एक बार की बात है, एक गाँव में एक युवक नामक ‘विक्रम’ रहता था। वह बहुत ही प्रतिभाशाली था और अपने आप पर बहुत गर्व करता था। उसका अहंकार उसकी शक्तियों को छुपा देने वाला बन गया था।
विक्रम के गाँव में एक प्रशिक्षण केंद्र खोला गया, जहाँ गरीब बच्चे नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर सकते थे। विक्रम ने अपनी प्रतिभा के बल पर उन बच्चों को पढ़ाया। लोग उसे समाज सेवक के रूप में प्रशंसा करते थे।
एक दिन, गाँव में एक बच्चा बुरी तरह से घायल हो गया। विक्रम ने उसे अस्पताल ले जाने में मदद की, लेकिन वह अपने अहंकार में इतना डूबा हुआ था कि उसने उस बच्चे को छोड़ दिया। उसने सोचा कि अगर वह उसकी सहायता मांगेगा तो उसका अहंकार टूट जाएगा।
कुछ दिनों बाद, विक्रम के पास वह बच्चा फिर से लाया गया, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। बच्चा जिन्दगी में हानि उठाकर मर गया। विक्रम ने अपने अहंकार की कीमत चुकाई और उस दिन से उसने अहंकार को अपने जीवन से निकाल दिया।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि अहंकार एक व्यक्ति को उसकी सही दिशा से हटा सकता है। अगर हम खुद को हमेशा ऊंचे मानते हैं और दूसरों की मदद को नजरअंदाज करते हैं, तो हम अकेले ही रह जाते हैं। अहंकार के साथ जीने के बजाय, हमें हमेशा समय-समय पर अपने आप को संशोधित करना चाहिए।
शिक्षा:-इतिहास गवाह है, अहंकार ने हमेशा इंसान को परेशानी और दुःख के सिवा कुछ नहीं दिया..!!