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Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-2

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-2

छात्रैः परिश्रमेण पठितव्यम् ॥

 भावार्थ :

छात्रों को परिश्रम से पढ़ना चाहिए ।

अस्माभिः सदा चरित्रं रक्षणीयम् ॥

 भावार्थ :

हमें सदा चरित्र की रक्षा करनी चाहिए ।

विद्यया लभते ज्ञानम् ॥

 भावार्थ :

विद्या से ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

अस्तयभाषणं पापं वर्तते ॥

 भावार्थ :

झूठ बोलना पाप है ।

श्रध्दा ज्ञानं ददाति, नम्रता मानं ददाति, योग्यता स्थानं ददाति ॥

 भावार्थ :

श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है ।

असंहताः विंनश्यन्ति ॥

 भावार्थ :

जो लोग बिखर कर रहते है वे नष्ट हो जाते हैं ।

संहतिः कार्यसाधिका ॥

 भावार्थ :

मिलजुल कर कार्य करने से कार्य की सिद्धि होती है ।

ईश्वरस्य स्मरणं प्रभाते उत्थाय अवश्यं कर्तंव्यम् ॥

 भावार्थ :

सवेरे उठकर ईश्वर का स्मरण अवश्य करना चाहिए ।

अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता ॥

 भावार्थ :

अच्छी तरह बोली गई वाणी अलग अलग प्रकार से मानव का कल्याण करती है ।

वृध्दा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ॥

 भावार्थ :

जो धर्म की बात नहीं करते वे वृद्ध नहीं हैं ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-2

श्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम् ॥

 भावार्थ :

वृद्धों की बात सुननी चाहिए एसा शास्त्रों का कथन है ।

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ॥

 भावार्थ :

शरीर धर्म पालन का पहला साधन है ।

लोभः प्रज्ञानमाहन्ति ॥

 भावार्थ :

लोभ विवेक का नाश करता है ।

लोभमूलानि पापानि ॥

 भावार्थ :

सभी पाप का मूल लोभ है ।

अन्तो नास्ति पिपासायाः ॥

 भावार्थ :

तृष्णा का अन्त नहीं है ।

मृजया रक्ष्यते रूपम् ॥

 भावार्थ :

स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है ।

तद् रूपं यत्र गुणाः ॥

 भावार्थ :

जिस रुप में गुण है वही उत्तम रुप है ।

सत्यभाषणं पुण्यं वर्तते ॥

 भावार्थ :

सच बोलना पुण्य है ।

यशोधनानां हि यशो गरीयः ॥

 भावार्थ :

यशरूपी धनवाले को यश हि सबसे महान वस्तु है ।

वरं मौनं कार्यं न च वचनमुक्तं यदनृतम् ॥

 भावार्थ :

असत्य वचन बोलने से मौन धारण करना अच्छा है ।

मौनं सर्वार्थसाधनम् ॥

 भावार्थ :

मौन यह सर्व कार्य का साधक है ।

कुलं शीलेन रक्ष्यते ॥

 भावार्थ :

शील से कुल की रक्षा होती है ।

सर्वे मित्राणि समृध्दिकाले ॥

 भावार्थ :

समृद्धि काल में सब मित्र बनते हैं ।

न मातुः परदैवतम् ॥

 भावार्थ :

माँ से बढकर कोई देव नहीं है ।

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥

 भावार्थ :

पुत्र कुपुत्र होता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती ।

गुरुणामेव सर्वेषां माता गुरुतरा स्मृता ॥

 भावार्थ :

सब गुरु में माता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-2

मनः शीघ्रतरं बातात् ॥

 भावार्थ :

मन वायु से भी अधिक गतिशील है ।

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ॥

 भावार्थ :

मन हि मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है ।

भाग्यं फ़लति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम् ॥

 भावार्थ :

भाग्य हि फ़ल देता है, विद्या या पौरुष नहीं ।

चराति चरतो भगः ॥

 भावार्थ :

चलेनेवाले का भाग्य चलता है ।

सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ॥

 भावार्थ :

जैसी भवितव्यता हो एसे हि सहायक मिल जाते हैं ।

यदभावि न तदभावी भावि चेन्न तदन्यथा ॥

 भावार्थ :

जो नहीं होना है वो नहीं होगा, जो होना है उसे कोई टाल नहीं सकता ।

बलवन्तो हि अनियमाः नियमा दुर्बलीयसाम् ॥

 भावार्थ :

बलवान को कोई नियम नहीं होते, नियम तो दुर्बल को होते हैं ।

स्वभावो दुरतिक्रमः ॥

 भावार्थ :

स्वभाव बदलना मुश्किल है ।

बह्वाश्र्चर्या हि मेदनी ॥

 भावार्थ :

पृथ्वी अनेक आश्र्चर्यों से भरी हुई है ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-2

पितृदोषेण मूर्खता ॥

 भावार्थ :

पिता के दोष से हि संतान मूर्ख होती है ।

पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः ॥

 भावार्थ :

पिता प्रसन्न हो तो सब देव प्रसन्न होते हैं ।

पात्रत्वाद् धनमाप्नोति ॥

 भावार्थ :

पात्रता होने से इन्सान धन प्राप्त करता है ।

विनयाद् याति पात्रताम् ॥

 भावार्थ :

विनय से इन्सान पात्रता प्राप्त करता है ।

दुःखेनासाद्यते पात्रम् ॥

 भावार्थ :

सत्पात्र व्यक्ति मुश्किल से मिलती है ।

दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ॥

 भावार्थ :

दैव हि सब कुछ देता है एसा कायर लोग कहते हैं ।

हस्तस्य भूषणं दानम् ॥

 भावार्थ :

दान हाथ का भूषण है ।

दीयमानं हि नापैति भूय एवाभिवर्तते ॥

 भावार्थ :

जो दिया जाता है वह कम नहीं होता बल्कि बढता है ।

गृहेऽपि पज्चेन्द्रियनिग्रहः तपः ॥

 भावार्थ :

घर में रहकर पाँचों इन्द्रियों को वशमें रखना तप है ।

जननी जन्मभूमुश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥

 भावार्थ :

जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है ।

कृतज्ञः सर्वलोकेषु पूज्यो भवति सर्वदा ॥

 भावार्थ :

कृतज्ञ मानवी सर्वदा सर्व लोगों में पूजा जाता है ।

उपायेन हि यच्छक्यं तन्न शक्यं पराक्रमैः ॥

 भावार्थ :

जो काम उपाय से हो शकता है वह पराक्रम से नहीं होता ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-2

नोपकारात् परो धर्मो नापकारादधं परम् ॥

 भावार्थ :

उपकार जैसा दूसरा कोई धर्म नहीं; अपकार जैसा दूसरा पाप नहीं ।

कुर्वाणो नावसीदति ॥

 भावार्थ :

कुछ न कुछ काम करनेवाला नाश नहीं होता ।

उद्यमे नावसीदति ॥

 भावार्थ :

उद्यम करनेवाला नाश नहीं होता ।

सोत्साहानां नास्त्यसाध्यं नराणाम् ॥

 भावार्थ :

उत्साही मानव को कुछ भी असाध्य नहीं होता ।

उत्साहवन्तः पुरुषाः नावसीदन्ति कर्मसु ॥

 भावार्थ :

उत्साही लोग काम करने में पीछे नहीं हटते ।

कुतो विद्यार्थिनः सुखम् ॥

 भावार्थ :

विद्यार्थी को सुख कहाँ ?

किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥

 भावार्थ :

कल्पलता की तरह विद्या कौन सा काम नहीं सिध्ध कर देती ?

सा विद्या या विमुक्तये ॥

 भावार्थ :

मनुष्य को मुक्ति दिलाये वही विद्या है ।

विद्या योगेन रक्ष्यते ॥

 भावार्थ :

विद्या का रक्षण अभ्यास से होता है ।

न नित्यं लभते दुःखं न नित्यं लभते सुखम् ॥

 भावार्थ :

किसी को सदैव दुःख नहीं मिलता या सदैव सुख भी लाभ नहीं होता ।

दुःखादुद्विजते जन्तुः सुखं सर्वाय रुच्यते ॥

 भावार्थ :

दुःख से मानव थक जाता है, सुख सबको भाता है ।

अनर्थाः संघचारिणः ॥

 भावार्थ :

मुश्किलें समुह में हि आती है ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-2

अपुत्रता मनुष्याणां श्रेयसे न कुपुत्रता ॥

 भावार्थ :

कुपुत्रता से अपुत्रता ज़ादा अच्छी है ।

ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः ॥

 भावार्थ :

जो पितृभक्त हो वही पुत्र है ।

उद्योगसम्पन्नं समुपैति लक्ष्मीः ॥

 भावार्थ :

उद्योग-संपन्न मानव के पास लक्ष्मी आती है ।

यत्नवान् सुखमेधते ॥

 भावार्थ :

प्रयत्नशील मानव सुख पाता है ।

विद्वानेव विजानाति विद्वज्जन परिश्रमम् ॥

 भावार्थ :

विद्वान के परिश्रम को विद्वान हि जानता है ।

विद्वान सर्वत्र पूज्यते ॥

 भावार्थ :

विद्वान सब जगह सन्मान पाता है ।

ज्ञात्वापि दोषमेव करोति लोकः ॥

 भावार्थ :

दोष को जानकर भी लोग दोष हि करते हैं ।

सर्वो हि मन्यते लोक आत्मानं निरूपद्रवम् ॥

 भावार्थ :

सभी लोग अपने आप को अच्छे समझते हैं ।

गतानुगतिको लोकः न लोक़ः पारमार्थिकः ॥

 भावार्थ :

लोग देख-देखकर काम करते हैं, वास्तविकता की जाँच नहीं करते ।

को लोकमाराधयितुं समर्थः ॥

 भावार्थ :

सभी को कौन खुश कर सकता है ?

चिरनिरूपणीयो हि व्यक्तिस्वभावः ॥

 भावार्थ :

व्यक्ति का स्वभाव बहुत समय के बाद पहचाना जाता है

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-1

 

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