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An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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अलिफ लैला – सिंदबाद जहाजी की तीसरी समुद्री यात्रा की कहानी

Alif laila Sindbad Jahazi Ki teesari yatra Story In Hindi

जब सिंदबाद ने अपनी दूसरी समुद्री यात्रा का वर्णन कर हिंदबाद को 400 दीनारें दी, तो अगले दिन दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया और कहा कि मैं तुम्हें इससे आगे की समुद्री यात्रा की रोमांचक कहानी सुनाऊंगा। हिंदबाद और कुछ अन्य मित्रगण अगले दिन तय समय पर सिंदबाद की तीसरी समुद्री यात्रा की कहानी सुनने पहुंच गए। भोजन के बाद सिंदबाद ने कहा तो दोस्तों सुनो मेरी तीसरी बेहद ही रोमांचक कहानी।

दूसरी यात्रा पूरी करने के बाद मैं आलस का जीवन जीने लगा था। सुख के साथ रहना और दूसरों की मदद करना यही मेरे जीने का तरीका बन चुका था। मेरे पास देने को बहुत कुछ तो नहीं था फिर भी मेरा मानना था कि अगर मैं गरीब के काम आ गया तो ऊपर वाला मुझ पर महरबान होगा। अब तक मैं अपने सुख और आलस में इतना लिप्त हो चुका था कि यात्राओं के रोमांच और उस दौरान आने वाले खतरों की भी याद आना बंद हो चुका था। लेकिन मैं एक तरह का जीवन ज्यादा दिन नहीं जी सकता।

अब मुझे यहां से आगे का सफर भी तय करना था। जिस रोमांच और खतरे से दूर भागकर मैं सुखमय जीवन जी रहा था अब उसी रास्ते पर वापस जाने का जी करने लगा था। फिर वहीं लहरों से दो हाथ करते आगे बढ़ने की नई कहानी गढ़ने का जी करने लगा। इस इच्छा को पूरा करने के लिए मैंने कुछ व्यापारी भाइयों के साथ मुलाकात कर नए सफर को तय करने का फैसला लिया। उनका आना जाना लगा रहता था। जिसके चलते मैंने उनसे पूछा कि उनकी आगे की यात्रा कब होने वाली है। इस सफर में उनका हमसफर बनने के लिए मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। हमें दो दिन बाद ही कूच करना था।

जाने के लिए अब मुझे बहुत सारी तैयारी करनी थी। दूसरे देश जाकर व्यापार करने के लिए मुझे कुछ सामान की जरूरत थी। मैं थोक बाजार से वो सारा सामान ले आया जिसे मैं दूसरे देश में ले जाकर बेंच सकूं। दो दिन इन्हीं तैयारियों में निकल गए थे। अब जाने की घड़ी आ चुकी थी। व्यापारी साथियों के साथ मैं बसरा को चल दिया क्योंकि यहीं से हमारा जहाज रवाना होना था।

यहां से यात्रा शुरू हुई सिंदबाद की तीसरी समुद्री यात्रा, और हम उन तमाम बंदरगाहों में गए जहां से हमने पहले व्यापार किया था। सब कुछ अच्छा चल रहा था। हम व्यापार के लिए आगे का सफर तय कर रहे थे। हमारे रास्ते में एक अजीब और खौफनाक धार्मिक स्थल पड़ा जिसके आगे जाने पर हम रास्ता भटक गए थे। इस बीच हमारे रास्ते को चुनौती भरा बनाने के लिए समुद्री तूफान ने भी दस्तक दे दी। तूफान कई दिनों तक चला और ये सफर अब मुशकिल होता जा रहा था। सुरक्षित रहने के लिए हमे ठिकाने की जरूरत थी। ठिकाने की तलाश में हम एक द्वीप के बंदरगाह पर जा पहुंचे।

पड़ाव सामने था पर पता नहीं क्यों, कप्तान यहां रुकना नहीं चाहता था। हमारी जिद्द के आगे उसकी एक न चली और उसे जहाज को वहां रोकना पड़ा। यहां आकर कप्तान ने हमें बताया कि वो द्वीप और उसके आसपास के सभी द्वीपों में बालों वाले असंख्य मनुष्यों का बसेरा है। ये लोग हम पर तेजी से आक्रमण कर सकते हैं। लेकिन प्रतिरोध में हम इनपर आक्रमण नहीं कर सकते। क्योंकि इनकी तादात टिडियों से भी ज्यादा है। अगर हमने एक पर भी हमला किया या मारा तो ये सब मिलकर हम सबको खत्म कर देंगे।

सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा अलिफ लैला कितनी रोमांचक रही आगे पढ़ें

कैप्टन की दी हुई चेतावनी से हमारा जल्द ही सामना भी हुआ। ये सामना बेहद खौफनाक था। करीब दो फिट की लम्बाई वाले, लाल बालों वाले असंख्य डरावने लोगों ने हमारे जहाज को घेर लिया था। ये हमारी तरफ तेजी से तैरते हुए आए थे। हमारे पास आकर उन्होंने हमसे कुछ कहा था। पर उनकी भाषा को हम समझ नहीं पा रहे थे। वो जिस फुर्ती से जहाज पर चढ़े हम उन्हें देखते दंग रह गए थे। उन्होंने अब तक हमारे सारे सामान पर कब्जा कर हमें जहाज से बाहर निकाल दिया था। जहाज के तारों को काट दिया और फिर वो उसे अपने साथ दूसरे द्वीप लेकर चले गए। शायद वहीं जहां से वो आए थे।

सिंदबाद की तीसरी यात्रा के दौरान टापू में आगे बढ़ते हुए दूर हमें इमारतें दिखीं। ठौर मिलता देख हम इस ओर बढ़ते चले गए। ये बेहद खूबसूरत थीं, मानो कोई महल हो। इसकी बनावट खासा आकर्षक और राजसी लग रही थी। लकड़ी का एक बुलंद दरवाजा था जिसे खोलकर हमने इमारत में प्रवेश कर लिया था। अब हमारे सामने एक विशाल घर था जिसके बराम्दे में एक तरफ मानव हड्डियों का ढेर पड़ा था तो दूसरी तरफ बहुत सारी भूनने वाली सलाइयां फैली हुई थी। कुछ ही देर में भवन का दरवाजा जोरदार आवाज के साथ खुला और सामने जो था उसे देखकर हमारे पसीने छूट गए थे।

ये बेहद अजीब राक्षस था जिसका शरीर ताड़ के वृक्ष जितना लम्बा था। वो कोयले की तरह काला था, उसके माथे की बीच में एक आंख थी जिससे वो घूरकर देख रहा था। आख गुस्से से लाल थी, उसकी दांत लम्बे और पैने थे जो उसके मुंह से बाहर निकले थे। उसका ऊपर का हाथ उसकी छाती तक लटक रहा था। उसके कान मानो हाथी के कान हों, जो उसके कंधों को ढके हुए थे। उसके नाखून पैने और बड़े पक्षी के पंजे जितने बड़े थे। इतने खतरनाक राक्षस को देखकर हमारे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था तो हम मुर्दा बनकर वहीं लेट गए।

जब हमने आखें खोलीं तो वो हमारे सामने बरामदे में ही बैठा था। उसने पाया कि हम सब जीवित हैं। इसके बाद उसने अपने विशाल काय हाथ हमारी ओर बढ़ाए। सबसे पहले उसने मुझे गर्दन से उठाया और फिर मुझे घुमाकर चारों तरफ से देखा। शायद वो मेरा निरीक्षण कर रहा था। उसने मुझे बिलकुल वैसे ही घुमाया था जैसे कसाई मुर्गा हलाल करने से पहले उसकी गर्दन को पकड़कर घुमाता है। लेकिन मैं बहुत पतला था इसलिए शायद उसे लगा कि मुझे खाकर उसे स्वाद नहीं आएगा।

इसलिए उसने मुझे वापस रख दिया। और इसी तरह उसने सबको उठाकर निरीक्षण किया। हम सबमें सबसे तंदरुस्त कैप्टन था। उसेन कैप्टन को हथेली पर रखकर ध्यान से देखा और एक सलाई उसके आरपार डाल दी। इसके बाद उसने आग जलाई जिसमें कप्तान को भूनकर उसने अपने रात का भोजन तैयार किया और भवन के अंदर खाने चला गया। कप्तान को खाने के बाद वो उसी बराम्दे में वापस आकर सो गया। उसके खर्रांटे तूफान से भी ज्यादा तेज थे। वो रात हमारे लिए बेहद भयानक थी। इससे अच्छा तो समुद्री तूफान था। हम रात भर नहीं सोए। सुबह होते ही वो राक्षस उठा और हमें महल में छोड़कर बाहर चला गया।
उस रात उसने फिर से हमारे एक साथी को अपना भोजन बना लिया था। लेकिन हमने भी उससे बदला लेने की ठान ली थी। भोजन करने के बाद वो हमेशा की तरह खर्राटें मारता हुआ सो गया। उसके खर्राटें सुनने के बाद हममें से नौ सैलानी, जिनमें से एक मैं भी था उसे सबक सिखाने के लिए आगे आए। हमने बहुत सारी सलाइयां इकट्टठी की और आग जलाकर उन सलाइयों को उसमें तपने के लिए डाल दिया।

हमने एक साथ सारी सलाइयां उसकी आंख में झोंक दीं और उसे अंधा बना दिया। वो दर्द से चिल्ला उठा। अपने हाथों को जमीन पर वो इस तरह मार रहा था जिससे हम उसके हाथों के नीचे आकर मर जाएं। लेकिन हम ऐसी जगह छिप गए थे जहां उसका पहुंचना आसान नहीं था। जब उसे हम हासिल नहीं हुए और उसे लगा कि उसकी मेहनत बेकार जा रही है तो वो दर्द से चीखता हुआ दरवाजे से बाहर चला गया।

हम तुरंत ही महल से भागकर समुद्र के किनारे आ गए। यहां बड़े आकार में लकड़ी के टुकड़े पड़े थे। इन टुकड़ों की मदद से हमने राफ्ट तैयार किया। एक राफ्ट तीन आदमियों को आराम से ले जा सकता था। हम सूर्योदय का इंतजार कर रहे थे। साथ ही ये कामना भी कर रहे थे कि अब हमारा उस राक्षस से सामना न हो। हालांकि उसकी चीखें अभी तक हमें सुनाई दे रही थीं। हमें उम्मीद थी कि हमने राक्षस पर जो हमला किया था उससे उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसलिए हम उसकी मृत्यु का इंतजार भी कर रहे थे।

ऐसा इसलिए क्योंकि अगर राक्षस मर जाता तो हम कुछ दिन टापू में आसानी से गुजार सकते थे। और तूफान में राफ्ट से जाने के खतरे से भी बच सकते थे। लेकिन सिंदबाद की तीसरी यात्रा के दौरान हमारे सोचे अनुसार कुछ नहीं हुआ। दिन एक भयानक शुरुआत के साथ हुआ। हमने देखा कि राक्षस हमारी तरफ बढ़ रहा था। इस बार वो अकेला नहीं था। उसके साथ उसके जैसे दो और थे। उसके पीछे भी वैसे कई राक्षस हमारी तरफ तेज कदमों से बढ़ते चले आ रहे थे। हमने जल्दी से अपनी राफ्ट को पानी में उतारा। राक्षसों ने हमारी प्रतिक्रिया को समझ लिया था और हमे रोकने के लिए उन्होंने अपने हाथों में बड़े बड़े पत्थर उठा लिए थे।

वो हम पर पत्थर मार रहे थे लेकिन हम समुद्र में आ चुके थे। लेकिन बात यहां खत्म नहीं हुई थी। हमारा पीछा करते हुए राक्षस समुद्र में काफी दूर तक आए। उनका निशाना इतना सटीक था कि लगभग सभी राफ्ट डूब गई थीं। मेरी राफ्ट बची थी जिसका सहारा लेकर हम सभी साथी एक दूसरे का हाथ पकड़े आगे बढ़ने लगे। लेकिन अफसोस कि हमारे दो साथी राक्षसों के पत्थर मारने से डूब गए थे। हम हिम्मत के साथ आगे बढ़ते गए और राक्षसों की पहुंच से बाहर होकर सुरक्षित हो गए थे। अबतक समुद्री लहरें और हवाएं मंद हो चुकी थीं। दिन और रात हम समुद्र में किस्मत के सहारे आगे बढ़ते गए।

अगली सुबह हमें एक टापू मिला। यहां शायद हमारा नसीब अच्छा था। यहां स्वादिष्ट फल थे जिनका सेवन कर हम अपनी ताकत को दोबारा बटोर पाए। रात हमने समुद्र तट पर ही बिताई, हम सोए नहीं थे। एक लम्बे चौड़े सांप की आवाज नें हमें सोने नहीं दिया था जिसने हमारे एक साथी को निगल लिया था। रेंगते हुए उसने खुद को ही चोट पहुंचा ली थी। वो दूर था फिर भी हम उसकी आवाज को आसानी से सुन सकते थे। साथी की हड्डियां तोड़ने की आवाज भी हम तक आ रही थी जिसे हम डरे सहमे सुन रहे थे। फिर एक भयानक रात बिताने के बाद नया सवेरा हुआ।

इस सुबह वो सांप हमें फिर से नजर आया। अब मैंने ऊपर वाले को यही कहा कि वो हमारा किस तरह का इम्तेहान ले रहा है। एक मुसीबत से निकलने के बाद हम जैसे तैसे सुरक्षित हुए थे। एक दिन सुकून का बिताने के बाद हमारे सामने फिर से एक नई मुसीबत आ गई है। दिन भर फलों का सेवन करने के बाद हमने एक लम्बे पेड़ पर रात बिताने के इंतजाम किए। हमें लगा हम यहां सुरक्षित होंगे। लेकिन फिर इस रात सांप फुफकारता हुआ आया, पेड़ पर चढ़ा और मेरे एक साथ को निगलकर चला गया, जो ठीक मेरे नीचे लेटा था।

मैं रात भर पेड़ पर ही रहा। सुबह होते ही नीचे तो आ गया था पर एक मुर्दा की तरह। मैं शायद अब बस अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। अंदर से पूरी तरह से टूट चुका था और आखों के आगे डरावने मंजर के सिवा और कुछ नहीं था। मन में निराशा लिए मैं सिंदबाद की तीसरी समुद्री यात्रा में खुद को समुद्र के हवाले करने को आगे बढ़ा, फिर सोचा कि,” सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा कठिनाइयों भरी हो सकती हैं ऊपर वाला ही हमे जिंदगी बख्शता है। मौत भी तभी आएगी जब उसे मंजूर होगा।” ये सोचकर मैंने खुद को ऊपर वाले के हवाले सौंप दिया।

इस बीच मैंने अधिक मात्रा में छोटी लकड़ी, कटीली झाड़ और कांटे एकत्रित किए। इनका गट्ठा बनाकर मैंने पेड़ के चारों तरफ गोलाकर में लगा दिया। और कुछ को पेड़ की शाखाओं में भी अपने आसपास बांध दिया था। रात होते ही मैं इस सुरक्षा घेरे में पेड़ में चढ़ गया। सांप फिर से आया, लेकिन इस बार वो मुझ तक नहीं पहुंच पाया। वो पेड़ के चारों तरफ चक्कर लगाता हुए अंदर आने की जगह तलाशता रहा। हारकर वो वहीं ठहर गया और दूर से मुझ भूखी बिल्ली की तरह ताकता रहा। हम दोनो को दिन होने का इंतजार था।

अब शायद खुदा मेरा साथ देने के लिए आगे बढ़ चुके थे। मैं सिंदबाद जहाजी तीसरी यात्रा पर एक बार फिर से समुद्र में छलांग लगाकर खुद को खत्म करने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन आगे आते ही मुझे एक जहाज नजर आया। मैं अपनी ताकत भर उस जहाज को आवाज देता रहा। फिर मैंने अपनी पगड़ी के कपड़े को खोलकर उन्हें इशारा देने की कोशिश भी करी। मेरी कोशिश काम आई, कप्तान ने मुझे देख लिया और मुझे लाने के लिए उसने एक नाव भेजी। मेरे जहाज में आने के बाद व्यापारियों और जहाज कर्मियों ने मुझ पर ढेरों सवाल दागना शुरू कर दिया।

सब लोग बहुत कुछ जानना चाहते थे जैसे कि मैं इस टापू तक कैसे पहुंचा? उन्होंने बताया कि वो उन राक्षसों के बारे में सुन चुके हैं और उन्हें ये भी पता चला था कि टापू में विशाल सांप रहते हैं जो दिन में गायब हो जाते हैं और रात में आ जाते हैं। मेरी सिंदबाद की तीसरी यात्रा कहानी सुनकर उन सभी को हैरानी थी कि मैं इतने खतरों को पार करता हुआ कैसे बच निकला। मेरी कहानी सुनने के बाद वो मुझे कप्तान के पास लेकर गए। मेरी हालत देखकर कप्तान ने मुझे अपने कपड़े पहनने को दिए। मैंने कप्तान को ध्यान से देखा तो मुझे याद आया कि ये वही था जो एक बार मुझे एक टापू में अकेला छोड़कर जहाज लेकर चला गया था।

मुझे यकीन था कि वो मुझे नहीं पहचान पाया होगा क्योंकि उसे लगता होगा कि मैं मर चुका हूं। ऊपर वाला मुझपर मेहरबान है, ऐसा कहते हुए उसने मुझे गले से लगा लिया और बोला, आज मैंने वो गलती सुधार ली जो मैंने तुम्हें टापू में अकेला छोड़कर की थी। वो रहा तुम्हारा सामान जिसे मैंने अब तक संभालकर रखा है। मैंने वो सामान उससे ले लिया और उसका ध्यान रखने के लिए उसे शुक्रिया अदा किया।

कुछ दिन समुद्र में रहने और कुछ टापुओं में समय बिताने के बाद हम सलबत पहुंचे जहां चंदन की लकड़ियां मिलती थीं। इनका इस्तेमाल दवा बनाने में होता था। यहां के आगे हम दूसरे स्थान पर पहुंचे जहां हमें लौंग, दालचीनी और कुछ अन्य मसाले प्राप्त हुए। जब हम यहां से निकल रहे थे तो मैने एक विशाल कछुआ देखा। हमनें यहां गाय भी देखी जो दूध देती थी। उसकी खाल इतनी सख्त होती कि उससे बक्लर बनाया जाता था।

इस यात्रा के लंबे सफर के बाद मैं बुसोरह पहुंचा, और फिर वहां से बगदाद वापस पहुंचा। अब तक मैं बहुत सारा पैसा कमा चुका था। मैंने इस दौलत का एक हिस्सा गरीबों में बांट दिया था और बचे हुए से एक और इस्टेट खरीद लिया था। यह थी सिंदबाद जहाजी तीसरी यात्रा की कहानी। सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा काफी रोमांचक थी। ऐसे सिंदबाद ने अनुभव के साथ अपनी तीसरी यात्रा पूरी करी। उसने हिंदबाद को फिर से 400 दीनारें दिए और उसे अगली रात भोजन पर आमंत्रित किया।

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