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An Initiative by: Kausik Chakraborty.

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Jatindranath Mukherjee ‘Bagha Jatin’ | जतीन्द्रनाथ मुखर्जी ‘बाघा जतीन’ 

Jatindranath Mukherjee ‘Bagha Jatin’ 

Born – December 7, 1879

Jatindranath Mukherjee was a Bengali revolutionary against British rule। His father died at an early age। His mother took upon herself all the responsibilities of the house and fulfilled it very carefully। Jatindranath Mukherjee’s childhood name was ‘Jatindranath Mukhopadhyay। Due to his bravery in killing a tiger, he also became famous by the name of ‘Bagha Jatin। Jatindranath was an acting philosophical revolutionary against British rule। He was the main leader of ‘Yugantar Party। At that time Yugantar Party was the main organization of revolutionaries in Bengal।Jatindranath Mukherjee was born in Jaysore, Bengal in British India on 7 December 1879 AD. It happened in। His father died at the young age of five। Mother had raised them with great difficulties। Jatindranath passed his matriculation examination at the age of 18 and joined ‘Calcutta University’ after learning stenography for the family to earn a living। He was very strong since childhood। There is also a truth about him that at the age of 27, once while passing through the forest, he had an encounter with a tiger। He had killed the tiger with his sickle। After this incident Jatindranath became famous by the name of ‘Bagha Jatin’।During these days the British made a plan for partition। Bengalis openly opposed this, at such a time Jatindranath Mukherjee’s new blood also started boiling। He took the path of movement by kicking the imperialist job। In 1910, while working in a revolutionary organization, Jatindranath was arrested in the ‘Howrah Conspiracy Case’ and had to serve a year in jail। On being released from jail, he became an active member of ‘Anushilan Samiti’ and started handling the work of ‘Yugantar। He had written in one of his articles in those days – “The aim of the revolutionaries is to end capitalism and establish a classless society। It is our demand to free us from domestic and foreign exploitation and to provide opportunities for livelihood through self-determination।”Robbery was the main means of the revolutionaries to raise funds for the movement। During a gruesome robbery at a place called Dularia, revolutionary Amrit Sarkar was injured by the bullet of an associate of his own party। A serious problem arose whether to run away with money or protect the life of your partner!Amrit Sarkar told Jatindranath to run away with the money, don’t worry about me, but when Jatindranath was not ready for this task, Amrit Sarkar ordered – “Cut off my head and take it away, so that the British cannot recognize me।” Among these robberies, the robbery of ‘Garden Reach’ is considered very famous। Its leader was Jatindranath Mukherjee। World War had started at this time। In those days, ‘RADA Company’ used to trade in guns and cartridges in Calcutta। A vehicle belonging to this company was disappeared from the path, in which the revolutionaries received 52 mouser pistols and 50 thousand bullets। It was known to the British government that Jatindranath had a hand in the robberies of ‘Ballia Ghat’ and ‘Garden Reach।On September 1, 1915, the police found Jatindranath’s secret base ‘Kali Poksha’ Jatindranath was about to leave the place with his companions when the Raj Mahanti Salt Officer tried to catch him with the help of the people of the village। Jatindranath opened fire to disperse the growing crowd। Raj Mahanti collapsed there। This news was conveyed to Balasore District Magistrate Kilvi। Kilvi team reached there with force। A revolutionary named Yatish was ill।Jatindranath was not ready to leave her alone। A revolutionary named Chittapriya was with him। Bullets were fired from both sides। Chittapriya was martyred there। Virendra and other revolutionaries named Manoranjan were holding the front।

जतीन्द्रनाथ मुखर्जी ‘बाघा जतीन’ 

जन्म – 7 दिसम्बर, 1879

जतीन्द्रनाथ मुखर्जी ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ एक बंगाली क्रांतिकारी थे। इनकी अल्पायु में ही इनके पिता का देहांत हो गया था। इनकी माता ने घर की समस्त ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और उसे बड़ी सावधानीपूर्वक निभाया। जतीन्द्रनाथ मुखर्जी के बचपन का नाम ‘जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय’ था। अपनी बहादुरी से एक बाघ को मार देने के कारण ये ‘बाघा जतीन’ के नाम से भी प्रसिद्ध हो गये थे। जतीन्द्रनाथ ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कार्यकारी दार्शनिक क्रान्तिकारी थे। वे ‘युगान्तर पार्टी’ के मुख्य नेता थे। उस समय युगान्तर पार्टी बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन थी।जतीन्द्रनाथ मुखर्जी का जन्म ब्रिटिश भारत में बंगाल के जैसोर में सन 7 दिसम्बर 1879 ई. में हुआ था। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का देहावसान हो गया था। माँ ने बड़ी कठिनाईयाँ उठाकर इनका पालन-पोषण किया था। जतीन्द्रनाथ ने 18 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली और परिवार के जीविकोपार्जन हेतु स्टेनोग्राफ़ी सीखकर ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ से जुड़ गए। वह बचपन से ही बड़े बलिष्ठ थे। उनके विषय में एक सत्य बात यह भी है कि 27 वर्ष की आयु में एक बार जंगल से गुज़रते हुए उनकी मुठभेड़ एक बाघ से हो गयी। उन्होंने बाघ को अपने हंसिये से मार गिराया था। इस घटना के बाद जतीन्द्रनाथ ‘बाघा जतीन’ के नाम से विख्यात हो गए थे।इन्हीं दिनों अंग्रेज़ों ने बंग-भंग की योजना बनायी। बंगालियों ने इसका विरोध खुलकर किया ऐसे समय में जतीन्द्रनाथ मुखर्जी का भी नया रक्त उबलने लगा। उन्होंने साम्राज्यशाही की नौकरी को लात मारकर आन्दोलन की राह पकड़ी। सन 1910 में एक क्रांतिकारी संगठन में काम करते वक्त जतीन्द्रनाथ ‘हावड़ा षडयंत्र केस’ में गिरफ़्तार कर लिए गए और उन्हें साल भर की जेल काटनी पड़ी। जेल से मुक्त होने पर वह ‘अनुशीलन समिति’ के सक्रिय सदस्य बन गए और ‘युगान्तर’ का कार्य संभालने लगे। उन्होंने अपने एक लेख में उन्हीं दिनों लिखा था- “पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है। देसी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवन-यापन का अवसर देना हमारी मांग है।”क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के लिए धन जुटाने का प्रमुख साधन डकैती था। दुलरिया नामक स्थान पर भीषण डकैती के दौरान अपने ही दल के एक सहयोगी की गोली से क्रांतिकारी अमृत सरकार घायल हो गए। विकट समस्या यह खड़ी हो गयी कि धन लेकर भागें या साथी के प्राणों की रक्षा करें!अमृत सरकार ने जतीन्द्रनाथ से कहा कि धन लेकर भाग जाओ, तुम मेरी चिंता मत करो, लेकिन इस कार्य के लिए जतीन्द्रनाथ तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- “मेरा सिर काटकर ले जाओ, जिससे कि अंग्रेज़ पहचान न सकें।” इन डकैतियों में ‘गार्डन रीच’ की डकैती बड़ी मशहूर मानी जाती है। इसके नेता जतीन्द्रनाथ मुखर्जी ही थे। इसी समय में विश्वयुद्ध प्रारंभ हो चुका था। कलकत्ता में उन दिनों ‘राडा कम्पनी’ बंदूक-कारतूस का व्यापार करती थी। इस कम्पनी की एक गाडी रास्ते से गायब कर दी गयी थी, जिसमें क्रांतिकारियों को 52 मौजर पिस्तौलें और 50 हज़ार गोलियाँ प्राप्त हुई थीं। ब्रिटिश सरकार हो ज्ञात हो चुका था कि ‘बलिया घाट’ तथा ‘गार्डन रीच’ की डकैतियों में जतीन्द्रनाथ का ही हाथ है।1 सितम्बर, 1915 को पुलिस ने जतीन्द्रनाथ का गुप्त अड्डा ‘काली पोक्ष’ ढूंढ़ निकाला जतीन्द्रनाथ अपने साथियों के साथ वह जगह छोड़ने ही वाले थे कि राज महन्ती नमक अफ़सर ने गाँव के लोगों की मदद से उन्हें पकड़ने की कोशश की। बढ़ती भीड़ को तितर-बितर करने के लिए जतीन्द्रनाथ ने गोली चला दी। राज महन्ती वहीं ढेर हो गया। यह समाचार बालासोर के ज़िला मजिस्ट्रेट किल्वी तक पहुँचा दिया गया। किल्वी दल बल सहित वहाँ आ पहुँचा। यतीश नामक एक क्रांतिकारी बीमार था।जतीन्द्रनाथ उसे अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे। चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ था। दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली। चित्तप्रिय वहीं शहीद हो गया। वीरेन्द्र तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी मोर्चा संभाले हुए थे।

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