एक सेठ के पास बड़ी मिल थी। उससे बहुत सारे लोगों की जीविका चलती थी। लाखों का उत्पादन होता था और सेठजी करोड़ों में खेलते थे।
अपने कर्मचारियों का भी वे समुचित ध्यान रखते थे। आखिर मिल तो कर्मचारियों के बल पर चलती है, इस तथ्य को वे हमेशा याद रखते थे। कर्मचारी भी उनके स्नेह के मद्देनजर उनके प्रति निष्ठावान थे।
एक दिन अचानक सेठ जी की मिल में समस्त कार्य रुक गए क्योंकि किसी महत्वपूर्ण मशीन में खराबी आ गई थी। मिल में कार्यरत कर्मचारियों से लेकर विशेषज्ञ तक अपना दिमाग लगा-लगाकर हार गये किंतु मशीन चालू न हो पाई।
सेठ जी भी बड़े हैरान-परेशान हो गए। उन्होंने अपने कारिंदों को इधर-उधर दौड़ाया कि कहीं से किसी मशीन सुधारक को लेकर आओ।
थोड़ी देर बाद वे लोग एक सामान्य से व्यक्ति को लेकर आए। सेठ जी ने उसे देखते हुए सशंकित भाव से पूछा- ‘‘भाई, तुम इस मशीन को चालू कर पाओगे ?’’
उस आदमी ने मशीन को ध्यान से देखा और कहा- ‘‘मैं मशीन ठीक कर दूंगा, किंतु इस कार्य के पंद्रह हजार रुपए लूंगा।’’
सेठ जी बड़ी दुविधा में पड़े कि इतने छोटे-से काम के इतने रुपए दें या नहीं। किंतु मशीन के न चलने पर उत्पादन बंद होगा और फिर भारी नुकसान होगा। उन्होंने हामी भर दी।
तत्पश्चात् उस आदमी ने मशीन की एक खास जगह पर कसकर एक हथौड़ा मारा और मशीन चालू हो गई।
सेठ जी बोले- ‘‘अरे भाई, इसमें तो कुछ भी काम नहीं था। फिर पंद्रह हजार किस बात के लेते हो ?’’
तब वह आदमी बोला- ‘‘हथौड़े की चोट तो कोई भी मार सकता है, किंतु कितने लोग हैं, जो जानते हैं कि चोट कहां मारना चाहिए ?’’
सेठ जी निरुत्तर हो गए और चुपचाप उसे पंद्रह हजार रुपए दे दिए।
शिक्षा:-जीवन में किसी बात का ज्ञान कभी निर्थक नहीं होता। वह कभी न कभी, कहीं न कहीं अवश्य काम आता है।
इसलिए स्वयं की रुचि, योग्यता व साधनों के अनुकूल ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए। ताकि अवसर आने पर असफलता का मुंह न देखना पड़े।