छाछ दहीं-आधारित या योगर्ट जैसा एक उत्पाद है जिसे लगभग समूचे भारत में शौक से पिया जाता है। एक बड़े पात्र में मथनी (एक उपकरण जिसे हाथों में थामकर शीतल जल व दहीं के मिश्रण को देर तक घौंटा जाता है) से घर में इसे तैयार किया जा सकता है.
वैसे कारखानों में स्वचालित यंत्रों से इसे तैयार किया जाता है। ताजे दहीं से तैयार छाछ कुछ मीठी-सी होती है एवं लस्सी जैसी लग सकती है परन्तु छाछ लस्सी की अपेक्षा पतली होती है एवं छाछ में शक्कर नहीं मिलायी जाती।
पुराने दहीं से भी छाछ तैयार की जा सकती है जिसमें कुछ खट्टापन आ जाता है। तीसरे प्रकार की छाछ वास्तविक मक्खन निकालने के बाद बचे पानी को छाछ में मिलाकर बनायी जाती है।
इससे अन्तिम उत्पाद में कुछ खट्टा-कड़वा स्वाद आ जाता है तथा इन स्वादों को दबाने के लिये कुछ मसालों को मिलाना आवश्यक हो जाता है।
मक्खन का पानी मिलाकर बनायी छाछ बहुत स्वास्थ्यवर्द्धक मानी जाती है परन्तु मसाले न मिलाये जायें तो स्वाद सबको नहीं भाता।
यह छाछ प्रायः घर पर मक्खन बनाने के ही दौरान बनायी जाती है। मठा अलग होता है, यह ऐसा पेय है जिसे तैयार करने के लिये दहीं या मक्खन बनाने से बचे पदार्थ अथवा छाछ में मसाले व शक्कर मिलाकर पिया जाता है।
मक्खन निकालने से निकले सादे बचे पदार्थ को भी त्रिपुरा, पष्चिम बंगाल व बिहार में मठा कहा जाता है।
भोजन के कई मिनट्स बाद मठा पीना पाचन में सहायक माना जाता है। वैसे दहीं को पानी में मिलाकर देर तक तेजी से घोलकर तैयार तरल को भी आजकल छाछ कहा जाता है। यहाँ मक्खन निकालने के बाद बचे पानी, छाछ व मट्ठे इत्यादि सबको एकसाथ रखते हुए उनके लाभ लिखे जा रहे हैं.
1. इनमें विटामिन्स अधिक होते हैं किन्तु वसा कम रहते हैं.
2. कैल्शियम व विटामिन-डी का स्रोत और तो और शरीर में विटामिन-डी कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ा देता है.
3. पेट में ठण्डक, तेज ग़र्मी या भुने-तैलीय मसालेदार भोजन से यदि पेट में जलन हो तो छाछ अथवा मठा पीने से तत्काल राहत अनुभव होती है.
4. सर्दी-ज़ुक़ाम से राहत पाने के लिये अदरख व लहसुन को दुचलकर छाछ के साथ पिलाने से बहती नाक ठीक करने में सहायता होती है.
5. पेट साफ़ रखने में सहायक होने से रेचक, कब्ज दूर करने में उपयोगी, प्रायः रात को एक बड़ी गिलासभर सादा मठा अथवा जीरा-अजवायन-हींगयुक्त मठा पीने से सुबह पेट ठीक से साफ़ होने की सम्भावना बढ़ती पायी गयी है.
6. भूख खुलकर लाने में सहायक.
7. निर्जलीकरण दूर कर शरीर में पानी की मात्रा सामान्य करने में उपयोगी, दस्त के दौरान शरीर में होने वाली पानी की कमी की पूर्ति में भी उपयोगी.
8. जिन लोगों को लेक्टोज-इण्टालेरेन्स है, अर्थात् दुग्ध-शर्करा लॅक्टोज़ को पचाने वाला लेक्तेज विकर (एन्ज़ाइम) जिनके शरीर में पर्याप्त न बन पाता हो ऐसे लोगों को दूध व दूध के उत्पादों से पेट में गैस, दस्त व अन्य गड़बड़ियाँ सम्भव, ऐसे व्यक्ति भी प्रायः छाछ मट्ठा इत्यादि का सेवन सरलता से कर सकते हों ऐसा सम्भव है; फिर भी यदि कोई कष्ट हो तो पेट व आँतरोग विशेषज्ञ से मिलकर जाँच करायें.
9. बटरमिल्क में उपस्थित मिल्क-फ़ॅट-ग्लोब्यूल मैंब्रेन्स उच्चरक्तचाप को नियन्त्रित करने में सहायक सिद्ध हुई हैं। यह एक जैव-सक्रिय(बायो-एक्टिव) प्रोटीन है जो कोलेस्टॅराल को घटाता है। इन्हीं ग्लोब्यूल्स में विषाणुरोधी (एण्टीवायरल), जीवाणुरोधी (एण्टीबैक्टीरियल) व कैन्सर-रोधी गुणधर्म भी पाये गये हैं.
10. एसिड-रिफ़्लक्स के कारण परेशान आमाशय के आन्तरिक आस्तर को सामान्य करने में भी सहायक.
11. सीने में जलन अथवा खाने के बाद पेट भारी लगने की स्थितियों में भी मठा अथवा अन्य का सेवन उपयोगी रहता है.
12. वमन अथवा यात्रा के दौरान पैक बंद गाड़ी में जी मिचलाने की स्थिति को ठीक करने की दिशा में मसाला मठा बड़ी राहत दे सकता है.
13. मट्ठा या छाछ में उपस्थित लॅक्टिक अम्ल पेट में अमोनिया के निर्माण को रोकने में सहायता करता है, अमोनिया-निर्माण से भी यकृतशोथ (हिपैटाइटिस) व
पाण्डुरोग (जाण्डिस) होता पाया गया है.
14. प्रतिरक्षा-तन्त्र में भी सहायक क्योंकि इनमें उपस्थित लॅक्टिक अम्ल जीवाणु उन हानिप्रद सूक्ष्मजीवों से लड़ने में सहायता करते हैं जो खाद्य पदार्थों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते रहते हैं.
15. वैसे बुखार, निर्जलीकरण अथवा अन्य उन स्थितियों में मठा पीते रहने से शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा को बनाये रखा जा सकता है जब कुछ पीने का मन न करता हो अथवा सादा पानी ख़राब स्वाद का लगने लगा हो.
16. उपरोक्त के अतिरिक्त लू में पीने एवं तेज धूप से झुलसी त्वचा पर रूई से लगाकर स्थिति सामान्य करने में भी छाछ सहायक पायी गयी है.
कब छाछादि से दहीं बेहतर, कुपोषित बच्चों व कुपोषित गर्भवतियों के लिये एवं कृषकाय व्यक्ति यदि भार वृद्धि चाहे तो दहीं बेहतर रहेगा क्योंकि दहीं में अधिक पोषक तत्त्व होते हैं; छाछ व मठा तो तनुकृत (पतले/डायलूटेड) होते हैं जिनमें मुख्य रूप से मात्र पानी होता है।
छाछ इत्यादि के प्रयोग में सावधानियाँ :
1. लेक्टोज-इण्टोरेन्स की स्थिति में यदि मठा इत्यादि से भी पेट में उल्लेखनीय असामान्य अनुभूति हो तो पेट व आँत रोग-विशेषज्ञ से मिलें.
2. एक्ज़िमा जैसी कोई त्वचा-समस्या हो तो अधिक मठा पीने से समस्या बढ़ने की आशंका हो सकती है.
3. छाछ इत्यादि के निर्माण व संग्रहण के दौरान स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें.
4. बच्चों को छाछ इत्यादि पिलाने पर अभी या बाद में कोई समस्या जैसी उत्पन्न होती लगे तो बाल रोग विशेषज्ञ या पेट व आँत रोगविशेषज्ञ से अवश्य मिलें.
5. 1 या दो-तीन बार सेवन से कुछ समस्या हुई तो ” मैं लेक्टोज़-इण्टोरेलेण्ट हूँ अथवा मुझे इन पेयों से एलर्जी है ” ऐसा न सोच बैठें, अलग-अलग समय पर पीने या व्यक्ति को उसके अनजाने में इससे बना कोई उत्पाद पिलाने-खिलाने से हर बार उल्लेखनीय समस्या हो एवं जाँच में भी कोई इससे व्युत्पन्न समस्या सिद्ध हुई हो तो ही पुष्टि सम्भव है.
6. तरल के रूप में मठा इत्यादि किसी भी पेय पर आश्रित न हौवें या जब प्यास लगे तो मठा ही पीना है ऐसा न सोचें क्योंकि सामान्य पानी शरीर के लिये आवश्यक होता है जिसका कोई विकल्प नहीं हो सकता।