“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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आलसीपन

सुन्दरलाल एक धनी व्यापारी था। इसलिए नौकर-चाकरों की तो कमी थी नहीं। धीरे-धीरे उसने अपना सारा कार्य नौकरों पर ही छोड़ दिया और खुद कामचोर और आलसी बन बैठा। सुबह देर तक सोना उसे बहुत पसंद आने लगा।

अपने आलसी स्वभाव के कारण धीरे-धीरे सुन्दरलाल की सेहत बिगड़ने लगी। वह पलंग पर पड़ा-पड़ा मोटा हो गया। उससे अब ज्यादा चला-फिरा नहीं जाता था। उसने अब अपने सारे काम नौकरों पर छोड़ रखे थे। नौकर अपने मालिक के आलसी स्वभाव से परिचित हो गये थे। उन्होंने भी धीरे-धीरे बेईमानी करनी शुरू कर दी और इससे सुन्दरलाल को व्यापार में नुकसान होने लगा।

एक दिन सुन्दरलाल का मित्र उससे मिलने आया। सुन्दरलाल ने अपने मित्र से अपनी बीमारी के बारे में बताया। मित्र होशियार था, वह तुरन्त समझ गया कि सुन्दरलाल का आलसीपन ही सारी बीमारी की जड़ है। उसने सुन्दरलाल से कहा-“तुम्हारी बीमारी को दूर करने का उपाय मैं जानता हूँ, पर तुम वह कर नहीं सकते, क्योंकि उसके लिए तुम्हें जल्दी उठना पड़ेगा।”

सुन्दरलाल ने कहा कि वह बीमारी से ठीक होने के लिए सब कुछ करने को तैयार है।

मित्र ने कहा-” सुबह-सुबह अक्सर एक सुनहरा पक्षी आता है। तुम अगर उसे देख लो तो तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे।” सुन्दरलाल अगले दिन सुबह-सुबह उठकर सुनहरे पक्षी को खोजने चल पड़ा।

रास्ते में उसने देखा कि नौकर उसी के भण्डार से अनाज चोरी कर रहे है। ग्वाला दूध में पानी मिला रहा है। सुन्दरलाल ने अपने सभी नौकरों को डांटा।

अगले दिन फिर सुन्दरलाल सुनहरे पक्षी की खोज में निकला। सुनहरे पक्षी को तो मिलना नहीं था, पर अपने मालिक को रोज आते देख भण्डार से चोरी होनी बंद हो गयी। सभी नौकर अपना काम ठीक से करने लगे। चलने-फिरने से सुन्दरलाल का स्वास्थ्य भी ठीक रहने लगा।

कुछ समय बाद सुन्दरलाल का मित्र वापस उसके पास आया।

सुन्दरलाल ने मित्र से कहा-“मित्र, मैं इतने दिनों से सुनहरे पक्षी को खोज रहा हूँ, पर वह मुझे दिखाई नहीं दिया।”

मित्र ने कहा-“तुमने जब से खेतों में जाना शुरू किया है, तुम्हारे यहाँ चोरी बंद हो गयी और तुम्हारा स्वास्थ्य भी ठीक हो गया। सुनहरे पक्षी को देखने के लालच में तुम्हारे अंदर अपने कार्यों से साहचर्य संबंध स्थापित हो गया। यह साहचर्य संबंध ही तो वह सुनहरा पक्षी है।”

मित्र की बात सुन्दरलाल की तो समझ में आ गयी। लेकिन आपकी… यह तो आप ही जाने, पर हम इतना अवश्य जानते हैं कि जब तक आप सुन्दलाल की तरह प्रतिदिन अपने कार्यों को स्वयं नहीं देखेंगे, तो निरन्तर लाभांश की कामना करना बेमानी होगी। इसमें कोई शक नहीं कि आप आलसी नहीं हैं.

लेकिन थोडी और मेहनत और बस थोड़ी और…. इस प्रकार आप साहचर्य संबंध बनाकर अपने उद्योग को आगे बढ़ाकर न केवल स्वयं आगे बढ़ेंगे, बल्कि अपने कर्मचारियों को भी आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। उनके लिए प्रेरणास्रोत बनेंगे और किसी ने कहा है, कर भला तो हो भला।

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