टाइफाइड साल्मोनेला टाएफ़िम्युरियम (एस. टाएफ़ी.) जीवाणु के कारण होने वाला रोग है। इसके जैसा एक अन्य रोग ‘पेराटाइफाइड’ साल्मोनेला पॅराटाएफ़ी नामक एक अन्य जीवाणु से हो सकता है किन्तु यह कम गम्भीर रोग लाता है (किन्तु लक्षण समान होते हैं)। साल्मोनेला टाएफ़ी. उन जीवाणुओं से सम्बन्धित है जिनसे साल्मोनेलोसिस होता है जो कि एक अन्य आन्त्रीय संक्रमण है किन्तु यह टाइफाइड से अलग है।
साल्मोनेलोसिस तो साल्मोनेला एण्टरिका से होता है। इस प्रकार स्पष्ट हुआ कि टाइफाइड साल्मोलेना टाएफ़ी से, पॅराटाइफाइड साल्मोनेला पॅराटाएफ़ी से एवं साल्मोनेलोसिस साल्मोनेला एण्टरिका से होता है, इस आलेख में हम साल्मोनेला टाएफ़ी. से होने वाले टाइफाइड की चर्चा करेंगे।
टाइफाइड के फैलने का कारण
साल्मोनेला टाएफ़ी. जीवाणु जल अथवा खाद्य में मानवरूपी वाहकों द्वारा ले आये जाते हैं एवं फिर क्षेत्र के अन्य लोगों में फैला दिये जाते हैं। मानव-मल में इनकी अत्यधिक संख्या हो सकती है जिससे ऐसे अपषिष्टों को नदी-तालाबों में बहाये जाने से पेय व खाद्य स्रोत शीघ्र संदूषित हो जाते हैं। ये जीवाणु सूखे मल में भी सप्ताहों तक जीवित रह सकते हैं। रोगलक्षण रहित लोगों के भी मल-मूत्र में साल्मोनेला टाएफ़ी हो सकता है जो दूसरों को संक्रमित करने में सक्षम है। यह कभी पशुओं से नहीं होता।
मानव-शरीर में सक्रियता
साल्मोनेला आँत्र में आ जाता है एवं अस्थायी रूप से रक्तधारा में जा मिलता है। ये जीवाणु श्वेत रक्त कोशिकाओं द्वारा यकृत, प्लीहा एवं अस्थि-मज्जा में ले जाये जाते हैं जहाँ ये बहुगुणित होकर अपनी संख्या वृद्धि करते हैं एवं रक्तधारा में पुनः आ जाते हैं। इस अवस्था में लोगों को बुखार आता है। जीवाणु पित्ताशय, पित्त-प्रणाली एवं आँतों के लसिकीय ऊतक पर आक्रमण करते हैं।
यहाँ ये अधिक संख्या में बढ़ते-पनपते हैं। जीवाणु आन्त्रीय पथ में आ जाते हैं एवं मल में आने लगते हैं। यदि मल की जाँच में पुष्टि न हो अथवा अस्पष्टता हो तो रक्त अथवा मूत्र अथवा अस्थि-मज्जा (बोन-मैरो) के प्रतिदर्श (सैम्पल्स) लेकर आगे की जाँचें की जाती हैं।
टाइफाइड ज्वर के लक्षण
*. बुखार
*. कम भूख
*. पूरे बदन में दर्द, सिर में भी
*. काफ़ी थकान
*. दस्त अथवा कब्ज़
*. उल्टी
*. छाती में जकड़न
*. पेट में असहजता
*. पसीना
*. सूखी खाँसी
*. त्वचा पर चकत्ते (ये सभी रोगियों में होने आवष्यक नहीं, जिनमें होते हैं उनमें प्रायः गर्दन व पेट पर होते हैं)
टाइफाइड का उपचार
टाइफाइड ज्वर का उपचार साल्मोनेला जीवाणुओं को मारने वाले प्रतिजैविकों से किया जाता है। समय पर चिकित्सात्मक उपचार न कराने अथवा प्रतिजैविक-उपचार बीच में ही छोड़ देने की स्थिति में मृत्युदर बहुत अधिक रहती है।
अन्य जीवाणुओं को दूर करने के लिये यदि प्रतिजैविक पहले भी सेवन किये जा चुके हों तो हो सकता है कि शरीर के साल्मोनेला टाएफ़ी उन प्रतिजैविकों से प्रतिरोधी (रेसिस्टैण्ट) हो चुके हों तथा यदि प्रतिजैविक-उपचार बीच में छोड़ा गया तो यह प्रतिरोध विकसित होने की आशंका बढ़ जाती है जो कि भविष्य में प्राणघातक सिद्ध हो सकती है।
समूचे शरीर में संक्रमण फैलना, प्न्यूमोनिया, मतिभ्रम, आँतों में रक्तस्राव अथवा छेद भी सम्भव। टाइफाइड से अतिप्रभावित अर्थात उच्च-जोख़िम क्षेत्रों में यात्रा करने वालों को टीका लगवा लेने का सुझाव दिया जाता है। रोगग्रस्त स्थिति में पानी अधिक पीते रहना महत्त्वपूर्ण है।
टाइफाइड से बचाव
*. हाथ नियमित धोयें – विशेषतया मलमूत्र-उत्सर्जन के बाद एवं भोजन से पहले।
*. कहीं जाने पर संदिग्ध स्थितियाँ लगने पर पानी उबलवाकर पीयें तथा संदिग्ध बर्फ़ मिलाने को न कहें।
*. मच्छर-मक्खी जहाँ भिनक रहे हों वहाँ कटे फल-सलाद व अन्य पेय एवं खाद्य-पदार्थों का सेवन यथासम्भव न करें। यदि करना ही हो तो चाकू से खुरचकर व यथासम्भव नमक मिश्रित गुनगुने पानी धोकर उपयोग करें क्योंकि मच्छर-मक्खी के कारण तो टाइफाइड नहीं होता परन्तु हो सकता है कि ये संदूषित मल आदि पर बैठकर खाने-पीने की वस्तुओं पर चले-बैठे हों जिससे इनके पैरों के माध्यम से यह जीवाणु स्वस्थ मनुष्य के शरीर में पहुँच सकता है।
*. घर लायी सब्जियों-फलों को कुछ सेकण्ड्स के लिये बहते पानी के नीचे रखने की आदत डालें ताकि कोरोना अथवा साल्मोनेला टाएफ़ी. व अन्य रोगकारक सूक्ष्मजीव सतह से निकल पायें।
*. यथासम्भव गर्म खाना खायें जिसे बनाये हुए अधिक समय न हुआ हो, आवश्यकतानुसार गर्म भी कर सकते हैं।
*. खुले में शौच से बचें
*. टाइफाइड हुआ हो अथवा नहीं ओआरएस पीते रहें, यदि स्वच्छता के प्रति आश्वस्त हों तो अनार इत्यादि रसीले फलों का सेवन बढ़ायें।
*. उबलते पानी में तुलसी का कोई भी भाग डालकर उबालें एवं हो सके जो लौंग भी तथा यह पानी कई रोगप्रदों से काफी सीमा तक मुक्त हो चुका होता है, टाइफाइड सहित किसी भी खाद्य-संक्रमण अथवा खाद्य-विषाक्तता से ग्रसित व्यक्ति के लिये यह उपयोगी है तथा उबालने से शेष बची तुलसी व लौंग को चाय में डालकर सेवन करें।
*. लहसुन की मात्रा बढ़ायें जो कि अत्यधिक जीवाणुरोधी होता है।
*. केला – केले में पेक्टिन नामक घुलनषील रेशा होता है जो आँतों में तरल-अवशोषण को बढ़ाता है जिससे दस्त में राहत सम्भव। केले का पोटेशियम दस्त में शरीर से निकल गये विद्युत्-अपघट्यों (इलेक्ट्रोलाइट्स) की पूर्ति करने में सहायक है।
टाइफाइड से जुड़े आपके सवाल औए उनके जवाब
सवाल – टाइफाइड कितने दिन तक रहता है ?
जवाब – टाइफाइड के बुखार का पता अगर समय रहते लग जाए तो यह 4 से 5 दिन में ठीक हो जाता है.
सवाल – टाइफाइड की पहचान क्या है ?
जवाब – टाइफाइड के दो प्रमुख लक्षण होते है जिसमे बुखार और शरीर पर होने वाले दाने हैं.
सवाल – टाइफाइड को जड़ से कैसे खत्म करें ?
जवाब – सेब का रस पिने से टाइफाइड की समस्या को ख़त्म किया जा सकता है.
सवाल – टाइफाइड में उल्टी होती है क्या ?
जवाब – टाइफाइड के दौरान अधिक पसीना होने के कारण उल्टियाँ भी होती है.
सवाल – टाइफाइड में बच्चों को क्या खिलाना चाहिए ?
जवाब – टाइफाइड में बच्चो को बच्चे को पानी, ताजे फलों का रस,नारियल पानी व ओआरएस पिलायें.
सवाल – टाइफाइड बुखार कितने प्रकार का होता है ?
जवाब – टाइफाइड का बुखार दूषित पानी व भोजन का सेवन से होने वाला बुखार है.
सवाल – टाइफाइड में कौन सा इंजेक्शन लगाना चाहिए ?
जवाब –बायोवाक टाइपोड 25mcg इन्जेक्शन एक टाइफाइड वैक्सीन है जो टाइफाइड बुखार की रोकथाम के लिए लगाया जाता है.
सवाल – टाइफाइड में कितने इंजेक्शन लगते हैं ?
जवाब – टाइफाइड के दो प्रकार के टीके लगते है. एक टीका निष्क्रिय होता है जो शॉट इंजेक्शन के रुप में लगाया जाता है वही दूसरा जीवित अल्पीकृत टीका होता है.
सवाल – टाइफाइड में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं ?
जवाब – टाइफाइड में आपको प्रोसेस फूड व रिफाइंड से बनी चीजे नहीं खानी चाहिए इसके अलावा बेसन, मक्का, कटहल, लाल मिर्च, सिरका, गर्म मसाला, अंडे और खटाई नहीं खाना चाहिए.
सवाल – टाइफाइड में गिलोय का सेवन कैसे करें ?
जवाब – गिलोय को रातभर पानी में भिगोएं और सुबह उबाल लें और जब गिलोय का काढ़ा तैयार हो जाए तो उसे छन्नी से छान लें. इसे फिर सुबह शाम पिए.
सवाल – टाइफाइड में कौन सा जूस पिए ?
जवाब – टाइफाइड के बुखार में सेब का जूस पीना फायदेमंद होता है साथ ही एक गिलास गरम पानी में 2 चम्मच शहद डालकर पीना भी अच्छा होता है.