और जाकर कांटा डालो।”

परमात्मा ने हर इंसान को दो आँख, दो कान, दो नासिका, हर इन्द्रिय दो-2 ही प्रदान किया है। पर जिह्वा एक ही दी.. क्या कारण रहा होगा ?

क्योंकि यह एक ही अनेकों भयंकर परिस्थितियाँ पैदा करने के लिये पर्याप्त है।

संत ने कितनी सही बात कही कि जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे ?

अगर इन्द्रिय पर संयम करना चाहते हैं तो.. इस जिह्वा पर नियंत्रण कर लेवें बाकी सब इन्द्रियां स्वयं नियंत्रित रहेंगी। यह बात हमें भी अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए।

“एक चुप सौ सुख”

Sign up to Receive Awesome Content in your Inbox, Frequently.

We don’t Spam!
Thank You for your Valuable Time

Share this post