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Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-1

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-1

नास्ति बुद्धिमतां शत्रुः ॥

 भावार्थ :

बुद्धिमानो का कोई शत्रु नहीं होता ।

विद्या परमं बलम ॥

 भावार्थ :

विद्या सबसे महत्वपूर्ण ताकत है ।

सक्ष्मात् सर्वेषों कार्यसिद्धिभर्वति ॥

 भावार्थ :

क्षमा करने से सभी कार्ये में सफलता मिलती है ।

न संसार भयं ज्ञानवताम् ॥

 भावार्थ :

ज्ञानियों को संसार का भय नहीं होता ।

वृद्धसेवया विज्ञानत् ॥

 भावार्थ :

वृद्ध – सेवा से सत्य ज्ञान प्राप्त होता है ।

सहायः समसुखदुःखः ॥

 भावार्थ :

जो सुख और दुःख में बराबर साथ देने वाला होता है सच्चा सहायक होता है ।

आपत्सु स्नेहसंयुक्तं मित्रम् ॥

 भावार्थ :

विपत्ति के समय भी स्नेह रखने वाला ही मित्र है ।

मित्रसंग्रहेण बलं सम्पद्यते ॥

 भावार्थ :

अच्छे और योग्य मित्रों की अधिकता से बल प्राप्त होता है ।

सत्यमेव जयते ॥

 भावार्थ :

सत्य अपने आप विजय प्राप्त करती है ।

उपायपूर्वं न दुष्करं स्यात् ॥

 भावार्थ :

उपाय से कार्य कठिन नहीं होता ।

विज्ञान दीपेन संसार भयं निवर्तते ॥

 भावार्थ :

विज्ञानं के दीप से संसार का भय भाग जाता है ।

सुखस्य मूलं धर्मः ॥

 भावार्थ :

धर्म ही सुख देने वाला है ।

धर्मस्य मूलमर्थः ॥

 भावार्थ :

धन से ही धर्म संभव है ।

विनयस्य मूलं विनयः ॥

 भावार्थ :

वृद्धों की सेवा से ही विनय भाव जाग्रत होता है ।

अलब्धलाभो नालसस्य ॥

 भावार्थ :

आलसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।

आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते ॥

 भावार्थ :

आलसी प्राप्त वस्तु की भी रक्षा नहीं कर सकता ।

हेतुतः शत्रुमित्रे भविष्यतः ॥

 भावार्थ :

किसी कारण से ही शत्रु या मित्र बनते हैं ।

बलवान हीनेन विग्रहणीयात् ॥

 भावार्थ :

बलवान कमज़ोर पर ही आक्रमण करे ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-1

दुर्बलाश्रयो दुःखमावहति ॥

 भावार्थ :

दुर्बल का आश्रय दुःख देता है ।

नव्यसनपरस्य कार्यावाप्तिः ॥

 भावार्थ :

बुरी आदतों में लगे हुए मनुष्य को कार्य की प्राप्ति नहीं होती ।

अर्थेषणा न व्यसनेषु गण्यते ॥

 भावार्थ :

घन की अभिलाषा रखना कोई बुराई नहीं मानी जाती ।

अग्निदाहादपि विशिष्टं वाक्पारुष्यम् ॥

 भावार्थ :

वाणी की कठोरता अग्निदाह से भी बढ़कर है ।

आत्मायत्तौ वृद्धिविनाशौ ॥

 भावार्थ :

वृद्धि और विनाश अपने हाथ में है ।

अर्थमूलं धरकामौ ॥

 भावार्थ :

धन ही सभी कार्याे का मूल है ।

कार्यार्थिनामुपाय एव सहायः ॥

 भावार्थ :

उद्यमियों के लिए उपाय ही सहायक है ।

कार्य पुरुषकारेण लक्ष्यं सम्पद्यते ॥

 भावार्थ :

निश्चय कर लेने पर कार्य पूर्ण हो जाता है ।

असमाहितस्य वृतिनर विद्यते ॥

 भावार्थ :

भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।

पूर्वं निश्चित्य पश्चात् कार्यभारभेत् ॥

 भावार्थ :

पहले निश्चय करें, फिर कार्य आरंभ करें ।

कार्यान्तरे दीघर्सूत्रता न कर्तव्या ॥

 भावार्थ :

कार्य के बीच में आलस्य न करें ।

दुरनुबध्नं कार्य साधयेत् ॥

 भावार्थ :

जो कार्य हो न सके उस कार्य को प्रांरभ ही न करें ।

कालवित् कार्यं साधयेत् ॥

 भावार्थ :

समय के महत्व को समझने वाला निश्चय ही अपना कार्य सिद्धि कर पता है ।

भाग्यवन्तमपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥

 भावार्थ :

बिना विचार कार्य करने वाले भाग्शाली को भी लक्ष्मी त्याग देती है ।

यो यस्मिन् कर्माणि कुशलस्तं तस्मित्रैव योजयेत् ॥

 भावार्थ :

जो मनुष्य जिस कार्य में निपुण हो, उसे वही कार्य सौंपना चाहिए ।

दुःसाध्यमपि सुसाध्यं करोत्युपायज्ञः ॥

 भावार्थ :

उपायों का ज्ञाता कठिन को भी आसान बना देता है ।

अप्रयत्नात् कार्यविपत्तिभर्वती ॥

 भावार्थ :

प्रयास न करने से कार्य का नाश होता है ।

शोकः शौर्यपकर्षणः ॥

 भावार्थ :

शोक मनुष्य के शौर्य को नष्ट कर देता है ।

न सुखाल्लभ्यते सुखम् ॥

 भावार्थ :

सुख से सुख की वृद्धि नहीं होती ।

स्वभावो दुरतिक्रमः ॥

 भावार्थ :

स्वभाव का अतिक्रमण कठिन है ।

मित्रता-उपकारफलं मित्रमपकारोऽरिलक्षणम् ॥

 भावार्थ :

उउपकार करना मित्रता का लक्षण है और अपकार करना शत्रुता का ।

सर्वथा सुकरं मित्रं दुष्करं प्रतिपालनम् ॥

 भावार्थ :

मित्रता करना सहज है लेकिन उसको निभाना कठिन है ।

ये शोकमनुवर्त्तन्ते न तेषां विद्यते सुखम् ॥

 भावार्थ :

शोकग्रस्त मनुष्य को कभी सुख नहीं मिलता ।

सुख-दुर्लभं हि सदा सुखम् ॥

 भावार्थ :

सुख सदा नहीं बना रहता है ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-1

सर्वे चण्डस्य विभ्यति ॥

 भावार्थ :

क्रोधी पुरुष से सभी डरते हैं ।

मृदुर्हि परिभूयते ॥

 भावार्थ :

मृदु पुरुष का अनादर होता है ।

शब्दमात्रात् न भीतव्यम् ॥

 भावार्थ :

शब्द – मात्र से डरना उचित नहीं ।

उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः ॥

 भावार्थ :

उपय द्वारा जो काम हो जाता है वह पराक्रम से नहीं हो पता ।

उपायेन जयो यदृग्रिपोस्तादृड्डं न हेतिभिः ॥

 भावार्थ :

उपाय से शत्रु को जीतो, हथियार से नहीं ।

यस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् ॥

 भावार्थ :

बली वही है, जिसके पास बुद्धि-बल है ।

न ह्राविज्ञातशीलस्य प्रदातव्यः प्रतिश्रयः ॥

 भावार्थ :

अज्ञात या विरोधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को आश्रय नहीं देना चाहिए ।

सेवाधर्मः परमगहनो ॥

 भावार्थ :

सेवाधर्म बड़ा कठिन धर्म है ।

बलवन्तं रिपु दृष्ट् वा न वामान प्रकोपयेत् ॥

 भावार्थ :

शत्रु अधिक बलशाली हो तो क्रोध प्रकट न करे, शान्त हो जाए ।

यद् भविष्यो विनश्यति ॥

 भावार्थ :

‘जो होगा देखा जाएगा’ कहने वाले नष्ट हो जाते हैं ।

बहूनामप्यसाराणां समवायो हि दुर्जयः ॥

 भावार्थ :

छोटे और निर्बल भी संख्या में बहुत होकर दुर्जेय हो जाते हैं ।

उपदेशो हि मूर्खणां प्रकोपाय न शान्तये ॥

 भावार्थ :

उपदेश से मूर्खो का क्रोध और भी भड़क उठता है, शान्त नहीं होता ।

उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे जने ॥

 भावार्थ :

जिस-तिसको उपदेश देना उचित नहीं ।

किं करोत्येव पाण्डित्यमस्थाने विनियोजितम् ॥

 भावार्थ :

अयोग्य को मिले ज्ञान का फल विपरीत ही होता है ।

उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तथा पायं च चिन्तयेत् ॥

 भावार्थ :

उपाय की चिन्ता के साथ, दुष्परिणाम की भी चिन्ता कर लेनी चाहिए ।

पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्खो हितकारकः ॥

 भावार्थ :

हितचिंतक मूर्ख की अपेक्षा अहितचिंतक बुद्धिमान अच्छा होता है ।

हेतुरत्र भविष्यति ॥

 भावार्थ :

बिना कारण कुछ भी नहीं हो सकता ।

अतितृष्णा न कर्तव्या, तृष्णां नैव परित्यजेत् ॥

 भावार्थ :

लोभ तो स्वाभाविक है, किन्तु अतिशय लोभ मनुष्य का सर्वनाश कर देता है।

शत्रवोऽपि हितायैव विवदन्तः परस्परम् ॥

 भावार्थ :

परस्पर लड़ने वाले शत्रु भी हितकारी होते हैं ।

स्वजातिः दुरतिक्रमा ॥

 भावार्थ :

स्वजातीय ही सबको प्रिय होते हैं ।

अनागतं यः कुरुते स शोभते ॥

 भावार्थ :

आनेवाले संकट को देखकर अपना भावी कार्यक्रम निश्चित करने वाला सुखी रहता है ।

जानन्नपि नरो दैवात्प्रकरोति विगर्हितम् ॥

 भावार्थ :

सब कुछ जानते हुए भी जो मनुष्य बुरे काम में प्रवृत्त हो जाए, वह मनुष्य नहीं गधा है ।

मौंन सर्व थेसाधकम् ॥

 भावार्थ :

वाचालता विनाशक है, मौन में बड़े गुण हैं ।

छात्राः अनुशासिताः भवेयुः ॥

 भावार्थ :

छात्रों को अनुशासित होना चाहिए ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-1

धनात् धर्मः भवति ॥

 भावार्थ :

धन से धर्म होता है ।

सत्यमेव जयते न अनृतम् ॥

 भावार्थ :

सत्य की ही जय होती है असत्य की नहीं ।

अध्ययनेन/अध्ययनं वीना ज्ञानं न भवति ॥

 भावार्थ :

अध्ययन के बिना ज्ञान नहीं होता है ।

यः कार्यं न पश्यति सोऽन्धः ॥

 भावार्थ :

जो कार्य को नहीं देखता वह अंधा है ।

सदाचारः सर्वेषां धर्माणां श्रेष्ठः अस्ति ॥

 भावार्थ :

सदाचार सभी धर्मों में श्रेष्ठ है ।

आचारात् एव बुद्धिः भवति ॥

 भावार्थ :

आचार से ही बुद्धि होती है ।

परिश्रमस्य फलं मधुरं भवति ॥

 भावार्थ :

परिश्रम का फल मीठा होता है ।

अनुशासनेन एव मनुष्यः महान् भवति ॥

 भावार्थ :

अनुशाशन से ही मनुष्य महान होता है ।

अपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥

 भावार्थ :

बिना विचारे कार्य करने वाले को लक्ष्मी त्याग देती हैं ।

स्वजनं तर्पयित्वा यः शेषभोजी सोऽमृतभोजी ॥

 भावार्थ :

अपनी शक्ति को जानकर ही कार्य आरंभ करें ।

नास्ति भीरोः कार्यचिन्ता ॥

 भावार्थ :

कायर को कार्य की चिन्ता नहीं होती ।

नास्त्यप्राप्यं सत्यवताम् ॥

 भावार्थ :

सत्य-सम्पन्न लोगों के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं हैं ।

संस्कृतं देवानं भाषा अस्ति ॥

 भावार्थ :

संस्कृत देवताओं की भाषा है ।

संतोषवत् न किमपि सुखम् अस्ति ॥

 भावार्थ :

संतोष के समान कोई सुख नहीं है ।

ईश्वरस्य पूजा वृथा न भवति ॥

 भावार्थ :

ईश्वर की पूजा व्यर्थ नहीं जाती है ।

संस्कृतं भाषाणां जननी अस्ति ॥

 भावार्थ :

संस्कृत भाषाओं की जननी है ।

छात्राणां धर्मः अध्ययनम् अस्ति ॥

 भावार्थ :

छात्रों का धर्म अध्ययन है ।

विद्या धनेषु उत्तमा वर्त्तते ॥

 भावार्थ :

विद्या धनों में उत्तम है ।

सदा सत्यं वदेत् ॥

 भावार्थ :

सदा सत्य बोलना चाहिए ।

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स) Part-2

 

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