“The Knowledge Library”

Knowledge for All, without Barriers…

An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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अलिफ लैला – सिंदबाद जहाजी की पांचवीं समुद्री यात्रा की कहानी

सिंदबाद बोला ‘मेरी दशा विचित्र थी। चाहे जितनी भी मुसीबत आन पड़े मैं कुछ दिनों के सुख के बाद उसे भूल जाता था और एक नई यात्रा का विचार मेरे मन में हिलोरे मारने लगता था।’ इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ, लेकिन इस बार मैंने अपने मनमुताबिक यात्रा करनी चाही, जिसके लिए मेरा कप्तान तैयार नहीं हुआ। ऐसे में मैंने खुद के लिए एक जहाज बनवाया और निकल पड़ा। जहाज भरने के लिए मेरा माल काफी न था, इसलिए मैंने आसपास के अन्य व्यापारियों को भी मेरे साथ आने को कहा। देखते ही देखते हम गहरे समुद्र में आ गए।

कई दिनों की यात्रा के बाद हमने आराम करने का सोचा और जहाज को एक निर्जन टापू पर लगाया। वहां मैंने रुख पक्षी का एक अंडा देखा, ये बिल्कुल वैसा ही था जैसा मैंने कुछ दिनों पहले यात्रा के दौरान देखा था। मैंने कौतूहल से अन्य व्यापारियों को भी इसके बार में बताया। हम सभी अंडे को देखने पास पहुंचे, तभी उसमें से बच्चा निकल रहा था। चोंच से अंडे को तोड़ने की ठक-ठक आवाज आ रही थी। जैसे ही बच्चा अंडे से बाहर आया, तो व्यापारियों को सूझा कि क्यों न इस रुख के बच्चे को भूनकर खाएं। वे कुल्हाड़ी उठा लाए और अंडे को तोड़ने लगे। मैं मना करता रहा, लेकिन कोई नहीं माना। किसी ने मेरी एक न सुनी और बच्चे को काट-भून कर खा गए।

कुछ देर बाद हमने देखा चार बड़े-बड़े बादल आ रहे हैं। मैं घबराया और चिल्लाकर बोला ‘जल्दी भागो, रुख पक्षी आ रहे हैं।’ हम जैसे ही जहाज तक पहुंचे हमने देखा कि रुख के माता-पिता वहां आ गए और टूटे अंडे को देखा। जमीन पर नन्हें रुख को मरा देखकर वे चित्कार करने लगे। कुछ देर बाद वे मायूस मन से वहां से चले गए। उनके जाते ही हमने वहां से निकलने की तैयारी करने लगे। जैसे ही जहाज वहां से निकलने वाला था, तभी रुख पक्षियों का पूरा झुंड वहां पहुंच गया। उन्होंने पंजों में बड़ी-बड़ी चट्टानें दबा रखी थी। झुंड तेजी से उड़ते हुए हमारी ओर बढ़ा और हम पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। एक विशालकाय चट्टान जहाज के ठीक बगल में इतनी तेजी से गिरा कि जहाज जोर-जोर से हिलने लगा। हम सभी डर गए। इतने में दूसरी चट्टान ठीक जहाज के बीचों-बीच गिरी और जहाज दो हिस्सों में बंट गया। क्षण भर में सारा सामान और मनुष्य जलमग्न हो गए। किसी तरह मुझे प्राण रक्षा का मौका मिला। बगल में एक तख्ती तैरती हुई दिखी, मैंने उसका सहारा ले लिया। उसके सहारे मैं किसी तरह टापू पर पहुंचा।

टापू पर पहुंचने के बाद मैं बहुत थक चुका था। थोड़ी देर आराम के बाद मैं द्वीप देखने और इधर-उधर घूमने लगा। मैंने देखा कि वहां सुंदर फलों से लदे कई बाग थे। जहां कच्चे-पक्के कई तरह के मीठे फल मौजूद थे। थोड़ी दूरी पर मैंने पाया कि एक सुंदर मीठे पानी का स्त्रोत है। मैं भूखा था इसलिए पहले मैंने मन भर मीठे फलों का आनंद लिया और उसके बाद पानी पीकर आराम फरमाने लगा। मैं एक कोने में लेट गया। मैंने सोने की कोशिश की लेकिन नींद नहीं आई। मेरा मन भारी हो रहा था। मन में कई तरह के विचार आ रहे थे। लग रहा था कि अथाह धन-दौलत होने के बावजूद मैंने यात्रा की मूर्खता क्यों की? मैं चाहता तो आराम का जीवन व्यतीत कर सकता था लेकिन अपनी बेवकूफी के कारण मैं आज निर्जन स्थान में फंस गया हूं। यही सब सोचते-सोचते कब आंख लग गई पता न चला।

अचानक आंख खुली तो मैंने देखा सवेरा हो गया था। मैं झटके से उठा और इधर-उधर देखने लगा। कुछ देर बाद मैंने देखा कि एक कोने में बूढ़ा आदमी बैठा हुआ है। वह बहुत कमजोर मालूम पड़ रहा था। करीब जाकर देखा तो पता लगा कि उसकी कमर के निचले हिस्से में पक्षाघात लगा था। मैंने सोचा कि हो सकता है यह भी मेरी तरह कोई भूला-भटका यात्री होगा, जिसका जहाज डूब गया होगा। मैं उसके और पास गया और अभिवादन किया। लेकिन सामने से कोई उत्तर नहीं मिला। बुजुर्ग ने केवल सिर हिलाया।

मैंने उनसे पूछा, ‘आप यहां कैसे पहुंचे?’ बूढ़े ने संकेत में कुछ कहा मैं समझा कि बूढ़ा चाहता है कि वह मेरे कंधों पर चढ़कर फल तोड़े। लेकिन वह ये नहीं चाहता था. दरअसल, वह चाहता था कि मैं उसे कंधे पर बैठाकर नहर पार करा दूं। नहर पार जाकर मैंने उसे उतारना चाहा तो बेजान से जान पड़ने वाला बूढ़ा अचानक बलशाली महसूस होने लगा। उसने अपने पैरों से मेरे गर्दन को जोर का जकड़ा हुआ था। मेरी सांस अटकने लगी, ऐसा लगा मानों आंखें बाहर आ जाएगी। मैं लड़खड़ाने लगा। इतने में बूढ़े ने अपनी पकड़ ढीली की। मेरी जान में जान आई और कुछ देर बाद मैं होश में आया। बूढ़े ने मुझे उठने का इशारा किया और मेरी ओर हाथ बढ़ाया। मेरे अंदर बिल्कुल ताकत नहीं थी। इसलिए मैं नहीं उठ पाया। इस पर बूढ़े ने मुझे एक लात मारी। डर से मैं उठ खड़ा हुआ। मैं उसके मुताबिक काम करने को विवश हो गया। वह मुझे पेड़ के पास ले गया। वहां से फल तोड़कर खुद खाया और मुझे भी खाने को कहा।

धीरे-धीरे रात हो आई। बूढ़ा अब भी मेरी गर्दन पर ही था। वह उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरे शरीर में जान बाकी नहीं थी। मैं बैठ गया और उसे कंधे पर लिए ही सो गया। कुछ देर बाद शायद उसकी भी आंख लग गई। फिर सुबह उसने मुझे पैर से धक्का मारकर जगाया। वह अब भी मेरे कंधे पर ही था। उस दिन भी मैंने दिनभर उसे द्वीप पर घुमाया और उसके मुताबिक काम करता रहा। मनमानी करने पर बूढ़ा मुझे मारता था इसलिए न चाहते हुए भी मैं उसके अनुसार चल रहा था।

एक रोज मैंने वहां कद्दू के सूखे खोल पड़े देखे। मैंने उन्हें साफ किया और उसमें पके अंगूरों का रस निचोड़ कर भर दिया और चला गया। कुछ रोज बाद मैं इस ओर घूमता हुआ आया और तभी मैंने देखा कि अंगूर के रस से खमीर उठ गया था और वह मदिरा बन चुका था। मैं बहुत कमजोर महसूस कर रहा था ऐसे में ताकत के लिए मैंने मदिरा का सेवन किया। अब मुझे में थोड़ी ताकत आ गई थी। मैं तेजी से चलने और गाने लगा। बूढ़े को समझ नहीं आ रहा था कि मुझे अचानक क्या हुआ। उसने इशारे से मुझसे मदिरा मांगी।

मैंने उसे मदिरा दी। वह एक ही सांस में पूरी पी गया। इसके बाद उसे बहुत तेज नशा चढ़ा। वह गाने, झूमने लगा। अब वह कंधे पर टिक भी नहीं पा रहा था और डगमगाने लगा। मैंने मौका देखकर उसे जमीन पर पटक दिया। फिर पास पड़े एक पत्थर को उठाया और बूढ़े के सिर पर दे मारा। कई बार वार के बाद बूढ़ा मर गया। मेरी सांस में सांस आई। ऐसा लगा मानो जैसे किसी कैद से आजादी मिली। मैं भागकर समुद्र तट पर आ गया।

मेरी किस्मत अच्छी निकली। संयोग से उसी समय एक जहाज वहां से गुजरा। मैंने उस पर सवार लोगों से मदद मांगी। मैंने उन्हें अपनी पूरी कहानी सुनाई। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। वे बोले, ‘क्या सच में तुम इस बूढ़े के चंगुल में फंसे थे? इस बूढ़े ने न जाने कितनों को मार डाला। उसके कारण इस द्वीप पर कोई नहीं आता। तुम तो बड़े भाग्यशाली निकले जो उसकी कैद से बच निकले और उसे मार भी दिया।’ वे लोग बहुत खुश हुए और मुझे अपने साथ जहाज पर बैठा लिया। उन्होंने मुझसे किराया भी नहीं लिया। यात्रा के दौरान जहाज पर सवार एक बड़े व्यापारी से मेरी गहरी दोस्ती हो गई थी।

कुछ दिनों बाद हम एक अन्य द्वीप पर पहुंचे। जहां उस व्यापारी ने मुझे उतरने को कहा और अपने कई नौकरों को भी मेरे साथ उतारा। उसने मुझे एक टोकरा थमाया और बोला इनके साथ जाओ और जैसे ये कहें वैसा ही करना। जैसे ही मैं जाने लगा वैसे ही व्यापारी ने पीछे से आवाज लगाई ‘नौकरों से अलग मत होना वरना मुसीबत में पड़ जाओगे।’ हम सभी वहां से चल दिए। द्वीप पर नारियल के ढेरों पेड़ थे। उनकी ऊंचाई इतनी ज्यादा थी कि उन पर चढ़ना असंभव जान पड़ता था। मैंने देखा कि मेरे साथ आए लोग पत्थर, ढेले चुन रहे हैं। मैं समझ नहीं पाया। इतने में वहां बंदरों का झुंड आ गया। वे हम पर नारियल बरसाने लगे। इतने में मेरे साथी उनपर पत्थर और ढेले फेंकने लगे। मैं पूरी बात समझ गया। देखते ही देखते जमीन पर चारों ओर नारियल ही नारियल दिखने लगे। मैं उनके नारियल प्राप्त करने के तरीके को देखकर हैरान हो गया। हमने फटाफट नारियल टोकरी में भरे और जहाज की तरफ आए। उन लोगों ने शहर में नारियलों को बेच दिया, जहां से उन्हें अच्छी रकम मिली।

सारे नारियल बिक जाने के बाद व्यापारी मेरी ओर आया और मुझे रुपये देने लगा। नारियल की कीमतों में से मेरा हिस्सा देकर उसने मुझसे कहा, ‘तुम रोज इसी तरह से नारियल जमा करो और उसे बेचकर जो रुपये मिले उसे बचाओ। धीरे-धीरे तुम्हारे पास इतना धन हो जाएगा कि तुम अपने देश वापस जा सकोगे।’ मैंने उससे विदाई ली और वह जहाज चला गया। उसके जाने के बाद मैंने वैसा ही किया। नारियल बेचकर पैसे जमा करने लगा।

कुछ दिनों बाद एक जहाज आया जो उस ओर जाने वाला था जिस ओर मैं जाना चाहता था। मैंने अपनी नारियल की खेप ली और उस पर सवार हो गया। जहाज निकला और एक द्वीप पर पहुंचा जहां काली मिर्च की पैदावार होती थी। वहां से हम उस टापू पर गए जहां चंदन और आबनूस के पेड़ थे। वहां के लोग न तो मदिरापान करते थे और न ही कोई कुकर्म करते थे। उन द्वीपों पर नारियल बेचकर मैंने काली मिर्च और चंदन खरीदा। कुछ व्यापारियों ने समुद्र से मोती निकालने की योजना बनाई थी, मैं उनके साथ भी हो लिया। हमने काफी गोताखोरों को मजदूरी पर लगाया। उस समय भगवान की कृपा मुझपर ऐसी हुई कि मेरे गोताखोर को अन्य गोताखोरों के मुकाबले कई अधिक मोती मिले जो सुंदर, मोटे और बड़े-बड़े थे। हमारा जहाज वहां से निकला और बसरा बंदरगाह पर आ पहुंचा। वहां मैंने काली मिर्च, चंदन और मोती बेचे, जिससे मुझे बहुत सारा धन मिला। मुझे उम्मीद से कई गुणा अधिक लाभ हुआ। मैंने अपनी कमाई का दसवां भाग दान दिया और बगदाद अपने घर लौट आया। मैंने सुख-सुविधा की कुछ वस्तुएं खरीदीं और आराम से रहने लगा।

पांचवीं यात्रा का वृतांत समाप्त हुआ। सिंदबाद ने हिंदबाद को फिर चार सौ दीनारें दीं और सभी से विदा लेकर अगले दिन फिर नया यात्रा वृतांत सुनने के लिए आमंत्रित किया।

 

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