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टाइम जोन: जानिए कैसे तय होता है दुनिया का समय

दुनिया के हर देश का अपना टाइम जोन होता है. अगर आप किसी देश की यात्रा करते हैं तो आपको घड़ी वहां के हिसाब से सेट करनी पड़ती है. यह जरूरी नहीं कि अगर भारत में किसी समय 4 बज रहा है तो अमेरिका में भी इतना ही बजा होगा. अगर आपको हमारी बात पर यकीन नहीं होता तो घड़ी उठाकर देखिए और अमेरिका के समय से मिलाइए. भारत और यूएस के टाइम में करीब 10:30 घंटे का अंतर है. यानी अगर आप भारत में यह खबर रविवार की सुबह पड़ रहे हैं तो हो सकता है अमेरिका में शनिवार की रात ही हुई हो. 

यह बात तो हम सभी जानते हैं कि दुनिया का कोई एक टाइम नहीं है. इसके पीछे हमारा सौर मंडल है, जहां धरती सूरज के चक्कर लगा रही है, साथ ही वह अपनी धुरी पर भी घूमती रहती है. सूरज का चक्कर लगाते वक्त पृथ्वी का जो हिस्सा सूर्य के सामने होता है, वहां दिन और दूसरे हिस्से में रात. यही कारण है कि दुनिया के अलग-अलग देशों में टाइम जोन भी अलग होते हैं. 

टाइम बदलने से शुरू हुई दिक्कत

जब मशीनों का आविष्कार नहीं हुआ था, तो कोई दिक्कत नहीं थी. समय के साथ तकनीकी आई और इंसानों ने एक जगह से दूसरी जगह ट्रैवल करना शुरू किया. सबसे बड़ी समस्या ट्रेनों के संचालन के बाद आई. मतलब कि अगर इंसान किसी एक कोने से चलकर दूसरी जगह पहुंचता तो वहां के समय के अनुसार कंफ्यूजन शुरू हो गई. इतना ही नहीं ट्रेनें तक लेट होने लगीं. 

कहां से आया टाइम जोन

टाइम जोन की जानकारी न होने से फैल रही कंफ्यूजन को दूर करने का काम किया सर सैनफोर्ड फ्लेमिंग ने. उन्होंने दुनिया को 24 टाइम जोन में बांटने का सुझाव दिया. इसके बाद 1884 में इंटरनेशनल प्राइम मेरिडियन सम्मेलन बुलाया गया. इसमें इंग्लैंड के ग्रीनविच को प्राइम मेरिडेयन चुना गया. यानी ग्रीनविच को 0 डिग्री पर रखा गया. यहां से पूर्व की ओर जाने पर टाइम बढ़ता है और पश्चिम की ओर से जाने पर टाइम घटता है. दुनिया के कई देशों ने इसी आधार पर अपने टाइम जोन को सेट किया. 

भारत में थे तीन टाइम जोन

भारत में 1884 में ब्रिटिश राज के समय टाइम जोन को अपनाया गया था. आजादी से पहले तक यहां तीन टाइम जोन थे. इसमें बॉम्बे, कलकत्ता और मद्रास थे. हालांकि, इससे यह समस्या पैदा हो गई कि अगर कोई बॉम्बे से मद्रास जाता था तो उसे घड़ी का टाइम बदलना पड़ता था. ऐसे में देश की आजादी के बाद 1947 में इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (IST) घोषित किया गया था. 

 

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