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चीकू के स्वास्थ्यगत लाभ (Benefits of Chiku in Hindi)

चीकू (Botanical name :Manilkara zapota (sapodilla) ) का कच्चा फल कठोर, लसलसा व कसैला होता है परन्तु पकने पर नर्म व रसीला हो जाता है जिसका स्वाद लगभग नाशपाती जैसा लग सकता है। कुछ चीकू बीजरहित होते हैं परन्तु सामान्यतया इनमें 3 से 12 बीज होते हैं। चीकू ऊर्जाप्रदायक माना जाता है एवं यह उच्च-कैलोरी फलों में गिना जाता है। चीकू-फल का मीठा स्वाद ग्लुकोज़, फ्ऱक्टोज़ व सुक्रोज़ जैसी सरल शर्कराओं के कारण होता है।

चीकू के मुख्य उत्पादक देश 

चीकू मूलतः अमेरिका व दक्षिण अमेरिका का  फल है। इसका  पेड़ भारत, फ़िलीपीन्स, श्रीलंका, मलेशिया, मैंक्सिको, वेनेज़ुएला, ग्वाटेमाला एवं मध्य अमेरिका में कमर्शियल रूप से उगाया जाता है। भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक है।

चीकू की किस्में 

चीकू को प्रायः धीमे बढ़ने वाला सदाबहार पेड़ माना जाता है, भारत में खेती के लिये चीकू की कई किस्में अपनायी गयी हैं, जैसे – काली पत्ती – काली पत्ती चीकू के फल अण्डाकृतिक होते हैं एवं बीज कम होते हैं। अन्य -भूरी पत्ती एवं बारामासी।

खेती के दौरान आमदनी 

जलवायु की स्थिति एवं सिंचाई सुविधा के अनुसार अन्तर्फसली के रूप में कई पौधों की खेती चीकू के खेत में तब तक की जा सकती है जब तक की चीकू के पौधे बड़े न हो जायें, जैसे मटर, फूलगोभी, बैंगन, टमाटर, कोकोआ, अनन्नास, कद्दू, केला एवं पपीता इत्यादि। इस प्रकार चीकू में फल लगने तक भी संसाधनों का प्रयोग एवं कमायी सम्भव है।

चीकू के फल की उपयोगिता / Benefits of Chiku Fruit in Hindi 

  • फल व पत्तियों में पादप-रसायनों (फ़ाइटोकेमिकल्स) व एण्टिआक्सिडेण्ट यौगिकों की अधिकता होती है। चीकू जीवाणुरोधी भी होता है।
  • फल में विटामिन्स, कार्बोहाइड्रेट, खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं।
  • चीकू में फ़्लेवॅनाइड व जैवसक्रिय (बायोएक्टिव) पालिफ़िनालिक यौगिक होते हैं।
  • चीकू में कटॅचिन नामक एकप्रकार का नैसर्गिक फ़िनाल व एण्टिआक्सिडेण्ट होता है जो कि चीकू की पत्तियों में उपस्थित होता है।
  • चीकू में नैसर्गिक एण्टिआक्सिडेण्ट्स होते हैं जो मानव-कोशिकाओं को मुक्तमूलकों (फ्ऱी रेडिकल्स) के प्रभावों से बचाने में सहायता कर सकते हैं। ये मुक्तमूलक कैन्सर-कोशिकाओं को बढ़ावा दे सकते हैं एवं अन्य रोगों को भी प्रेरित कर सकते हैं।
  • बुखार, रक्तस्राव (हीमोरेज), घाव व व्रण (अल्सर) में पत्ती के काढ़े (लीफ़डिकाशन) का सेवन किया जाता है किन्तु विशेषज्ञ से पूछकर।
  • पत्तियों में मधुमेहरोधी, कोलेस्टॅरालविरोधी एवं एण्टिआक्सिडेण्ट गुणधर्म होते हैं। पत्तियों के सत में सूजन-रोधी एवं आथ्र्राइटिस में राहत देने वाले लक्षण भी पाये गये हैं।
  • पत्तियों में सूक्ष्मजीवरोधी, विशेषतया जीवाणुरोधी गुण पाये गये हैं।
  • कच्चे फल का रस दस्त के उपचार में सहायक कहा गया है।
  • पेड़ की छाल के काढ़े को तेज बुखार एवं ठण्ड लगने जैसे मलेरिया-लक्षणों के उपचार में उपयोगी माना गया है।
  • न्युरॅल्जिया में तैल में चीकू की पत्ती को कुचलकर प्रभावित भाग पर लगाने को कहा जाता है।
  • प्रसव के उपरान्त माँ के शरीर पर मलने के लिये चूर्ण (पाउडर) के एक अवयव के रूप में चीकू के पुष्पों का प्रयोग किया जाता है।
  • छाल कसैली, ज्वरनाशक एवं बलवर्द्धक मानी जाती है।
  • चीकू में कैलोरी अधिक होती है (100 ग्राम चीकू में लगभग 83 कैलोरीज़)।
  • चीकू में आहारीय रेशो की अधिक मात्रा होती है जिससे पेट में पर्याप्त मल बनता है एवं आँतों की मलोत्सर्ग गति को सामान्य रखने में सहायता होती है।
  • चीकू में विटामिन-ऐ अधिक मात्रा में होता है जिससे चीकू दृष्टि सामान्य रखने में सहायक हुआ।
  • विटामिन-सी की प्रचुर मात्रा से चीकू संक्रमणों से जूझने में शरीर के प्रतिरक्षा-तन्त्र को सहयोग करता है।
  • औद्योगिक स्तर पर चीकू से जेम, जैली एवं च्युइंगम का निर्माण किया जाता है।
  • पोटेशियम – चीकू में उपस्थित पोटेशियम ऐसा खनिज है जो एक प्रकार का विद्युत्-अपघट्य (इलेक्ट्रोलाइट) है जो तन्त्रिकाओं की कार्यप्रणाली में आवश्यक एवं पेशियों के संकुचन में सहायक है। हृद्स्पन्दों को विनियमित रखता है एवं कोशिकाओं तक पोषकों को पहुँचाने व वहाँ से अपशिष्ट उत्पाद निकालने में भी सहायता करता है।
  • ताम्र – चीकू में ताम्र (ताँबा) होता है, यह लाल रक्त-कोशिकाओं के निर्माण में, तन्त्रिका-कोशिकाओं के रखरखाव में एवं प्रतिरक्षा-तन्त्र के कार्यकलापों में भूमिकाएँ निभाताहै।
  • यह शरीर में कोलेजन के निर्माण में एवं आहार से शरीर में लौह के अवशोषण में भी सहायता करता है। शरीर का अधिकांश ताम्र यकृत, हृदय, मस्तिष्क, वृक्कों व कंकाली पेशी में पाया जाता है।
  • लौह – शरीर की बढ़त व परिवर्द्धन में तो यह आवश्यक है ही, साथ में शरीर को हीमोग्लोबिन के निर्माण में लौह की आवश्यकता होती है तथा लाल रक्त-कोशिकाओं का हीमोग्लोबिन ऐसा लौहयुक्त प्रोटीन है जो फेफड़ों से शरीर के समस्त भागों में आक्सीजन का परिवहन करता है। पेशियों को आक्सीजन प्रदान करने वाले मायोग्लोबिन नामक प्रोटीन बनाने के भी लिये लौह आवश्यक है। अनेक हार्मोन्स के निर्माण में भी लौह अपनी भूमिका निभाता है। चीकू में पर्याप्त मात्रा में लौह होता है।
  • फ़ोलेट – इसे विटामिन बी9 भी कहते हैं जो कि जल-विलयशील (पानी में घुलनशील) एक विटामिन है जो कि स्वस्थ कोशिका-विभाजन एवं गर्भ-परिवर्द्धन को सामान्य रखता है तथा जन्म-विकारों की आषंका घटाता है। चीकू में फ़ोलेट भी पाया जाता है।
  • विटामिन बी1 – इसे थियामिन भी कहते हैं जो कि चीकू में उपस्थित रहता है, यह तन्त्रिका-तन्त्र, मस्तिष्क, पेशियों, हृदय, आमाशय एवं आन्त्रों में जटिलताओं से रक्षा करता है। यह पेषी व तन्त्रिका-कोशिकाओं के भीतर-बाहर विद्युत्-अपघट्यों के प्रवाह में भी अपनी भूमिका निभाता है। विटामिन बी1 बेरी-बेरी नामक एक रोग से बचाने में सहायक है जो कि हृदय, तन्त्रिकाओं एवं पाचन तन्त्र से जुड़ी एक विकृति है।
  • विटामिन बी5 – इसे पेण्टोथेनिक अम्ल भी कहा जाता है, यह शरीर में रक्त-कोशिकाओं के निर्माण सहित खाद्य को ऊर्जा में बदलने के भी लिये आवश्यक है।

चीकू से सम्बंधित सावधानियाँ 

  • चीकू की पुरानी पत्तियों में विषाक्त एल्कॅलाइड होता है, अतः छोटे बच्चों के खेल-खिलवाड़ से इन्हें दूर रखें।
  • बीजों में हायड्रोसायनिक अम्ल होता है, फल खाने से पहले बीजों को निकालना होता है।

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