“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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मिठा बोलें

एक बार धार्मिक विषयों के मर्मज्ञ साहित्यकार भक्त रामशरण दास को विनोबा जी द्वारा लिखित गीता प्रवचन पढ़ने को मिला। रामशरणजी किसी भी पुस्तक को बड़े मनोयोग से पढ़ते थे और धर्मशास्त्रों का उन्हें अद्भुत ज्ञान था।

विनोबाजी के गीता प्रवचन में उन्हें एक अंश अप्रासंगिक और अप्रामाणिक लगा। ग्रन्थ में महर्षि वशिष्ठ के स्वागत में महर्षि वाल्मीकि द्वारा मधुपर्क में गौमांस खिलाने की बात लिखी थी। इस अंश को पुस्तक से निकलवाने के लिए उन्होंने विनोबाजी को अनेक पत्र लिखे। लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। अन्त में वे स्वयं ही विनोबाजी से मिलने जा पहुंचे।

मिलने का समय पाकर उन्होंने विनोबाजी से कहा-“मधुपर्क में गौमांस की बात अप्रामाणिक है। इसे पुस्तक में से निकाल दीजिए।”

विनोबा जी बोले-“हमने यह बात भवभूति के उत्तररामचरित के आधार पर लिखी है।”

भक्तजी ने जवाब दिया-“उत्तर रामचरितम धर्मशास्त्र नहीं है।”

विनोबा जी ने एक उदाहरण से अपनी बात समझाने की कोशिश की “मान लीजिए कि सन्तरे की एक फांक खराब है, तो उसे छोड़कर आप शेष सन्तरा तो खा सकते हैं।” लेकिन भक्तजी कब मानने वाले थे?

उन्होंने चट कहा-“लेकिन जब बाजार में अच्छे सन्तरे हों तो सड़ा हुआ सन्तरा ही लेने की क्या जरूरत है?” विनोबा जी अवाक् देखते रह गये।

कहने का मतलब है कि जब आपके अंदर अच्छे-अच्छे शब्दों का विशाल कोश मौजूद है तो फिर व्यर्थ शब्दों का इस्तेमाल क्यों करते हो? अच्छे शब्दों का इस्तेमाल जहां आपको उन्नति-पथ की ओर ले जाएंगा, वहीं भद्दे और दूसरों को मानसिक हानि पहुंचाने वाले शब्द न केवल द्वेष बढ़ाएंगे, बल्कि आपकी अपनी ही उन्नति में बाधक सिद्ध होंगे।

इसलिए बुरा सोचो मत, बुरा बोलो मत और बुरा लिखो भी मत बस यही उन्नति का मार्ग है। ऐसी ही सकारात्मक साच विकसित करो, फिर भला आपको आगे बढ़ने से कौन रोक सकता है!

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