एक महिला को सब्जी मंडी जाना था। उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे सब्जी मंडी की और चल पड़ी। तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी: “कहाँ जायेंगी माता जी…?” महिला ने ”नहीं भैय्या” कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया।
अगले दिन महिला अपनी बिटिया कल्पना को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी। तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी: “बहन जी ‘इंद्रपुरी’ जाना है क्या…?” महिला ने मना कर दिया।
पास से गुजरते उस ऑटो वाले को देखकर महिला पहचान गई कि ये कल वाला ही ऑटो वाला था। आज महिला को अपनी सहेली के घर जाना था। वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो की प्रतीक्षा करने लगी। तभी एक ऑटो आकर रुका: ”कहाँ जाएंगी मैडम…?” महिला ने देखा ये वो ही ऑटो वाला है जो कई बार इधर से गुज़रते हुए उससे पूछता रहता है चलने के लिए। महिला बोली: ”देवांगना चौक है ना हजारीबाग में, वहीं जाना है, चलोगे…?”
ऑटो वाला मुस्कुराते हुए बोला: ”चलेंगें क्यों नहीं मैडम, आ जाइये…!” ऑटो वाले के ये कहते ही महिला ऑटो में बैठ गयी। ऑटो स्टार्ट होते ही महिला ने जिज्ञासावश उस ऑटो वाले से पूछ ही लिया: ”भैय्या एक बात बताइये…? दो-तीन दिन पहले आप मुझे माताजी कहकर चलने के लिए पूछ रहे थे, कल बहन जी और आज मैडम, ऐसा क्यूँ…?” ऑटो वाला थोड़ा झिझककर शरमाते हुए बोला: ”जी सच बताऊँ… आप चाहे जो भी समझें पर किसी का भी पहनावा हमारी सोच पर असर डालता है।
आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थीं तो एकाएक मन में आदर के भाव जागे, क्योंकि मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती है। इसीलिए मुँह से स्वयं ही “माता जी” निकल गया। कल आप सलवार-कुर्तें में थीं, जो मेरी बहन भी पहनती है। इसीलिए आपके प्रति स्नेह का भाव मन में जागा और मैंने ”बहन जी” कहकर आपको आवाज़ दे दी। आज आप जीन्स-टॉप में हैं और इस लिबास में माँ या बहन के भाव तो नहीं जागते। इसीलिए मैंने आपको “मैडम” कहकर पुकारा।
शिक्षा :-इस प्रसंग से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे परिधान (वस्त्र) न केवल हमारे विचारों पर वरन दूसरे के भावों को भी बहुत प्रभावित करते हैं।